बेंगलुरु (Bengaluru) में जल संकट (Water Crisis) गहराता जा रहा है. 1 करोड़ 30 लाख आबादी वाले देश के सिलिकॉन वैली के खस्ताहाल इंफ्रास्ट्रक्चर का यह बड़ा उदाहरण है. वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि शहर की आधी झीलों की अगर मरम्मत करा दी जाए तो पानी की समस्या खत्म हो जाएगी, लेकिन राजनेता सुनते कहां हैं. बेंगलुरु में लोगों के हाथों में बाल्टियां, सूखे नल, टैंकर्स और झील के सतह पर आईं दरारों के दृश्य बेहद आम हैं. नौबत यहां तक आ गई है कि अब सरकारी अस्पतालों में हवा से पानी बनाने की मशीन लगाई गई है.
बेंगलुर में पानी और हरियाली की कमी की वजह से गर्मी भी काफी बढ़ गई है. ऐसे में टैंकर्स लोगों का सहारा बने हैं, लेकिन जब बोरवेल सूखने लगे तो टैंकर्स ने मनमानी रकम वसूलनी शरू कर दी. सरकार ने रेट तय किया लेकिन वो कागजों तक सीमित नजर आता है. गर्मियों की छुट्टी से ठीक पहले कुछ स्कूल पानी की वजह से बंद करने पड़े.
IT इंजीनियर कुमार आदर्श भी बेबस महसूस करते हैं. उनका कहना है कि अगर कोई सॉफ्टवेयर होता जो इस समस्या का समाधान निकाल पाता, लेकिन ये भी संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि इस साल हमें पानी की परेशानी हो रही है. बारिश भी नहीं हो रही है. इसलिए समस्या और बढ़ गई है. अब पानी के टैंकरों पर ही निर्भरता है.
अस्पताल में लगाई हवा से पानी बनाने की मशीन
केआर पुरम के सरकारी अस्पताल में हवा से पानी बनाने वाली मशीन लगाई गई है. यह मशीन 24 घंटे में 300 लीटर शुद्ध पानी तैयार करती है और खर्च आता है 2 रुपये प्रति लीटर.
केआर पुरम गवर्नमेंट हास्पिटल की नर्सिंग हेड प्रवीणा का कहना है कि हम अपनी जरूरत के हिसाब से 60 से 80 लीटर पानी यहां से निकालते हैं, जिसका इस्तेमाल पीने के साथ-साथ मेटरनिटी वार्ड में गर्म पानी की जरूरत पूरा करने के लिए किया जाता है.
पानी का संकट क्यों, एक्सपर्ट ने दिया ये जवाब
शहर पानी के संकट से जूझ रहा है, लेकिन क्यों? इस सवाल को लेकर एनडीटीवी ने विशेषज्ञों से बात की. डॉ. वीणा श्रीनिवासन ने कहा कि हमारी पानी के लिए निर्भरता कावेरी नदी पर है, अगर वह फेल हो जाती है तो हमारे यहां पर समस्या शुरू हो जाती है. ऐसे में दूसरे विकल्पों को तलाशना जरूरी है.
पानी की समस्या तो कमोबेश पूरे बेंगलुरु में है. हालांकि शहर के दक्षिण पूर्वी इलाके में यह समस्या सबसे ज्यादा है. व्हाइटफील्ड की झील पूरी तरह से सूख चुकी है. यही कारण है कि जब तक मानसून नहीं आता और बारिश नहीं होती, तब तक यहां ग्राउंड वाटर रिचार्ज नहीं होगा और हालात ऐसे ही बने रहेंगे.
बेंगलुरु में जल संकट, लेकिन सारक्की झील लबालब
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के प्रोफेसर टी बी रामचंद्र लंबे अरसे से झीलों पर काम कर रहे हैं. तकरीबन तीन साल पहले उनकी निगरानी में दक्षिण बेंगलुरु की सारक्की झील की मरम्मत की गई थी. इस झील में पानी की कोई कमी नहीं है.
यकीन नहीं होता कि दोनों झीलें इसी शहर की हैं. एक झील में पानी तलाशना पड़ता है और दूसरी झील पानी से लबालब है.
रामचंद्र का कहना है कि झील के पुनर्निर्माण के बाद ग्राउंड वाटर 320 फीट तक रीचार्ज हुआ है. इस साल शहर के ज्यादातर हिस्सों में पानी की समस्या है, लेकिन आप देखिए सारक्की झील के इलाके में वहां पानी की समस्या नहीं है. ग्राउंड वाटर अच्छा है और झील भी पूरी भरी हुई है यानी इसी मॉडल को शहर की सभी 200 झीलों में अपनाना चाहिए.
45 फीसदी लोगों की ग्राउंड वाटर पर निर्भरता
भारतीय विज्ञान संस्थान के मुताबिक, इस शहर को सालाना 18 टीएमसी पानी चाहिए. 15 टीएमसी की आपूर्ति कावेरी नदी से होती है. 4 से 6 टीएमसी आसानी से झीलों के पुनर्निर्माण से मिल जाएगा क्योंकि 45 फीसदी बैंगलोर के लोगों की निर्भरता ग्राउंड वाटर पर है. साथ ही शहर के हर एक वार्ड में 2 हेक्टयर में वृक्षारोपण से पानी की समस्या पूरी तरह खत्म की जा सकती है.
साथ ही बारिश के पानी का संरक्षण हर घर और अपार्टमेंट में अनिवार्य किया जाना चाहिए. जल बोर्ड का कहना है कि पानी की समस्या अगले 15 दिनों में खत्म हो जाएगी.
मई तक पूरा होगा कावेरी प्रोजेक्ट का पांचवां चरण
बेंगलुरु वाटर सप्लाई एंड सीवेज बोर्ड के चेयरमैन डॉ. राम मनोहर ने कहा कि मई के आखिर तक कावेरी प्रोजेक्ट का पांचवां चरण पूरा हो जाएगा. इसके बाद बेंगलुरु को और पानी मिलेगा. हमारे पास अगले 4 पांच महीने के लिए पर्याप्त पानी है और मानसून भी इस बार देर से नहीं आएगा.
जब कभी भी बारिश कम होती है, इस शहर में पानी का संकट खड़ा हो जाता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस शहर में पानी के वैकल्पिक स्रोत मौजूद हैं. उन्हें विकसित करने की जरूरत है, लेकिन जब कभी भी यहां संकट खड़ा होता है, सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो वह अस्थायी समाधान को तरजीह देती है. ऐसे में पानी के संकट का स्थाई समाधान निकालने की कोशिश नहीं की जाती है. ऐसे में समस्या अपनी जगह बनी रहती है.
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