अंबानी कार केस: NIA जांच पर शिवसेना के तेवर हुए तीखे, पूछा- उरी, पठानकोट व पुलवामा हमले में कितने गुनहगारों को...?

शिवसेना ने सामना में कहा कि किसी की मौत का निवेश कैसे किया जाए, यह वर्तमान विपक्ष से सीखना चाहिए. मुंबई पुलिस का मनोबल गिराने का प्रयास इस दौर में चल रहा है. विपक्ष को कम-से-कम इतना पाप तो नहीं करना चाहिए.

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किसी की मौत का निवेश कैसे किया जाए, यह वर्तमान विपक्ष से सीखना चाहिए: शिवसेना (फाइल फोटो)
मुंबई:

मुकेश अंबानी के घर के पास मिली संदिग्ध कार और उसमें बरामद जिलेटिन मामले में मुम्बई पुलिस के एपीआई सचिन वाजे (Sachin Vaze) के खिलाफ इतने सबूत मिलने के बाद भी शिवसेना (Shiv Sena) एनआईए की जांच पर सवाल उठा रही है. शिवसेना के मुखपत्र सामना (Saamana) के सम्पादकीय में पूछा गया है कि जिलेटिन की छड़ों की जांच करने वाली ‘एनआईए' ने उरी हमला, पठानकोट हमला व पुलवामा हमले में क्या जांच की? 

संपादकीय में कहा गया है कि मुंबई के कारमाइकल रोड पर जिलेटिन की 20 छड़ों में विस्फोट नहीं हुआ परंतु राजनीति और प्रशासन में बीते कुछ दिनों से ये छड़ें धमाके कर रही हैं. इस पूरे मामले में अब मुंबई पुलिस के आयुक्त परमबीर सिंह को उनके पद से जाना पड़ा है. विपक्ष ने इस मामले में कुछ सवाल खड़े किए हैं ये सच है, परंतु राज्य का आतंक निरोधी दस्ता इस मामले में हत्या का मामला दर्ज करके जांच कर रहा था. इसी दौरान ‘एनआईए' ने आनन-फानन में जांच की कमान अपने हाथ में ले ली. इसके पीछे का मकसद जल्द ही सामने आएगा. 

इसमें कहा गया है कि किसी भी हाल में इसके पीछे आतंकवाद के तार न जुड़ने के बावजूद इस अपराध की जांच में ‘एनआईए' का घुसना, ये क्या मामला है? आतंकवाद से संबंधित प्रकरणों की जांच ‘एनआईए' करती है, परंतु जिलेटिन की छड़ों की जांच करनेवाली ‘एनआईए' ने उरी हमला, पठानकोट हमला व पुलवामा हमले में क्या जांच की, कौन-सा सत्यशोधन किया, कितने गुनहगारों को गिरफ्तार किया? ये भी रहस्य ही है, लेकिन मुंबई में 20 जिलेटिन की छड़ें ‘एनआईए' के लिए बड़ी चुनौती ही सिद्ध होती नजर आ रही हैं. इस पूरे घटनाक्रम का श्रेय राज्य का विपक्ष ले रहा है. 

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मनसुख हिरेन की संदिग्ध मौत हो गई और इसके लिए सभी को दुख है. भारतीय जनता पार्टी को थोड़ा ज्यादा ही दुख हुआ है. परंतु इसी पार्टी के एक सांसद रामस्वरूप शर्मा की संसद का अधिवेशन शुरू रहने के दौरान दिल्ली में संदिग्ध मौत हो गई. शर्मा प्रखर हिंदुत्ववादी विचारों वाले थे. उनकी संदिग्ध मौत के बारे में भाजपा वाले छाती पीटते नजर नहीं आ रहे हैं. मोहन डेलकर की खुदकुशी के मामले में तो कोई ‘एक शब्द' भी बोलने को तैयार नहीं है. सुशांत सिंह राजपूत और उसके परिजनों को तो सभी भूल गए हैं. 

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किसी की मौत का निवेश कैसे किया जाए, यह वर्तमान विपक्ष से सीखना चाहिए. मुंबई पुलिस का मनोबल गिराने का प्रयास इस दौर में चल रहा है. विपक्ष को कम-से-कम इतना पाप तो नहीं करना चाहिए. विपक्ष ने महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होने का सपना पाला होगा तो यह उनकी समस्या है. परंतु ऐसी शरारत करने से उन्हें सत्ता की कुर्सी मिल जाएगी ये भ्रम है. मनसुख की हत्या हुई होगी तो अपराधी बचेंगे नहीं. उन्होंने आत्महत्या की होगी तो उसके पीछे का कारण ढूंढ़ा जाएगा और उसी के लिए मुंबई सहित राज्य के पुलिस बल में भारी फेरबदल किया गया हैय विपक्ष को इसका विश्वास रखना चाहिए. 

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मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से परमवीर सिंह को बदल दिया गया इसका मतलब वे गुनहगार सिद्ध नहीं होते. परमवीर ने कठिन समय में मुंबई की कमान संभाली थी. सुशांत, कंगना जैसे प्रकरणों में उन्होंने पुलिस का मनोबल टूटने नहीं दिया. इसलिए आगे इस प्रकरण में सीबीआई आई तो भी मुंबई पुलिस की जांच सीबीआई के पास नहीं जा सकी. टीआरपी घोटाले की फाइल उन्हीं के समय में खोली गई. परमवीर सिंह पर दिल्ली की एक विशिष्ट लॉबी का गुस्सा था, जो कि इसी वजह से था. उनके हाथ में जिलेटिन की 20 छड़ें पड़ गई. उन छड़ों में धमाका हुए बगैर ही पुलिस दल में दहशत फैल गई. नए आयुक्त हेमंत नगराले को साहस व सावधानी से काम करना होगा.

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वहीं, बीजेपी ने भी इस मामले में टिप्पणी की है. भाजपा प्रवक्ता राम कदम ने कहा कि आज का सामना अखबार पुनः वाजे गैंग का बचाव करते हुए उनका समर्थन कर रहा है. दूसरी ओर गृह मंत्री अनिल देशमुख शिवसेना की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि बड़ी गलतियां हुई हैं. यह कहते हुए उन्हें लताड रहे हैं. इनके आपसी मनमुटाव के कारण ही कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी हैं. 

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