राजस्थान के कोटा में छात्र-छात्राओं के खुदकुशी के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. अब NEET की तैयारी कर रही 19 साल की छात्रा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. छात्रा मध्य प्रदेश के सागर की रहने वाली थी. वह एक साल से कोटा में रहकर NEET की कोचिंग कर रही थी. 7 मई को उसका NEET UG का एग्जाम था. पुलिस को हॉस्टल के रूम से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. लाश का पोस्टमॉर्टम कराया गया है. जांच जारी है.
रिपोर्ट के मुताबिक, राशि जैन (19) कोटा के तलवंडी इलाके के एक हॉस्टल में रहती थी. बताया जा रहा है कि वह कई दिन से कोचिंग भी नहीं जा रही थी. छात्रा बीमार रहती थी. उसके रूम से पुलिस को कुछ दवाइयां मिली हैं. कुछ किताबें बिखरी पड़ी थीं. बताया जा रहा है कि छात्रा परीक्षा को लेकर मानसिक तनाव के कारण पढ़ाई नहीं कर पा रही थी. घटना मंगलवार दोपहर 3 बजे की है. बुधवार को उसका पोस्टमॉर्टम कराया गया.
चुनरी से लगाई फांसी
हॉस्टल में रहने वाली अन्य छात्राओं ने राशि को मंगलवार सुबह से नहीं देखा था. वह रूम से बाहर नहीं निकली थी. इस पर दोपहर में हॉस्टल संचालक को सूचना दी गई. पुलिस को भी सूचना दी गई. पुलिस पहुंची तो रूम का दरवाजा तोड़ा गया, अंदर राशि पंखे पर चुनरी के फंदे से लटकी था. रिपोर्ट के मुताबिक, राशि अपने परिवार में सबसे छोटी थी. उसके पिता खेती-किसानी करते हैं.
क्या कहती है पुलिस?
राम सहाय , SI जवाहर नगर ने बताया- 'छात्रा ने मंगलवार दोपहर को सुसाइड किया. उसने अपनी चुनरी से फांसी लगाई थी. फिलहाल खुदकुशी का कारण सामने नहीं आया है. छात्रा बीमार थी, हॉस्टल में रहकर ही एग्जाम की तैयारी कर रही थी. बीमार होने के कारण सम्भवत: पढ़ाई ठीक से नहीं कर पा रही थी.'
कोटा में इस साल सुसाइड का सातवां केस
राशि की आत्माहत्या एक चिंताजनक रुझान को दर्शाता है. NEET और IIT की तैयारी कर रहे छात्रों में तनाव इतना बढ़ जाता है कि उन्हें जीने से ज्यादा आसान मरना लगता है. कोटा में इस साल सुसाइड का सातवां केस है. साल 2022 में कोटा के अलग-अलग हॉस्टल में 17 छात्रों ने खुदकुशी की थी. 2019 और 2020 के कोरोना महामारी के बाद 2021 में कोचिंग क्लासेस दोबारा शुरू हुई, तो 9 छात्रों के आत्महत्या का मामला सामने आया. ये आंकड़े बताते हैं कि कोटा में सुसाइड के मामलों में 60 फीसदी का उछाल आया है. पढ़ाई और मेरिट में आने का दबाव इसका सबसे बड़ा कारण है.
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक?
बढ़ते सुसाइड के मामलों पर मनोवैज्ञानिक डॉ. विनोद दर्दिया कहते हैं, "बच्चा छोटी उम्र का होता है. हॉस्टल में पढ़ाई के साथ-साथ एकदम से सारे काम खुद से करने होते हैं. इससे मानसिक तनाव होता है, जो इसमें खुद को ढाल नहीं पाते वो धीरे-धीरे ऐसी स्थिति में पहुंच जाते हैं कि जीने से ज्यादा मरना ज्यादा आसान लगता है."
कोटा में सुसाइट के पैटर्न को देखें, तो 90% आत्माहत्या फांसी से लटकने से हुई है. ऐसे में प्रशासन का सुझाव है कि कोचिंग में दाखिला लेने से पहले बच्चों की स्किल मापी जानी चाहिए और उनकी काउंसलिंग की जानी चाहिए.
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