दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की क्राइम ब्रांच (Crime Branch) ने राजधानी में महिलाओं द्वारा चलाये जा रहे एक ऐसे गैंग का भंडाफोड़ किया है जो गरीब परिवारों के नवजात बच्चों को खरीदकर उन्हें बड़ी रकम में जरूरतमंद लोगों को बेचने का काम कर रहा था. पुलिस ने गैंग की 6 सदस्यों को गिरफ्तार किया है. उनके पास से 2 नवजात बच्चे बरामद किए गए हैं जबकि भविष्य में बेचे जाने वाले 10 बच्चों की पहचान की गई है. गैंग की मास्टरमाइंड प्रियंका फरार है और उसकी तलाश की जा रही है. इस बात की जानकरी देते हुए दिल्ली में डीसीपी क्राइम ब्रांच राजेश देव ने बताया - ''क्राइम ब्रांच की टीम को पता लगा कि बच्चों को बेचने वाला गैंग सक्रिय है.
जानकारी मिली थी कि गैंग के सदस्य गांधी नगर शमशान घाट के पास एक बच्चे को बेचने आ रहे हैं. इसके बाद पुलिस ने जाल बिछाकर गैंग की तीन महिला सदस्यों प्रिया जैन, प्रिया, काजल उर्फ कोमल को मौके पर ही पकड़ लिया. यह लोग 6-7 दिन के नवजात को बेचने के लिए साथ लाई थीं.'' पुलिस को उन्होंने पूछताछ के दौरान बताया कि वे जल्द पैसा कमाने के लिए इस नवजात को बेचने आई थीं. बच्चे को प्रिया की बड़ी बहन प्रियंका लेकर आई थी. इसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज करके जांच शुरू कर दी जिसके बाद इन महिलाओं को गिरफ्तार किया गया. इसके बाद 18 दिसंबर को गैंग से जुड़ी 2 और महिलाएं भी पकड़ी गईं. उनके पास से बरामद हुई नवजात बच्ची एक गरीब परिवार से खरीदी गई थी और आगे बेचने की तैयारी थी.
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जांच के दौरान सामने आया कि ये सभी आरोपी महिलाएं गरीब परिवारों से हैं. पहले यह लोग आईवीएफ सेंटर के संपर्क में आई थीं जहां वे अपने एग को आईवीएफ (IVF) में डोनेट करने का धंधा करने लगीं. उन्होंने पुलिस को बताया कि इसके बदले उन्हें 20 से 25 हज़ार रुपयो मिलते थे. उसी दौरान ये कई ऐसे लोगों के सम्पर्क में आईं जिनके बच्चे नहीं थे. पुलिस को इन महिलाओं ने बताया कि आरोपी काजल कई पेरेंट्स को IVF सेंटर ले जाती थी, जिसके बदले उसे कमीशन मिलता था.
धीरे-धीरे उन लोगों ने एक बड़ा नेटवर्क बना लिया जो अपने एग्स को IVF में डोनेट करने का काम कर रहे थे. वे बच्चों को जरूरतमंद परिवारों को बेच देती थी और बदले में उन्हें पैसा मिलता था. इस तरह उनका रैकेट चल निकला. जानकारी के मुताबिक ये लोग उन सभी से कहते थे कि बेचे जाने वाला बच्चा अवैध नहीं है. फिर वो एडॉप्शन के दस्तावेज बनाती और 2 से 3 लाख रुपयो कमीशन लेती. जरूरतमंद परिवारों की पहचान करके ये व्हाट्सऐप पर बच्चे की फोटो भेजते थीं.
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