Bihar Caste Census: बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है. सर्वे के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच सुनवाई करेगी. सोमवार को बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के समर्थन वाली बिहार सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण का समर्थन किया है. बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने नवीनतम हलफनामे में कहा है कि सामाजिक समानता के लिए सरकार ने संवैधानिक आदेशों का अनुपालन किया है. सरकार द्वारा जाति सर्वेक्षण संवैधानिक आदेशों के तहत किया गया है और इसका उद्देश्य संविधान के तहत निहित समानता हासिल करना है. अब सरकार सर्वेक्षण रिपोर्ट में सामने आए तथ्यों के आधार पर इसे हासिल करने के लिए कदम उठाए हैं.
बिहार सरकार ने सोमवार को दाखिल किए गए हलफनामे जातिगत सर्वेक्षण रिपोर्ट के निष्कर्षों के तहत कोटा लाभ, आवास योजना, रोजगार सृजन सहायता, लघु उद्यमी योजना और शैक्षिक सहायता सहित उठाए गए कदमों का विवरण दिया. जिसमें कहा गया है कि जाति-आधारित सर्वेक्षण के तहत जारी आंकड़ों को राज्य सरकार के सभी विभागों को लोगों के कल्याण के लिए योजनाएं बनाने के लिए पहले ही भेजी जा चुकी है। जिसके आधार पर विभिन्न विभाग बिहार के लोगों को आवश्यक कल्याणकारी लाभ प्रदान करने के लिए काम कर रहे हैं.
जातिगत आंकड़ों पर डालें नजर
पिछले साल 2 अक्टूबर को सार्वजनिक किए गए बिहार के जाति सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि ईबीसी (अत्यधिक पिछड़ा वर्ग), जिसमें 112 जातियां शामिल हैं, राज्य की आबादी का 36.01% हैं, और पिछड़ा वर्ग (30 समुदाय), अन्य 27.12% हैं. कुल मिलाकर, पिछड़ी जातियों और ईबीसी से युक्त छत्र समूह 63.13% था, जो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण जैसे अभ्यासों के अनुमान की पुष्टि करता है. अनुसूचित जातियाँ 19.65% और अनुसूचित जनजातियाँ 1.68% हैं. डेटा में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए कोटा 16% से बढ़ाकर 20%, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 1% से 2%, अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी) के लिए 18% से 25% और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोटा बढ़ाने का हवाला दिया गया था. (ओबीसी) 15% से 18%, जाति-आधारित आरक्षण की कुल मात्रा को 65% तक बढ़ाना है.
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