एडीएचडी को तब पहचाना जाता है जब लोगों को हाइपरएक्टिविटी और इंपल्स की समस्याओं का अनुभव होता है. कुछ लोग इस स्थिति को अटेंशन डेफिसिट डिसआर्डर या एडीडी कहते हैं, जिसे पहले एडीडी कहा जाता था उसे अब एडीएचडी के नाम से जाना जाता है. तो फिर दोनो को अलग नाम से क्यों पुकारा जाता है? आइये कुछ इतिहास से शुरुआत करते हैं. हाइपरएक्टिविटी वाले बच्चों का पहला मामला 1902 में सामने आया था. ब्रिटिश बाल रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर जॉर्ज स्टिल ने 43 बच्चों (जो उद्दंड, आक्रामक, अनुशासनहीन और बेहद भावुक या संवेदनशील थे) पर अपने अवलोकन के बारे में लेक्चर की एक सीरीज प्रस्तुत की.
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तब से स्थिति के बारे में हमारी समझ विकसित हुई और इसने मेंटल डिसऑर्डर के डायग्नोस और सांख्यिकीय मैनुअल में अपना स्थान बनाया, जिसे डीएसएम के रूप में जाना जाता है. मानसिक स्वास्थ्य और न्यूरोडेवलपमेंटल कंडिशन को डायग्नोस करने के लिए थेरेपिस्ट डीएसएम का उपयोग करते हैं.
1952 में प्रकाशित पहले डीएसएम में किसी विशिष्ट संबंधित बच्चे या किशोर श्रेणी को शामिल नहीं किया गया था, लेकिन 1968 में प्रकाशित दूसरे संस्करण में युवा लोगों में व्यवहार संबंधी विकारों पर एक खंड शामिल था. इसने एडीएचडी-प्रकार की विशेषताओं को "बचपन या किशोरावस्था की हाइपरकिनेटिक प्रतिक्रियाठ के रूप में संदर्भित किया.
1980 के दशक की शुरुआत में तीसरे डीएसएम ने "अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर" नामक एक शर्त जोड़ी, जिसमें दो प्रकारों को लिस्टेड किया गया:
हाइपरएक्टिविटी (एडीडीएच) के साथ अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर और हाइपरएक्टिविटी के बिना सब टाइप के रूप में अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर.
हालांकि, सात साल बाद एक संशोधित डीएसएम (डीएसएम-III-आर) ने एडीडी (और इसके दो सब-टाइप) को एडीएचडी से बदल दिया और आज हमारे पास तीन सब-टाइप हैं:
एडीडी को एडीएचडी में क्यों बदलें?
एडीएचडी ने कई कारणों से 1987 में डीएसएम-III-आर में एडीडी को प्रतिस्थापित कर दिया. सबसे पहले अतिसक्रियता की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर विवाद और बहस थी: एडीएचडी में "एच" जब प्रारंभ में एडीडी को नाम दिया गया था, तो दो सब-टाइपों के बीच समानताएं और अंतर निर्धारित करने के लिए बहुत कम शोध किया गया था.
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अगला मामला "ध्यान-कमी" शब्द के आसपास था और क्या ये कमी दोनों सब-टाइपों में समान या अलग थी. इन अंतरों की सीमा के बारे में भी प्रश्न उठे: अगर ये सब-टाइप इतने अलग थे, तो क्या वे वास्तव में अलग स्थितियां थीं? इस बीच, असावधानी पर एक नए फोकस (ध्यान की कमी) ने माना कि असावधान व्यवहार वाले बच्चे आवश्यक रूप से डिसरप्टिव और चुनौतीपूर्ण नहीं हो सकते हैं, लेकिन उनके भुलक्कड़ और दिवास्वप्न देखने वाले होने की ज्यादा संभावना है.
कुछ लोग एडीडी शब्द का उपयोग क्यों करते हैं?
1980 के दशक में डायग्नोस में बढ़ोत्तरी हुई थी. तो यह समझ में आता है कि कुछ लोग अभी भी एडीडी शब्द पर कायम हैं. कुछ लोग इसे आदत के कारण एडीडी के रूप में पहचान सकते हैं, क्योंकि मूल रूप से उनका यही डायग्नोस किया गया था या क्योंकि उनमें हाइपरएक्टिविटी के लक्षण नहीं हैं.
अन्य लोग जिन्हें एडीएचडी नहीं है, वे उस शब्द का उपयोग कर सकते हैं जो उन्होंने 80 या 90 के दशक में देखा था, बिना यह जाने कि शब्दावली बदल गई है.
वर्तमान में एडीएचडी का निदान कैसे किया जाता है?
असावधान सब-टाइप वाले लोगों को एकाग्रता बनाए रखने में कठिनाई होती है, वे आसानी से विचलित और भुलक्कड़ हो सकते हैं, अक्सर चीजें खो देते हैं और लंबी गाइडलाइन्स को फॉलो करने में असमर्थ होते हैं.
हाईपर एक्टिविटी: इस सब-टाइप वाले लोगों को स्थिर रहना कठिन लगता है, स्ट्रक्चर्ड सिचुएशन में टिक कर नहीं बैठते हैं, बार-बार दूसरों को बाधित करते हैं, बिना रुके बात करते हैं और इन्हें खुद पर कोई काबू नहीं होता है.
इन दोनो के कंबाइंड सब टाइप वाले लोग उन दोनो तरह के लोगों की विशेषताओं का अनुभव करते हैं जो असावधान और हाइपरएक्टिव होते हैं.
बच्चों और वयस्कों में एडीएचडी का निदान लगातार बढ़ रहा है और जबकि एडीएचडी का निदान आमतौर पर लड़कों में किया जाता था, हाल ही में हमने इसके निदान वाली लड़कियों और महिलाओं की संख्या में वृद्धि देखी है.
स्थिति के बारे में हम जो जानते हैं उसे दर्शाने के लिए नाम बदलने के बावजूद, एडीएचडी कई बच्चों, किशोरों और वयस्कों की शैक्षिक, सामाजिक और जीवन स्थितियों को प्रभावित कर रहा है.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)