- बिहार में वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है
- याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि 65 लाख लोगों को मतदाता सूची से बिना उचित जांच के हटाया गया है
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से तथ्यात्मक आंकड़े मांगे हैं ताकि प्रक्रिया की वैधता का निर्धारण किया जा सके
बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन (SIR) से जुड़े मसले पर सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई शुरू चल रही है.जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच इस पर सुनवाई कर रही है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि SIR के दौरान संवैधानिक प्रावधानों को खुलेआम दरकिनार कर BLO और अन्य संबंधित मतदाता निबंधन से जुड़े अधिकारियों ने मनमानी की है. वकील गोपाल शंकर नारायण ने आरोप लगाया कि बड़े पैमाने पर लोगों को मतदाता सूची से बाहर किया गया है. 65 लाख लोग बाहर किए गए हैं. SC ने कहा कि ये सवाल आंकड़ों पर निर्भर करेगा. सिब्बल ने आरोप लगाया कि एक छोटे से निर्वाचन क्षेत्र में 12 लोग ऐसे हैं जिन्हें मृत दिखाया गया है, लेकिन वे जीवित हैं. BLO ने कोई काम नहीं किया है.
जस्टिस सूर्यकांत - पहले हम जांच करेंगे कि क्या अपनाई गई प्रक्रिया सही है और फिर हम इसकी वैधता पर विचार करेंगे.
वकील गोपाल शंकरनारायणन: पिछली तारीख़ पर जस्टिस बागची ने कहा था कि अगर बड़े पैमाने पर लोगों को बाहर रखा गया है, तो हम हस्तक्षेप करेंगे.अब चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ गए हैं. 65 लाख लोगों को बाहर रखा गया है.
सिब्बल: एक ज़िले में 12 लोगों को जीवित दिखाया गया है, जबकि वे मृत हैं, जबकि कुछ जगहों पर वास्तव में मृत लोगों को जीवित दिखाया गया है
वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी: इन मृतकों को जीवित और जीवित को मृत दिखाने के लिए, वे BLO से संपर्क कर सकते हैं, अदालत में अर्जी दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह ड्राफ्ट रोल है. हमने नोटिस जारी किया है कि जिनको कोई आपत्ति है अपनी आपत्तियां बताएं, सुधार आवेदन जमा करें. ड्राफ्ट रोल में कुछ कमियां होना स्वाभाविक है.सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से पूछा कि कितने लोगों की पहचान मृतक के रूप में हुई है. आपके अधिकारियों ने जरूर कुछ काम किया होगा.चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि इतनी बड़ी प्रक्रिया में कुछ न कुछ त्रुटियां तो होंगी ही.
सिब्बल: वे 2003 के लोगों को दिए जा रहे किसी भी दस्तावेज़ से बाहर कर रहे हैं. ये 2025 के रोल हैं.
जस्टिस कांत: हम पूछ रहे हैं कि अगर आप प्रक्रिया को ही चुनौती दे रहे हैं तो आप कट-ऑफ तारीख पर सवाल उठा रहे हैं. फिर इस पर आते हैं कि क्या चुनाव आयोग के पास ऐसा अधिकार है.अगर यह मान लिया जाता है कि चुनाव आयोग के पास ऐसा अधिकार नहीं है, तो मामला खत्म
सिब्बल: यह सही है, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि अगर मैं 2003 के रोल में था और मैंने गणना फॉर्म दाखिल नहीं किया है, तो मुझे बाहर कर दिया जाएगा. मुझे इस पर भी आपत्ति है
जस्टिस बागची: नियम 12 कहता है कि अगर आप 2003 के रोल में नहीं हैं, तो आपको दस्तावेज़ देने होंगे
जस्टिस कांत: 62 में से 22 लाख स्थानांतरित हो गए. इसलिए इस विवाद में अंततः 35 लाख ही बचे हैं
जस्टिस बागची: सारांश पुनरीक्षण सूची में शामिल होने का मतलब यह नहीं कि आपको गहन पुनरीक्षण सूची में पूरी तरह शामिल कर लिया गया है.
गौरतलब है कि बिहार की विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर अदालत ने पहले चुनाव आयोग (ECI) को निर्देश दिया था कि वह आधार कार्ड, वोटर ID और राशन कार्ड को वैध दस्तावेजों के तौर पर स्वीकार करे, ताकि पुनरीक्षण प्रक्रिया अधिक व्यापक और निष्पक्ष हो सके. इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने ECI से लगभग 65 लाख नामों की कटौती को लेकर विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा था.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
- सुप्रीम कोर्ट ने विस्तृत सुनवाई शुरू की
- पहले हम प्रक्रिया की जाँच करेंगे: सुप्रीम कोर्ट
- इसके बाद हम वैधता पर विचार करेंगे
- हमें कुछ तथ्यों की आवश्यकता होगी,
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा: हमें कुछ तथ्य और आंकड़े चाहिए होंगे.
एसआईआर क्या है?
एसआईआर यानी स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision) चुनाव आयोग की वह विशेष प्रक्रिया है, जिसके तहत मतदाता सूची को अपडेट और शुद्ध किया जाता है। इसमें नए पात्र मतदाताओं के नाम जोड़े जाते हैं, मृत या स्थानांतरित हो चुके लोगों के नाम हटाए जाते हैं और गलतियों को सुधारा जाता है.
आम तौर पर मतदाता सूची का वार्षिक पुनरीक्षण होता है, लेकिन एसआईआर एक गहन और लक्षित अभियान होता है, जो किसी विशेष राज्य या क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर चलाया जाता है. बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले यह प्रक्रिया शुरू की गई, ताकि मतदाता सूची को सही और अद्यतन किया जा सके.
इसमें बूथ-स्तरीय अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर सत्यापन करते हैं, दस्तावेज मांगते हैं और मतदाता की पात्रता की जांच करते हैं. पात्रता साबित करने के लिए आधार, वोटर आईडी, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज मांगे जाते हैं.
एसआईआर का मकसद है चुनाव में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना. लेकिन बिहार में यह प्रक्रिया विवादों में आ गई है, क्योंकि ड्राफ्ट सूची में करीब 65 लाख नाम हटाए जाने का दावा किया गया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है.