International Women's Day 2022: किसी भी प्रकार के गर्भनिरोधक के बिना एक साल तक प्रयास करने के बाद भी गर्भधारण करने में अक्षमता को बांझपन या वंध्यत्व कहा जाता है. भारत में करीबन 10-15 प्रतिशत कपल्स को बांझ पाया गया है. शादी के बाद जब भी किसी कपल्स को बच्चा नहीं हो पा रहा हो तो समाज आम तौर पर महिला को दोषी मानता है. प्रसूति बच्चों के पालन-पोषण को मां की जिम्मेदारी मानने की प्रथा के कारण बांझपन की जिम्मेदार भी महिला को ही मानने की परंपरा पुराने समय से चलती आ रही है. वैज्ञानिक ज्ञान के आभाव के कारण लोग पारंपरिक और आध्यात्मिक इलाजों की ओर जाते हैं और कुछ न कुछ करके राहत पाने की कोशिश करते हैं. महिलाओं पर लगाया गया यह बेबुनियाद, असंगत दोष उन सबसे बड़े मिथ्स में से एक है जो आज तक मौजूद है. मेडिकल टेस्ट से यह साबित किया गया है कि बांझपन का कारण पुरुषों और महिलाओं दोनों में से किसी के भी शरीर में हो सकता है.\
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शोध ने भी ज्यादातर कारणों का पता लगाने में मदद की है. पुरुषों में डायबिटीज और संक्रमण जैसी बिमारियों की वजह से शुक्राणु की गुणवत्ता और मात्रा प्रभावित हो सकती है. महिलाओं में पॉली-सिस्टिक ओवरी सिंड्रोम/बीमारी, एंडोमेट्रियोसिस, डायबिटीज और अपर्याप्त थायराइड लेवल ऐसी कई समस्याएं हो सकती हैं. हार्मोनल असंतुलन, प्रजनन अंगों की अनफेयरनेस और आनुवंशिक दोष पुरुषों और महिलाओं दोनों में हो सकते हैं. इसलिए पुरुषों में प्रजनन क्षमता में समस्याओं के कारण भी कपल्स को बच्चा पैदा करने में असमर्थता हो सकती है, इसका उल्टा भी हो सकता है. इसका मतलब यह भी है कि बच्चा ना हो पाने के लिए सिर्फ महिला को ही दोषी ठहराना बिल्कुल गलत होगा.
हमारे समाज में पायी जाने वाली और एक गलत धारणा यह है कि जैसे ही कोई लड़की 20 से 30 के बीच की उम्र में आती है उसे लगातार याद दिलाया जाता है कि उसकी बायोलॉजिकल क्लॉक टिक-टिक कर रही है. अपने लिए साथी खोजने और शादी करने के लिए दबाव से लेकर एग की उम्र निकली जा रही है और प्रजनन क्षमता कम हो रही है ऐसी कई बातें लगातार सुननी पड़ती हैं.
सोशल एग फ्रीजिंग आज की महिलाओं के लिए पसंदीदा विकल्प क्यों बन रहा है?
आज कई महिलाएं कई कारणों से 35 साल की आयु तक परिवार नियोजन करना स्थगित कर देती हैं. पिछले कुछ दशकों में हाई एजुकेशन और बेहतर करियर उपलब्धियों के कारण महिलाओं की स्थिति में कई गुना सुधार हुआ है. नतीजतन कई महिलाएं अपनी महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के लिए परिवार नियोजन को टाल रही हैं. आज कई कपल्स तब तक बच्चा नहीं चाहते जब तक कि वे अपने बच्चों के लिए एक अच्छा जीवन दे पाने के लिए मानसिक और आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हो जाते. हम मनुष्य कई मायनों में विकसित हुए हैं लेकिन हमारे शरीर की प्रजनन क्षमता अभी भी हमारी उम्र से जुड़ी हुई है.
