इस महिला वैज्ञानिक ने भारत को दिया 'दिव्यास्त्र', DRDO में 'पावरहाउस ऑफ एनर्जी' नाम से हैं मशहूर

57 साल की शीना रानी हैदराबाद में DRDO की हाईटेक लैब में साइंटिस्ट हैं. उन्हें बाकी साथी 'पावरहाउस ऑफ एनर्जी' भी कहते हैं. शीना रानी देश की मशहूर मिसाइल टेक्नोलॉजिस्ट 'अग्नि पुत्री' टेसी थॉमस के शानदार नक्शेकदम पर चलती हैं.

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हैदराबाद:

भारत ने 11 मार्च (सोमवार) अपनी पहली इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 (Agni-5 Missile) की MIRV टेक्नोलॉजी के साथ सफल टेस्टिंग की. अग्नि-5 मिसाइल मल्टिपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) टेक्नोलॉजी से लैस है. यानी इसे एक साथ कई टारगेट पर लॉन्च किया जा सकता है. वैसे अग्नि-5 मिसाइल की पहली टेस्टिंग अप्रैल 2012 में हुई थी, जबकि 11 मार्च को इसे MIRV टेक्नोलॉजी के साथ टेस्ट किया गया. इस मिसाइल की रेंज 5000 किलोमीटर से ज्यादा है. यानी इसकी जद में चीन और पाकिस्तान आ जाएंगे. यूरोप और अफ्रीका के कुछ हिस्से भी इस मिसाइल की रेंज में आएंगे. शायद इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने अग्नि-5 मिसाइल को 'मिशन दिव्यास्त्र' कहा. 

खास बात ये भी है कि इस 'दिव्यास्त्र' को बनाने में महिला वैज्ञानिकों का हाथ है. DRDO की वैज्ञानिक शीना रानी (Sheena Rani) ने इस प्रोजेक्ट को लीड किया था. आइए जानते हैं कौन हैं शीना रानी और उन्होंने कैसे इस प्रोजेक्ट पर काम किया.

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी DRDO की वैज्ञानिक शीना रानी 1999 से अग्नि मिसाइल सिस्टम पर काम कर रही हैं. मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल यानी MIRV टेक्नोलॉजी वाली अग्नि-5 मिसाइल को कई लोग DRDO में शीना रानी की 25 साल की सर्विस में सर्वोच्च गौरव का पल करार दे रहे हैं. शीना रानी कहती हैं, ''मैं DRDO की एक प्राउड मेंबर हूं, जो भारत की रक्षा में मदद करती है."

'पावरहाउस ऑफ एनर्जी'  नाम से मशहूर
57 साल की शीना रानी हैदराबाद में DRDO की हाईटेक लैब में साइंटिस्ट हैं. उन्हें बाकी साथी 'पावरहाउस ऑफ एनर्जी' भी कहते हैं. शीना रानी देश की मशहूर मिसाइल टेक्नोलॉजिस्ट 'अग्नि पुत्री' टेसी थॉमस के शानदार नक्शेकदम पर चलती हैं. उन्होंने अग्नि सीरीज की मिसाइलों के डेवलपमेंट में अहम योगदान दिया था.

ट्रेंड इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में की पढ़ाई
शीना रानी कंप्यूटर साइंस में विशेषज्ञता के साथ एक ट्रेंड इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियर हैं. उन्होंने केरल के तिरुवनंतपुरम के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई की. शीना रानी ने इससे पहले देश के सिविलयन रॉकेटरी लैब विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) में 8 साल तक काम भी किया.

DRDO में की थी लैटरल एंट्री
1998 में राजस्थान के पोकरण में न्यूक्लियर टेस्टिंग के बाद शीना रानी ने लैटरल एंट्री के तौर पर DRDO में एंट्री की. 1999 से वह मिसाइलों की अग्नि सीरीज के लिए लॉन्च कंट्रोल सिस्टम पर काम कर रही हैं.

शीना रानी के लिए भारत के 'मिसाइल मैन' कहे जाने वाले और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम हमेशा से प्रेरणा रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि वह डॉ. कलाम के करियर पाथ को भी फॉलो करती हैं. डॉ. कलाम की तरह शीना रानी ने भी अपना करियर इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में शुरू किया. फिर इंटीग्रेटेड मिसाइल प्रोग्राम को लीड करने के लिए DRDO चली गई. डॉ. कलाम भी एक समय में DRDO के हेड रह चुके थे.

शीना रानी के लिए मिसाइल टेक्नोलॉजिस्ट डॉ. अविनाश चंदर भी प्रेरणास्त्रोत रहे. डॉ. चंदर ने शीना रानी को हमेशा मुस्कुराने वाली, कुछ नया करने को तैयार रहने वाली और अग्नि मिसाइल प्रोग्राम के प्रति उनका समर्पण शानदार बताया.

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अग्नि-5 मिसाइल की खासियतें
-अग्नि-5 मिसाइल की रेंज में लगभग पूरा एशिया, चीन के अंतिम उत्तरी क्षेत्र और यूरोप के भी कुछ हिस्से रहेंगे. इससे पहले की मिसाइलें अग्नि-1 से अग्नि-4 की रेंज 700 से 3500 किलोमीटर ही थी.

-अग्नि-5 में ऐसे सेंसर लगे हैं, जिससे वो अपने टारगेट तक बिना किसी गलती के पहुंच जाते हैं. अग्नि मिसाइलें भारत के पास साल 1990 से हैं. वक्त के साथ-साथ इसकी रेंज बदलती रहती है.

-अभी तक MIRV टेक्नोलॉजी से लैस मिसाइलें रूस, चीन, अमेरिका, फ्रांस और यूके के पास हैं. इन मिसाइलों को जमीन या समंदर में खड़ी सबमरीन से लॉन्च किया जा सकता है. हालांकि, पाकिस्तान ऐसा मिसाइल सिस्टम बनाने की कोशिश कर रहा है. कई मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि इजरायल के पास ये मिसाइल सिस्टम है या वो इसे विकसित कर रहा है.

-अब तक भारतीय रक्षा बलों के पास 700 किलोमीटर की रेंज वाली अग्नि-1, 2000 किलोमीटर की रेंज वाली अग्नि-2, 2500 किलोमीटर की रेंज वाली अग्नि-3 और 3500 किलोमीटर की रेंज वाली अग्नि-4 मिसाइलें हैं. अग्नि-5 की लंबी दूरी और न्यूक्लियर हथियार ले जाने की क्षमता की वजह से विशेषज्ञों को लगता है कि इस मिसाइल को चीन को ध्यान में रखकर बनाया गया है.

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