टीएमसी नेताओं को ज्यादा भाव नहीं, कार्यकर्ताओं को तवज्जो.. मिशन बंगाल के लिए बीजेपी का प्लान तैयार

बीजेपी ने बिहार में बंपर जीत के बाद अब बंगाल चुनाव पर नजरें गड़ा दी हैं. इस बार बीजेपी नई रणनीति के साथ ममता बनर्जी के गढ़ में उतरने वाली है.

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बंगाल में बीजेपी का मिशन तैयार
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  • बीजेपी ने मिशन बंगाल के लिए पूरी रणनीति तैयार कर ली है
  • इस बार के चुनाव में बीजेपी कार्यकर्ताओं को ज्यादा तवज्जो देने वाली है
  • पार्टी इस बार के चुनाव में वंशवाद का मुद्दा भी उठाने की तैयारी में है
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नई दिल्ली:

बिहार में प्रचंड जीत के बाद बीजेपी ने अब पूरी ताकत पश्चिम बंगाल में लगा दी है.राज्य में अगले साल मार्च अप्रैल में विधानसभा के चुनाव होने हैं। 2011 से सत्ता में काबिज ममता बनर्जी को हटाने के लिए पार्टी ने अपनी रणनीति को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है.

बीजेपी सूत्रों के अनुसार सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के भीतर मची उठापटक पर भी नजरें लगी हैं. जेपी ने ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को लेकर वंशवाद का मुद्दा उठाने का फैसला किया है.बीजेपी की रणनीति पर काम कर रहे एक नेता के अनुसार चाहे कांग्रेस हो या फिर लेफ्ट पार्टियां, प बंगाल की राजनीति में वंशवाद को जगह नहीं दी गई.लेकिन अब ममता बनर्जी अपने भतीजे को राज्य की जनता पर थोप रही हैं जिसे शायद लोग पसंद न करें। बीजेपी नेताओं का दावा है कि अभिषेक बनर्जी के साथ टीएमसी के पुराने नेताओं की वैसी वफादारी नहीं जैसी ममता बनर्जी के साथ है.बीजेपी पूरे राज्य में इसे लेकर जाना चाहती है। वंशवाद को लेकर टीएमसी पर सवाल उठाया जाएगा.

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दलबदल

बीजेपी नेताओं के अनुसार टीएमसी नेताओं को पार्टी में लेने का प्रस्ताव फिलहाल नहीं है. चुनाव से पहले इस तरह की आवाजाही आम है. लेकिन बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि टीएमसी नेताओं को साथ लाने से पार्टी के वोट नहीं बढ़ेंगे. हालांकि टीएमसी कार्यकर्ताओं के साथ लेने में गुरेज नहीं. ऐसे कार्यकर्ताओं के आने से संगठन के स्तर पर विस्तार करने में मदद मिलेगी. इसीलिए बीजेपी के नजरें जमीनी स्तर पर सक्रिय टीएमसी के कार्यकर्ताओं पर टिकी हैं.

जातिगत समीकरण

बीजेपी नेताओं के अनुसार पश्चिम बंगाल में जातीय राजनीति हावी नहीं है. अन्य राज्यों की तरह बंगाल में जातीय ध्रुवीकरण अधिक व्यापक नहीं है. लिहाजा बीजेपी जातिगत समीकरणों पर अधिक ध्यान के बजाए क्षेत्रीय समीकरणों के हिसाब से संतुलन साधेगी.