किसी सामाजिक या व्यक्तिगत कारणों से महिला बच्चे के जन्म में देरी करना चाहती है तो सोशल एग फ्रीज़िंग में उनके (स्वस्थ फर्टाइल महिलाओं) एग्स को इकठ्ठा किया जाता है. जो कपल्स प्रेग्नेंसी में देरी करना चाहते हैं या बच्चा पैदा करना है या नहीं इसके बारे में सुनिश्चित नहीं हैं, लेकिन भविष्य में अगर बच्चा चाहे तो उसके साथ अपने आनुवंशिक संबंध शेयर करने के विकल्प खुले रखना चाहते हैं तो उनके लिए यह एक विएबल अल्टरनेटिव है, जिनका पहला बच्चा अभी हुआ है और दूसरे बच्चे के बारे में कुछ सालों के बाद सोचना चाहेंगी ऐसी महिलाओं के लिए यह विकल्प उपयुक्त हो सकता है.
कई महिलाओं के शरीर में बायोलॉजिकल विकास डिजायर टाइम फ्रेम के अनुसार न होने की वजह से उन्हें प्रजनन संबंधी चिंताओं का सामना करना पड़ता है. जब इस चिंता के साथ सही जीवनसाथी न मिल पाने की चिंता भी जुड़ जाती है तब उन्हें अपने जीवन की मनचाही प्राथमिकताओं पर समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. ऐसे कई कारण हैं, जिनकी वजह से अधिकतम महिलाएं अपने फर्टाइल सालों में अपने एग्स को फ्रीज़ करने का विकल्प चुन रही हैं.
एग फ्रीजिंग के चिकित्सीया कारण:
एग फ्रीजिंग के विकल्प को कई तरह के चिकित्सीय कारणों से भी चुना जा सकता है. कैंसर रोगियों में विकिरण और कीमोथेरेपी का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे उस स्थिति से उबरने के बाद गर्भधारण करना कठिन हो जाता है. नतीजतन, ऐसे व्यक्ति इलाज से पहले एग्स फ्रीज़ करना चुन सकते हैं. एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित महिलाओं में प्रजनन प्रणाली में बने स्कार टिश्यू की वजह से गर्भधारण करना कठिन हो जाता है. इससे प्रजनन प्रणाली में सूजन आती है जिससे यह अंडों की गुणवत्ता को भी कम कर सकता है. उन महिलाओं के लिए भी एग फ्रीज़िंग फायदेमंद साबित होता है.
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संक्षेप में कहा जाए तो, सोशल एग फ्रीजिंग महिलाओं को गर्भावस्था को कुछ सालों तक स्थगित करने की अनुमति देता है और बाद में जब बच्चा हो तब वह अपने बच्चे के साथ अपने जैविक संबंधों को भी बनाए रख सकती हैं. अपनी महत्वाकांक्षाओं को प्राप्त करने पर ध्यान और समय जुटाने के लिए उत्सुक महिलाओं को सोशल एग फ्रीज़िंग प्रजनन स्वतंत्रता प्रदान करता है, जिसकी वजह से इसकी लोकप्रियता काफी बढ़ रही है.
समाज से मिथकों और कलंकों को दूर हटाने के लिए पहला कदम है शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना. सामुदायिकता जागरूकता शिविरों और रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्रों और यहां तक कि सोशल मीडिया जैसे कई मीडिया के माध्यम से जानकारी फैलाकर जागरूकता निर्माण की जा सकती है. इस सांस्कृतिक परिवर्तन में महिलाओं की भूमिका सबसे अहम होनी जरूरी है, क्योंकि पूर्वाग्रह का सबसे पहला शिकार वो ही हैं. समाज से कलंक को खत्म करने की शुरूआत जमीनी स्तर से की जानी चाहिए, समाज के कई लोगों द्वारा मानी जाने वालों बातों को चुनौती देना जरूरी है.
(डॉ क्षितिज मुर्डिया, सीईओ और को-फाउंडर, इंदिरा आईवीएफ)
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