50 रुपए की घूस का आरोप और 27 साल बाद फैसला... सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी शख्‍स को किया बरी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की स्थिति अन्य आरोपियों जैसी ही है और उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है. पैसे अन्‍य आरोपी ने लिए थे और वह अब जीवित भी नहीं हैं. इसलिए केवल अपीलकर्ता को दोषी ठहराना उसके साथ भेदभाव है.

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  • सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के मामले में आरोपी सिपाही असगर अली सैयद को बरी कर दिया है.
  • यह कानूनी लड़ाई करीब 27 सालों तक चली और यह मामला 50 रुपए की घूस लेने का था.
  • 1998 में गुजरात के खेड़ा जिले में ट्रक ड्राइवर से घूस लेने के मामले में कार्रवाई की गई थी.
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नई दिल्‍ली :

सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए आरोपी सिपाही को बरी कर दिया है. साथ ही गुजरात हाई कोर्ट के सिपाही को दोषी ठहराने के फैसले को रद्द कर दिया है. ये कानूनी लड़ाई 27 साल चली और मामला 50 रुपए की घूस लेने का था. आरोपी सिपाही का नाम असगर अली सैयद है और वो घटना के समय गुजरात ट्रैफिक पुलिस में सिपाही था.

मामले के मुताबिक, जुलाई 1998 में खेड़ा जिले में हाईवे पर एंटी करप्शन ब्यूरो ने एक ट्रक ड्राइवर से 50 रुपए घूस लेने के मामले में ट्रैप की कार्रवाई की. इस दौरान एक व्यक्ति को 50 रुपए की घूस लेते पकड़ा गया. उसने कहा कि पास ही पुलिस जीप के पास खड़े तीन पुलिस वालों ने उसे 50 रुपए लेने के लिए कहा था. हालांकि 2005 में ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों में विरोधाभास और गवाहों की गवाही में कमी पाते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया था.

हाई कोर्ट ने सिर्फ असगर को दोषी ठहराया

हालांकि, गुजरात हाई कोर्ट ने सितंबर 2018 में अपील पर सुनवाई करते हुए सिर्फ आरोपी नंबर-2 यानी असगर को दोषी ठहराया और बाकी दोनों पुलिसवालों को बरी कर दिया, जबकि 50 रुपए लेने वाले आरोपी की मौत हो चुकी थी. असगर को एक साल की कैद की सजा सुनाई गई. इस मामले में सिपाही ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2018 में चार हफ्ते में सरेंडर करने का आदेश जारी किया. हालांकि जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपील लंबित रहने के दौरान जमानत पर रिहा कर दिया.

अब सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने असगर को बरी करने के आदेश दिए हैं.

समानता के आधार पर मांगी राहत

आरोपी की ओर से पेश वकील राजीव कुमार ने दलील दी कि दोनों आरोपी पुलिस वालों को हाई कोर्ट ने बरी कर दिया था, जबकि उनके मुवक्किल को सजा दी गई. हालांकि इस मामले में आरोपी असगर के पास से रुपए नहीं मिले थे और उसकी स्थिति भी बाकी दोनों पुलिस वालों जैसी है. समानता के आधार पर असगर अली को भी वही राहत मिलनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि अपीलकर्ता (आरोपी नंबर-2) की स्थिति अन्य आरोपियों जैसी ही है और उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है. पैसे आरोपी नंबर-4 ने लिए थे और वह अब जीवित भी नहीं हैं. इसलिए केवल अपीलकर्ता को दोषी ठहराना उसके साथ भेदभाव है.

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अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए बरी करने के आदेश को ही बहाल किया जाता है. हाई कोर्ट का फैसला रद्द कर दिया गया है और अपील मंजूर की जाती है.

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