ये कैसी आर्थिक राजधानी? VIP इलाके में शौचालय के लिए प्रदर्शन, 1200 परिवार खुले में शौच को मजबूर

मुंबई की 60% से अधिक आबादी बस्तियों में रहती है और ये बस्तियां सामुदायिक शौचालयों पर निर्भर हैं. देश के सबसे अधिक करदाताओं के इस शहर में एक ऐसा इलाका भी है, जहां शौचालय जैसी बुनियादी जरूरत के लिए लोगों को महीनों तक संघर्ष करना पड़ता है.

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मुंबई:

देश और दुनिया जहां क्रिसमस और न्यू ईयर के जश्न में डूबी हुई है, वहीं आर्थिक राजधानी मुंबई के वीआईपी इलाके वर्ली की एक बस्ती बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रही है. यहां के लोग, खासतौर पर महिलाएं और बच्चियां, शौचालय की सुविधा के अभाव में विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर हैं. चुनावी दौरों के दौरान इनकी समस्याएं तो सुनी गईं, लेकिन उन्हें हल करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.

13,000 करोड़ की लागत से बना कोस्टल रोड यहीं से शुरू होता है. रोज़ाना इस सड़क से नेता और वीआईपी गुजरते हैं, लेकिन इसी सड़क के किनारे स्थित महात्मा फुले नगर नाम की बस्ती की बदहाली पर अब तक किसी की नजर नहीं पड़ी. या शायद जानबूझकर नजरें फेर ली गई हैं.

इस बस्ती में पिछले 40 सालों से 1,200 परिवार रह रहे हैं. करीब एक साल पहले यहां का शौचालय जर्जर हालत में था, जिसे तोड़ दिया गया. तब से अब तक यहां के लोग शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा के लिए तरस रहे हैं.

यहां के निवासियों ने बताया कि बीएमसी ने साल भर पहले शौचालय तो तोड़ दिया, लेकिन अब तक नया नहीं बनाया।.मजबूरी में नगरसेवक ने अस्थायी मोबाइल टॉयलेट की व्यवस्था कराई, लेकिन वो भी अब टूट चुका है. लोगों ने बताया कि बीएमसी और नेताओं से बार-बार शिकायत कर थक गए हैं. आदित्य ठाकरे यहां से चुनाव जीत गए, सब वोट मांगने आए थे और शौचालय बनवाने का वादा किया था. लेकिन चुनाव के बाद कोई देखने तक नहीं आया.

स्थानीय निवासियों का कहना है कि सफाई के लिए उन्हें अपनी जेब से 5 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. एक निवासी ने कहा कि बीएमसी के कर्मचारी यहां झांकने तक नहीं आते.

अस्थाई रूप से इनके लिए बनाये इस मोबाइल टॉयलेट के नज़दीक जाने पर भी बदबू बेहोश करती है. बुजुर्ग महिलायें और छोटी बच्चियां ख़ास तौर से मुश्किल के दिन काट रही हैं. 

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स्थानीय निवासियों ने बताया कि यहां सफाई की व्यवस्था नहीं है, शौचालय के दरवाजों में ताले नहीं हैं, जिससे महिलाओं को काफी परेशानी होती है. बुजुर्ग शौचालय तक चढ़ नहीं पाते, बच्चे भी असुरक्षित महसूस करते हैं. रात में बच्चे शौचालय जाने के लिए माता-पिता का इंतजार करते हैं, क्योंकि कभी भी कोई अजनबी उनके साथ कुछ गलत कर सकता है.

मुंबई की 60% से अधिक आबादी बस्तियों में रहती है और ये बस्तियां सामुदायिक शौचालयों पर निर्भर हैं. देश के सबसे अधिक करदाताओं के इस शहर में एक ऐसा इलाका भी है, जहां शौचालय जैसी बुनियादी जरूरत के लिए लोगों को महीनों तक संघर्ष करना पड़ता है. यह स्थिति न केवल हैरान करती है, बल्कि गहरा दुख भी पहुंचाती है.
 

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