गरीबी की वजह से पति को छोड़ने वाली पत्नी गुजारा भत्ते की हकदार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ते को लेकर एक बड़ा फैसला दिया है.इसमें गरीबी के कारण पति को छोड़ने वाली पत्नी को भरण-पोषण देने की याचिका ठुकरा दी है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
Allahabad High Court maintenance
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चंदौली के फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए पत्नी की भरण-पोषण याचिका खारिज की
  • कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने बिना उचित कारण पति को गरीबी के कारण छोड़ दिया था इसलिए भरण-पोषण का हकदार नहीं है
  • फैमिली कोर्ट ने पत्नी के भरण-पोषण आवेदन को CRPC की धारा 125 के तहत खारिज किया था, जिसे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
प्रयागराज:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चंदौली से जुड़े भरण-पोषण (Maintenance) को लेकर एक याचिका को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने टिप्पणी में कहा है कि यदि पत्नी पति को उसकी गरीबी के कारण छोड़ देती है तो वो भरण पोषण (Maintenence) पाने की हकदार नहीं है. हाईकोर्ट ने चंदौली के फैमिली कोर्ट के उस आदेश को सही ठहराया है, जिसमें पत्नी को गुजारा भत्ता देने से मना कर दिया गया था. पत्नी ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करने की मांग की थी. इस पर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पत्नी की क्रिमिनल रिवीजन याचिका को खारिज कर दिया.

अदालत ने कहा कि पत्नी बिना किसी उचित कारण के पति से अलग रह रही थी और उसने तथ्यों को छुपा कर कोर्ट को गुमराह करने का भी प्रयास किया है. यह आदेश जस्टिस मदनपाल सिंह की सिंगल बेंच ने चंदौली की गुड़िया की क्रिमिनल रिवीजन याचिका को खारिज करते हुए दिया है.  

मामले के अनुसार याची पत्नी गुड़िया ने भरण पोषण को लेकर सीआरपीसी की धारा 397/401 के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन याचिका दायर की थी. याचिका में चंदौली के फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश चंदौली द्वारा भरण-पोषण सीआरपीसी की धारा 125 सीआरपीसी के तहत पारित 31 अक्टूबर, 2023 के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया गया था. फैमिली कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी यानी याची के भरण पोषण वाले आवेदन को खारिज कर दिया था. इसे पत्नी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. पत्नी की ओर से पेश वकील ने कोर्ट में दलील दी कि ट्रायल कोर्ट ने पति (विपक्षी संख्या 2) द्वारा की गई क्रूरता के आरोपों पर विचार नहीं किया. उन्होंने कहा कि पत्नी के पास अलग रहने का पर्याप्त कारण था. यह भी दलील दी गई कि कोर्ट के बाहर बाहर हुए जिस समझौते का जिक्र किया गया है, उसकी कानून की नजर में कोई मान्यता नहीं है.  

दूसरी ओर पति के अधिवक्ता का कहना था कि दोनों के बीच पंचायत में हुए समझौते के आधार पर संबंध विच्छेद हो चुका है. पत्नी ने दूसरी शादी कर ली है और ग्राम प्रधान द्वारा इस संबंध में प्रमाणपत्र भी दिया गया है. हाईकोर्ट का कहना था कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि पत्नी ने अपनी मर्जी से ससुराल छोड़ा. उसका मायका अमीर था, जबकि पति गरीब परिवार से था. ससुराल छोड़ने का कोई उचित कारण नहीं बताया गया है. पत्नी ने जो आधार कार्ड ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया वह भी गलत था. उसने अपने आधार कार्ड में बाद में पति के नाम के स्थान पर पिता का नाम जुड़वाया था, जिसे अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया.

हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पत्नी का आवेदन इस आदेश के अंतर्गत केवल इस आधार पर खारिज कर दिया गया है कि वो अपने पति अर्थात विपक्षी संख्या 2 से अलग रह रही है और वो भी बिना किसी पर्याप्त कारण के. ट्रायल कोर्ट ने यह भी माना है कि प्रथम दृष्टया पत्नी किसी अन्य व्यक्ति के साथ व्यभिचार में रह रही है. कोर्ट ने जिरह पर भरोसा करते हुए माना कि याची पत्नी था एक संपन्न परिवार से है और प्रतिपक्ष संख्या दो एक गरीब परिवार से है और विवाह असंगत था. ट्रायल कोर्ट ने यह राय दी है कि पत्नी अपनी मर्जी से प्रतिपक्ष संख्या दो से अलग रह रही थी. इन तथ्यों के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने उसके भरण-पोषण के दावे को सीआरपीसी धारा 125 के तहत खारिज करते हुए आदेश पारित किया है. 

हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा आदेश पारित करते समय दिए गए निष्कर्षों के अवलोकन पर यह कोर्ट पाती है कि फैमिली कोर्ट ने तथ्यों का स्पष्ट निष्कर्ष दर्ज किया है जो उसके समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य के सत्य और सही मूल्यांकन पर आधारित है जिसे विकृत या अवैध नहीं कहा जा सकता.इसलिए कोर्ट का यह मत है कि हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 397/401के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए अपने निष्कर्षों को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता. कोर्ट ने माना कि पत्नी द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण में कोई दम नहीं है. हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही माना और पत्नी की याचिका को खारिज कर दिया.
 

Featured Video Of The Day
Hygiene in Food Packaging: खाद्य पैकेजिंग में स्वच्छता क्यों है सबसे जरूरी? | NDTV India