भीमा कोरेगांव मामला: वरवरा राव की याचिका पर मंगलवार को SC में होगी सुनवाई, जानें क्या है आरोपी की मांग

याचिका में तर्क दिया गया है कि यह एक स्थापित कानून है और सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर जमानत पर वैधानिक रोक के बावजूद यूएपीए मामलों में जमानत दी जा सकती है.

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पीठ ने पाया था कि वृद्ध को निरंतर कारावास में रखना उनके स्वास्थ्य के प्रति असंगत है.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में तेलुगु कवि और भीमा कोरेगांव एल्गार परिषद के आरोपी पी वरवरा राव द्वारा दायर जमानत याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होगी. इसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें कोर्ट ने स्थायी मेडिकल जमानत देने से इनकार कर दिया था. 13 अप्रैल को बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें तेलंगाना में अपने घर पर रहने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, लेकिन मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए अस्थायी जमानत की अवधि तीन महीने बढ़ा दी थी और ट्रायल में तेजी लाने के निर्देश जारी किए थे. 

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अपराध की गंभीरता तब तक बनी रहेगी जब तक कि आरोपी को उसके द्वारा किए गए कथित अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता. वरवर राव वर्तमान में मेडिकल आधार पर जमानत पर हैं. उन्होंने वर्तमान विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से प्रस्तुत किया है कि अब आगे की कैद उनके लिए "मृत्यु की घंटी बजाएगी" क्योंकि बढ़ती उम्र और बिगड़ता स्वास्थ्य घातक है.

याचिका में उल्लेख किया गया है कि एक अन्य आरोपी, 83 वर्षीय आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी का जुलाई 2021 में मामले में हिरासत में रहते हुए निधन हो गया था. याचिकाकर्ता ने कहा है कि फरवरी 2021 में जमानत मिलने के बाद, उनकी तबीयत बिगड़ गई और उन्हें गर्भनाल हर्निया हो गया, जिसके लिए उन्हें सर्जरी करानी पड़ी. इसके अलावा, उन्हें अपनी दोनों आंखों में मोतियाबिंद के लिए भी ऑपरेशन करने की आवश्यकता है, जो उन्होंने नहीं कराया है. 

याचिका में तर्क दिया गया है कि यह एक स्थापित कानून है और सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर जमानत पर वैधानिक रोक के बावजूद यूएपीए मामलों में जमानत दी जा सकती है. 1 फरवरी, 2021 को हाईकोर्ट ने 82 वर्षीय आरोपी को छह महीने के लिए जमानत दे दी थी और कड़ी शर्तें लगाई थीं, उनमें से एक यह था कि राव को मुंबई में विशेष NIA कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को नहीं छोड़ना चाहिए. पीठ ने पाया था कि वृद्ध को निरंतर कारावास में रखना उनके स्वास्थ्य के प्रति असंगत है.

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