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धार्मिक ध्रुवीकरण

बीजेपी नेता मानते हैं कि चाहे राज्य में मुस्लिम आबादी करीब तीस प्रतिशत हो लेकिन मुस्लिम वोट तीस से चालीस विधानसभा सीटों पर ही प्रभावी हैं. वैसी सीटों पर तीस प्रतिशत से अधिक मुस्लिम वोट हैं. लेकिन वहां हिंदुओं का जवाबी ध्रुवीकरण भी होता है. यह सही है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में टीएमसी को झोली भर-भर कर वोट मिलते हैं लेकिन इससे केवल टीएमसी का वोट प्रतिशत ही बढ़ता है. जवाबी हिंदू ध्रुवीकरण का फायदा बीजेपी अन्य हिस्सों में उठा सकती है. बीजेपी के ये नेता मानते हैं कि बीजेपी को हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों को अधिक प्रमुखता से उठाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि बीजेपी की पहचान वहां पहले से ही हिंदुत्व की पार्टी के तौर पर है. इस नेता ने एक उदाहरण दिया कि जब वे ग्रामीण इलाकों में लोगों से बातचीत कर रहे थे तब एक आदमी ने ऊंची आवाज में कहा कि वह बीजेपी को वोट देगा क्योंकि वह हिंदू है. इस नेता के अनुसार अगर लोगों में यही भावना रही तो पार्टी को इसका लाभ मिल सकता है.

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बाहरी का मुद्दा

टीएमसी नेता अपने भाषणों में अक्सर कहते हैं कि बीजेपी बाहरी नेताओं को राज्य पर थोप रही है जो बंगाली अस्मिता के खिलाफ है. टीएमसी नेता कहते हैं कि गुजरात के नेता आकर पश्चिम बंगाल पर शासन करना चाहते हैं. इसके जवाब में बीजेपी का कहना है कि वह एकमात्र ऐसी राष्ट्रीय पार्टी है जिसकी स्थापना एक बंगाली ने की. गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी के पूर्ववर्ती रूप भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी. बीजेपी नेताओं के अनुसार प्रचार तो यह होना चाहिए कि एक बंगाली द्वारा स्थापित पार्टी पिछले तीन दशकों से गुजरात में शासन कर रही है.

बीजेपी की स्थिति

पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी ने राज्य की 294 में से 121 सीटें किसी न किसी रूप में जीती है. यह जीत बताती है कि इन सीटों पर बीजेपी मज़बूत स्थिति में है. पार्टी का लक्ष्य यहां पर पूरी ताकत झोंकना है. साथ ही इनके अलावा अन्य चालीस से पचास सीटों पर अतिरिक्त ताकत लगाई जाएगी. बीजेपी का लक्ष्य 160-170 सीटों को अपने पाले में लाना है. इसके लिए उम्मीदवारों के चयन में सावधानी रखी जाएगी.

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बीजेपी का प्रदर्शन

पश्चिम बंगाल में बीजेपी अपनी स्थिति लगातार मजबूत करती जा रही है. खासकर उत्तर और दक्षिण बंगाल में उसकी स्थिति मजबूत हो रही है. उसके वोट प्रतिशत में भी बढोत्तरी हो रही है. राज्य में पार्टी का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2019 के लोक सभा चुनाव में रहा जब उसे 42 में से 18 सीटों पर जीत मिली और लगभग 40.25 प्रतिशत वोट मिले. उसके बाद 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 77 सीटें जीतीं और उसे करीब 38.14 प्रतिशत वोट मिले. उसे विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनने का मौका भी मिला और नेता विपक्ष का पद भी उसे हासिल हुआ. यह भाजपा के लिए विधानसभा चुनावों में भी एक बड़ी छलांग थी, क्योंकि इससे पहले उसके पास केवल तीन सीटें ही थीं। हालांकि पिछले लोक सभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत कमोबेश पिछली बार की ही तरह 39.08 प्रतिशत पर रहा लेकिन उसकी सीटों  में कमी आई. 2019 के लोक सभा चुनाव की तुलना में उसे छह सीटों का नुकसान हुआ.

वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 47.9 प्रतिशत वोट और 213 सीटें मिलीं. यह उसके बेहतरीन प्रदर्शनों में से एक है. ऐसे में बीजेपी को टीएमसी को शिकस्त देने के लिए चार-छह प्रतिशत वोट अतिरिक्त लाना होगा. यह एक बड़ी चुनौती है जहां बीजेपी की सांगठनिक क्षमता और कुशलता की परीक्षा होगी। बीजेपी ने अपने को इसके लिए झोंक दिया है.
 

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