हाईकोर्ट के जजों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के सभी हाईकोर्ट के जजों को एक समान पेंशन और भत्ते बिना किसी भेदभाव के मिलने चाहिए. अदालत ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता और वित्तीय स्वतंत्रता के बीच एक अंतर्निहित संबंध है. सभी हाईकोर्ट के जज एक ही वर्ग के पदाधिकारी हैं. इसलिए उन्हें बिना किसी भेदभाव के पेंशन सहित समान सेवा लाभ दिए जाने चाहिए.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud), जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सवाल उठाया कि सभी हाईकोर्ट के जजों को अलग-अलग पेंशन कैसे दी जा सकती है? अपने आदेश में बेंच ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 216 इस बात में कोई भेद नहीं करता कि हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति कैसे की जाती है? एक बार हाईकोर्ट जज के रूप में नियुक्त होने के बाद सभी जज समान रैंक के होते हैं. हाईकोर्ट संस्था चीफ जस्टिस और नियुक्त किए गए अन्य सभी जजों से मिलकर बनी है. उनके वेतन के भुगतान या अन्य लाभों के मामले में कोई भेद नहीं किया जा सकता है.
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अदालत ने कहा कि सेवा लाभों में कोई भी भेद हाईकोर्ट के जजों के बीच एकरूपता के सिद्धांत को कमजोर करेगा. इस प्रकार जजों के वेतन या अन्य लाभों के भुगतान में लोक सेवकों की तरह कोई अंतर नहीं हो सकता है. वेतन राज्यों की समेकित निधि से प्राप्त होता है. पेंशन भारत की समेकित निधि से ली जाती है. गैर-भेदभाव का सिद्धांत इस बात पर लागू होता है कि वर्तमान और पूर्व न्यायाधीशों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान 6 पॉइंट भी गिनाएं:-
1. हाईकोर्ट संवैधानिक संस्थाएं हैं. सभी जज संवैधानिक पदों के धारक के रूप में भाग लेते हैं.
2. संविधान के न तो आर्टिकल 221(1) और न ही आर्टिकल 221(2) में यह प्रावधान है कि उनके द्वारा लिए जा रहे वेतन पर कोई भेदभाव किया जा सकता है.
3. एक बार हाईकोर्ट में नियुक्त होने के बाद सभी जज एक ही वर्ग के पदाधिकारियों का हिस्सा बन जाते हैं.
4. न्यायिक स्वतंत्रता और वित्तीय स्वतंत्रता के बीच एक अंतर्निहित संबंध है.
5. कार्यरत जजों को सेवा लाभ और पेंशन के रूप में उन्हें देय सेवानिवृत्ति लाभों का निर्धारण बिना किसी भेदभाव के होना चाहिए.
6. ऐसा कोई भी भेदभाव करना असंवैधानिक होगा.
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