राजस्थान, मध्य प्रदेश के बाद अब बिहार की तर्ज पर महाराष्ट्र में जातिगत गणना की मांग

अजित पवार ने यह भी कहा है कि उन्होंने सीएम एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर बिहार की जाति आधारित जनगणना का पूरा ब्योरा मांगा है. लेकिन अजित पवार की इस अचानक इंडिया गठबंधन वाले बोल के पीछे का झोल अब सामने आ रहा है.

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अजित पवार (फाइल फोटो)

बिहार में नीतीश सरकार की ओर से जातिगत जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किए जा चुके हैं. जिसके बाद राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने दो हफ्ते पहले ऐलान किया था कि वे बिहार की तर्ज पर राजस्थान में भी जातिगत जनगणना करवाने वाले हैं. इसी तर्ज पर मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने भी कांग्रेस की सरकार आने पर कास्ट सर्वे का वादा किया है. अब तक जातिगत जनगणना की यह मांग बीजेपी को घेरने के लिए इंडिया गठबंधन का प्लान समझा जा रहा था. लेकिन अब महाराष्ट्र से भी जातिगत जनगणना की मांग की गई है. यहां मामला अलग है.

यह मांग शरद पवार की एनसीपी से बगावत कर अलग हुए गुट के नेता अजित पवार ने उठाई है. अजित पवार का गुट बीजेपी-शिवसेना के साथ सरकार में शामिल हैं. उन्होंने यह बयान सोलापुर के माढा की एक सभा को संबोधित करते हुए दिया. कास्ट सर्वे की मांग कर उन्होंने एक तरह से इंडिया गठबंधन के साथ सुर मिला लिया है. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि इससे जातियों की जनसंख्या के अनुपात में लोगों को लाभ दिया जा सकेगा. अब सवाल यह उठता है कि सरकार में रहते हुए अजित पवार नीतीश कुमार और कांग्रेस की भाषा क्यों बोल रहे हैं? 

शिंदे-फडणवीस पहुंचे दिल्ली, पवार ने पकाई अलग खिचड़ी!

अजित पवार ने यह भी कहा है कि उन्होंने सीएम एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर बिहार की जाति आधारित जनगणना का पूरा ब्योरा मांगा है. लेकिन अजित पवार की इस अचानक इंडिया गठबंधन वाले बोल के पीछे का झोल अब सामने आ रहा है. दरअसल बुधवार को अचानक दोपहर साढ़े तीन बजे सीएम शिंदे और देवेंद्र फडणवीस मुंबई एयरपोर्ट से उड़े और साढ़े छह बजे के करीब दिल्ली में उतरे. इनके साथ सहयोगी पार्टी के नेता के तौर पर अजित पवार का भी होना लाजिमी था, लेकिन वे नहीं थे. कहा जा रहा है ये दोनों मराठा आरक्षण के मुद्दे पर बात करने दिल्ली पहुंचे. लेकिन किससे मिले? कहां मिले? इसे लेकर कमाल की गोपनीयता बरती जा रही है. इससे ज्यादा हैरानी वाली बात यह है कि अजित पवार को इनके दिल्ली जाने की कोई जानकारी ही नहीं. पत्रकारों के सवाल पर उन्होंने कहा, "मुझसे पूछ कर वे नहीं गए. पूछूंगा तब बताऊंगा कि क्यों गए? मैं तो सुबह से मंत्रालय (सचिवालय) में था." 

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महाराष्ट्र में फिर हलचल है, कुछ तो जरूर गड़बड़ है

अजित पवार की नाराजगी की खबरें लगातार सामने आ रही हैं. कुछ दिनों पहले भी शिंदे-फडणवीस दिल्ली जाकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिले थे. उनके साथ तब भी अजित पवार नहीं थे. उस वक्त भी नाराजगी की खबरें सामने आईं थीं. इस बार जब संशय बढ़ने लगा तो मामले पर पर्दा डालते हुए अजित पवार के सहयोगी और एनसीपी सांसद प्रफुल पटेल ने कहा, "वे दोनों किसी मुद्दे पर समाधान ढूंढने की कोशिश करने दिल्ली गए होंगे, महाराष्ट्र सरकार में शामिल तीनों पार्टियों से जुड़े कुछ लंबित मामले हैं, मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भी बातचीत की संभावना हो सकती है."

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आरक्षण का मुद्दा गरमाया, अजित पवार ने मौके पर चौका लगाया

महाराष्ट्र में एक बार फिर मराठा आरक्षण की मांग ने जोर पकड़ा है. मराठा नेता मनोज जरांगे ने राज्य सरकार को आरक्षण देने के लिए 40 दिनों का अल्टीमेटम दिया था. इसके बाद उनके अनशन का दूसरा चरण शुरू हो चुका है. मराठा आरक्षण पर विमर्श के लिए राज्य सरकार ने एक समिति का गठन किया है. समिति ने और समय की मांग की है. महाराष्ट्र में 32 फीसदी आबादी मराठा है. राजस्थान-हरियाणा के जाट-गुर्जरों और गुजरात के पटेलों की तरह महाराष्ट्र का मराठा समाज आरक्षण की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन कर रहा है. 

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मौका देख कर मारी किक, यह है पवार प्रेशर पॉलिटिक्स!

यह बात साफ हो चुकी है कि एकनाथ शिंदे को साथ लाने के पीछे बीजेपी के दो मकसद थे. एकनाथ शिंदे शिवसैनिक भी हैं और मराठा भी. लेकिन एकनाथ शिंदे के साथ दिक्कत यह है कि उनकी छवि कभी एक मराठा नेता के तौर पर नहीं रही. जल्दी ही यह बात बीजेपी को भी समझ आ गई और फिर अजित पवार की बीजेपी-शिवसेना सरकार में एंट्री हुई. अजित पवार एक स्ट्रॉन्ग मराठा लीडर के तौर पर पहचाने जाते हैं. मराठा आरक्षण की मांग के जोर पकड़ते ही अजित पवार ने मौके पर चौका लगाया है. कास्ट सर्वे की मांग करके शिंदे-फडणवीस को अपनी हैसियत का एहसास दिलाया है. इसे पवार प्रेशर पॉलिटिक्स समझा जा रहा है.  

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महाराष्ट्र की इस वक्त की राजनीति में अजित पवार की भूमिका अहम है. जिन राज्यों में अभी चुनाव होने हैं, उनमें राजस्थान, मध्य-प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम हैं, लेकिन कास्ट सर्वे और आरक्षण की मांग को लेकर महाराष्ट्र की राजनीति भी फिलहाल गरम है. 

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