दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) मंगलवार को कोलकाता में पश्चिम बंगाल (West Bengal) की अपनी समकक्ष ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) से मुलाकात कर सकते हैं. राज्य की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि ममता से मुलाकात के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी केजरीवाल से साथ होंगे. आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण पर अध्यादेश को लेकर केंद्र के खिलाफ अपनी सरकार की लड़ाई में विपक्षी दलों का समर्थन हासिल करने की कोशिशों में जुटे हैं.
केजरीवाल ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘आज से देश भर में निकल रहा हूं. दिल्ली के लोगों के हक के लिए. उच्चतम न्यायालय ने बरसों बाद आदेश पारित करके दिल्ली के लोगों के साथ न्याय किया, उन्हें उनके हक दिये. केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर वो सारे हक वापस छीन लिये. जब ये क़ानून राज्य सभा में आएगा तो इसे किसी हालत में पास नहीं होने देना. सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों से मिलकर उनका साथ मांगूंगा.''
केजरीवाल और मान के दोपहर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने की संभावना है. पश्चिम बंगाल के ‘आप' नेताओं के साथ संक्षिप्त बैठक के बाद दोनों नेता तृणमूल कांग्रेस प्रमुख से मिलने के लिए राज्य सचिवालय नबन्ना जाएंगे. टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “उनकी (केजरीवाल और ममता की) राज्य सचिवालय में एक बंद कमरे में बैठक होने वाली है. वे अगले साल होने वाले आम चुनावों के लिए संभावित रणनीतियों पर भी चर्चा कर सकते हैं.” केजरीवाल और मान मंगलवार शाम को कोलकाता से वापसी की उड़ान भरेंगे.
केजरीवाल इससे पहले सेवा संबंधी अध्यादेश को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात कर चुके हैं. नीतीश ने इस मामले में केंद्र के साथ लड़ाई में ‘आप' को पूरा समर्थन समर्थन देने का अश्वासन दिया है. केजरीवाल बुधवार को मुंबई में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) प्रमुख उद्धव ठाकरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता शरद पवार से भी मुलाकात कर सकते हैं.
केंद्र सरकार भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और दानिक्स कैडर के अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ प्रशासनिक कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण गठित करने के वास्ते 19 मई को अध्यादेश लेकर आई थी. इससे एक हफ्ते पहले ही उच्चतम न्यायालय ने पुलिस, लोक सेवा और भूमि से संबंधित विषयों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सौंप दिया था. किसी अध्यादेश को छह महीने के भीतर संसद की मंजूरी मिलना आवश्यक होता है. माना जा रहा है कि केंद्र सरकार संसद के मानसून सत्र में इस अध्यादेश से संबंधित विधेयक पेश कर सकती है.