यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, फर्जी डिग्री के आरोप वाली याचिका खारिज

केशव प्रसाद मौर्या पर चुनाव लड़ने के लिए फर्जी शैक्षणिक डिग्री का आरोप लगाया गया था. ये आरोप दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने लगाया था.

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  • सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के खिलाफ फर्जी डिग्री मामले की याचिका को खारिज कर दिया है.
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट भी इसी मामले में पहले ही याचिका को खारिज कर चुका है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की.
  • याचिका दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने दायर की थी, जिसमें मौर्य पर फर्जी डिग्री से चुनाव लड़ने का आरोप था.
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यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी. ⁠केशव प्रसाद मौर्या को जीत मिली है. जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस अरविंद कुमार ने याचिका खारिज कर दी. उन पर चुनाव लड़ने के लिए फर्जी शैक्षणिक डिग्री का आरोप लगाया गया था. ये आरोप दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने लगाया था. इससे पहले हाइकोर्ट से भी याचिका खारिज हो चुकी है. अब सुप्रीम कोर्ट से भी याचिका खारिज हो गई है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है याचिका

डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की डिग्री मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट पहले ही याचिका खारिज कर चुकी है. हाई कोर्ट के फैसले से याचिकाकर्ता को तगड़ा झटका लगा है. आपको बता दें कि 23 मई को सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के डिग्री मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग में याचिका दायर की गई थी. 

आरटीआई एक्टिविस्ट दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने दायर की थी याचिका

आरटीआई एक्टिविस्ट दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने क्रिमिनल रिवीजन याचिका दायर की थी. दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि केशव प्रसाद मौर्य ने हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयागराज की फर्जी डिग्री के आधार पर पेट्रोल पंप लिया है. याचिका में मौर्य पर फर्जी डिग्री के आधार पर चुनाव लड़ने का आरोप भी लगाया गया था. कहा गया था कि उनकी डिग्री अमान्य है. यह एक गंभीर अपराध है. याचिका के सहारे मांग की गई कि ऐसे में एफआईआर दर्ज कर विवेचना की जानी चाहिए.

यूपी सरकार की तरफ से महाधिवक्ता ने कही थी ये बात

यूपी सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा था कि याची ने अधीनस्थ अदालत में झूठा हलफनामा दाखिल किया है. उन्होंने ये भी कहा था कि लगाया गया आरोप संज्ञेय अपराध नहीं है. कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद आदेश रिजर्व कर लिया था. इससे पहले भी दिवाकर नाथ त्रिपाठी द्वारा हाईकोर्ट में दाखिल याचिका देरी की वजह से ख़ारिज कर दी गई थी, पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हाईकोर्ट ने देरी को माफ करते हुए याचिका को स्वीकार कर लिया.

याचिकाकर्ता ने 156 (3) के तहत जिला न्यायालय में याचिका दाखिल की थी, जिसे अपर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया था. नियम के मुताबिक- उन्हें निर्धारित समयवधि में जिला अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देना था, लेकिन याचिककर्ता ने 318 दिन की देरी से हाईकोर्ट में अपील की थी. जिस आधार पर हाईकोर्ट ने इससे पहले याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए याचिका के गुणदोष के आधार पर निस्तारण का निर्देश हाईकोर्ट को दिया था. हाई कोर्ट के जस्टिस संजय कुमार सिंह ने 7 जुलाई को फैसला सुनाया था.

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