Digestive System of Human Body: आजकल भागदौड़ भरी लाइफ में लोगों की सेहत से जुड़ी दिक्कत और परेशानियां कम होने का नाम नहीं लेती. बड़े-बुजुर्ग कह गए हैं कि सभी बीमारियों की जड़ पेट की गड़बड़ी है. अगर आपका पेट यानी डाइजेस्टिव सिस्टम सही काम कर रहा हो तो सेहत ठीक बनी रहती है. इसको लेकर एक कनफ्यूजन ये होता है कि हमारा डाइजेस्टिव सिस्टम या पाचन तंत्र काम कैसे करता है. इसके साथ ही दूसरा सवाल खड़ा होता है कि हम कैसे समझें कि हमारा खाया हुआ फूड सही से पच रहा है या नहीं?
How we digest food : खाने की पहली बाइट से शुरू हो जाती डाइजेशन की प्रक्रिया
मेडिकल साइंस के मुताबिक हमारे खाना के पचने की शुरुआत हमारे पहले कौर या बाइट से ही शुरू हो जाता है. हमारे मुंह में मौजूद स्लाइवा सबसे पहले खाने के स्टार्च को अलग करता है. यानी स्टार्च बेस्ड खाना जैसे फल या आलू वगैरह का बड़ा हिस्सा मुंह में ही डाइजेस्ट हो जाता है. इसलिए खाने को काफी चबाकर निगलने के लिए कहा जाता है. चबाया और निगला हुआ खाना पेट में जाता है. पेट में तीन एंजाइम हाइड्रोक्लोरिक एसिड म्यूकस और पेप्सीन इसको पचाने में मदद करते हैं.
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पेट में कैसे और क्या काम करते हैं ये तीन खास एंजाइम
पेप्सीन आपके खाने में मौजूद प्रोटीन को डाइजेस्ट करने में मदद करता है. पेप्सीन के काम में एसिडिक मीडियम मुहैया कराने का काम हाइड्रोक्लोरिक एसिड करता है. इस काफी स्ट्रॉन्ग एसिड से पेट के इनर वॉल की सुरक्षा का काम म्यूकस करता है. इस तीनों के बैलेंस से पेट में चर्निंग के दौरान खाने के साथ बाकी जरूरी एंजाइम भी घुलते हैं और वह पूरी तरह पच जाता है. अगर इन तीनों के बैलेंस में दिक्कत हुई तो चर्निंग कम होता है और अपच या बदहजमी जैसी शिकायत होती है. इससे बचने के लिए ही भूख से थोड़ा कम खाने के लिए कहा जाता है.
खाना पचाने के लिए क्यों जरूरी है फिजिकल एक्टिविटी
इस पूरी प्रक्रिया में चार पांच घंटे लगते हैं. उसके बाद खाना छोटी आंत (स्मॉल इंटेस्टाइन) में जाता है. लिवर में बनने वाला बाइल जूस यहां खाना में मिलता है. यह फैट को अच्छे से पचाता है. वहीं, कुछ और एंजाइम यहां खाने के बचे हुए प्रोटीन को पचाते हैं. इसके बाद होने वाले पेरिस्टिल मूवमेंट बचे हुए खाने को आगे बढ़ाते हैं. इसके लिए फिजिकल एक्टिविटी को काफी जरूरी बताया गया है. यहीं पर खाने के पौष्टिक तत्वों को अलग कर ब्लड सेल्स तक पहुंचाने का प्रक्रिया पूरी होती है. इसके बाद बचा हुआ हिस्सा मल के रूप में बॉडी से बाहर निकल जाता है.
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