Explainer : अबू धाबी से कतर तक भारत की गूंज, PM मोदी कैसे बदल रहे कूटनीति का भूगोल?

अरब की दुनिया आज भारत के जितने क़रीब है, उतनी करीब पहले कभी नहीं रही. लेकिन कूटनीति की दुनिया कभी इतनी सरल नहीं होती. उसमें जितना हासिल होता है, उतना ही छूटने का ख़तरा होता है.

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नई दिल्ली:

पहले अबू धाबी में एक शानदार हिंदू मंदिर का उद्घाटन और फिर क़तर की यात्रा- ठीक इसके पहले 8 भारतीयों को फांसी के फंदे से सुरक्षित वतन वापस लाने का करिश्मा. बीते कुछ दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने पश्चिम एशिया में भारतीय कूटनीति को बिल्कुल नए मुकाम दिए हैं. अरब की दुनिया आज भारत के जितने क़रीब है, उतनी करीब पहले कभी नहीं रही. लेकिन कूटनीति की दुनिया कभी इतनी सरल नहीं होती. उसमें जितना हासिल होता है, उतना ही छूटने का ख़तरा होता है. पश्चिम एशिया से भारत की इस नई क़रीबी पर इज़रायल से लेकर ईरान तक की नज़र होगी. 

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यूएई के साथ ईरान को भी साधने की चुनौती
यूएई हमेशा से एक प्रगतीशील देश रहा है. यूएई के साथ अच्छे रिश्ते बनाकर मोदी सरकार ने अरब देशों में अपनी पकड़ को मजबूत किया है. यूएई के प्रमुख और पीएम मोदी के रिश्ते बेहद मजबूत हैं. यही कारण रहा कि यूएई में हिंदू मंदिर के लिए जमीन भी उपलब्ध करवाया गया. अब भारत को अपने रणनीति से यह दिखाना होगा कि किस तरह से ईरान और अरब के देशों दोनों को ही साधा जा सके. जिसे चीन ने कर दिखाया है. भारत के लिए भी इस क्षेत्र में इन तमाम देशों के साथ संतुलित रिश्ते की बेहद आवश्यकता है.

नौसेना अधिकारियों की मौत की सजा खत्म हुई
अगस्त 2022 मे कतर की खुफिया एजेंसी ने कथित जासूसी मामले में दोहा में आठ भारतीय नागरिकों को गिरफ्तार किया था.  वो लोग एक निजी कंपनी के लिए काम करते थे.  कतर के अधिकारियों ने उन पर पनडुब्बी पर जासूसी करने का आरोप लगाकर जेल भेज दिया था. इस मामले में उनको मौत की सजा सुनाई गई थी.

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नवंबर 2023 में भारत सरकार ने कतर की एक उच्च अदालत में मौत की सजा के खिलाफ अपील दायर की. साथ ही कूटनीतिक प्रयास भी तेज किया, जिसका नतीजा ये निकला कि पहले उनकी मौत की सजा को जेल की सजा में बदला गया और फिर उनकी भारत वापसी भी हो गई.  

कतर के लिए भारत का बाजार है महत्वपूर्ण
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मामले को संभाला और रिहाई के लिए जमीन तैयार की.खास बात ये है कि ये रिहाई उस वक्त हुई जब दोनों देशों के बीच लिक्विफाइड नेचुरल गैस यानी एलएनजी पर एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ. ये डील 20 सालों के लिए हुई है जिसमें 78 अरब डॉलर लगा है. भारत की पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड (पीएलएल) कंपनी ने कतर की सरकारी कंपनी कतर एनर्जी के साथ ये करार किया है. इस समझौते के तहत कतर हर साल भारत को 7.5 मिलियन टन गैस निर्यात करेगा.इस गैस से भारत में बिजली, उर्वरक और सीएनजी बनाई जाएगी. यानी रिश्तों के साथ रुपयों की गर्मजोशी ने भी अपना रंग दिखाया. पीएम मोदी ने भारत से कतर की दोस्ताना संबंधों को कारोबारी मजबूती दी है. 

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विदेश मामलों के जानकार ब्रह्म चेलानी इस मुद्दे पर कहते हैं कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने स्तर पर कूटनीतिक खिड़की खोलकर रखा. उस पर से पीएम मोदी का दस साल में दो बार कतर जाकर संबंधों में मानवीय पक्ष का निवेश इस संकट की घड़ी में काम आया. 

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