बिल्कीस मामले में 11 दोषियों की सजा पर छूट मामले की याचिकाओं पर सुनवाई 9 मई तक टली

न्यायमूर्ति जोसेफ ने गुप्ता से कहा, ‘‘दोषियों की ओर से पेश हो रहे वकीलों के तौर-तरीकों को देख कर ऐसा लगता है कि वे नहीं चाहते हैं कि यह सुनवाई हो. जब भी विषय को रखा जाएगा, कोई न कोई आएगा और कहेगा कि उसे जवाब दाखिल करने के लिए वक्त चाहिए.’’

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बिलकिस बानो मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो रही है.
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिल्कीस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या मामले के 11 दोषियों को सजा में छूट दिये जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई मंगलवार को नौ मई के लिए टाल दिया. गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आगजनी की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी.

केंद्र और गुजरात सरकार की ओर से न्यायालय में पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ से कहा कि वे शीर्ष न्यायालय के 27 मार्च के आदेश पर पुनर्विचार के लिए कोई याचिका नहीं दायर कर रहे हैं. उक्त आदेश में, दोषियों को सजा में दी गई छूट से संबंधित मूल रिकार्ड पेश करने को कहा गया था.

सुनवाई की शुरूआत में, मेहता ने बानो के अलावा अन्य द्वारा दायर याचिकाओं के संबंध में प्रारंभिक आपत्तियां जताते हुए कहा कि इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि आपराधिक मामलों में अक्सर ही तीसरा पक्ष अदालतों का रुख करेगा.

पीठ ने विषय की सुनवाई के लिए नौ मई की तारीख तय की क्योंकि मामले में रिहा किये गये दोषियों के कई वकीलों ने कहा है कि उन्हें बानो की याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए वक्त चाहिए.

न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, ‘‘हम सिर्फ समय तय कर रहे हैं, इसलिए जो भी अदालत इस विषय की सुनवाई करेगी इन प्रक्रियागत मुद्दों पर समय की बर्बादी नहीं होगी. मैं (ग्रीष्मकालीन) अवकाश के दौरान 16 जून को सेवानिवृत्त्त हो रहा हूं. मेरा अंतिम कार्य दिवस 19 मई होगा. मेरी बहन (न्यायमूर्ति नागरत्ना) एक सम्मेलन में शामिल होने 25 मई तक के लिए सिंगापुर जा रही हैं. यदि आप सभी सहमत हैं तो हम अवकाश के दौरान भी (सुनवाई करने के लिए) बैठेंगे और मामले की सुनवाई पूरी करेंगे.''

हालांकि, सॉलिसीटर जनरल ने न्यायालय से अनुरोध किया कि पीठ ग्रीष्मकालीन अवकाश से पहले के लिए इसे सूचीबद्ध कर सकती है. अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कहा कि विषय में बहुत कम समय लगेगा क्योंकि सिर्फ कानून के प्रश्न पर फैसला किये जाने की जरूरत है.

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न्यायमूर्ति जोसेफ ने गुप्ता से कहा, ‘‘दोषियों की ओर से पेश हो रहे वकीलों के तौर-तरीकों को देख कर ऐसा लगता है कि वे नहीं चाहते हैं कि यह सुनवाई हो. जब भी विषय को रखा जाएगा, कोई न कोई आएगा और कहेगा कि उसे जवाब दाखिल करने के लिए वक्त चाहिए.''

हालांकि, न्यायालय ने कहा कि नयी पीठ जुलाई के दूसरे हफ्ते में सुनवाई के लिए विषय को लेगी.

उल्लेखनीय है कि पिछले साल 11 दोषियों को सजा में छूट दिये जाने को लेकर 18 अप्रैल 2023 को शीर्ष न्यायालय ने गुजरात सरकार से सवाल करते हुए कहा था कि अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए था. साथ ही, यह भी पूछा था कि क्या सोच-विचार कर यह फैसला लिया गया.

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गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को सजा में छूट देते हुए पिछले साल 15 अगस्त को उन्हें जेल से रिहा कर दिया था.

बानो उस वक्त 21 वर्ष की और पांच महीने की गर्भवती थी जब गुजरात दंगों के दौरान उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. उनकी तीन वर्षीय बेटी सहित परिवार के सात सदस्य दंगों में मारे गये थे.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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