हर रोज होने वाले स्ट्रेस को दूर करने में मदद कर सकती है वियरेबल टेक्नोलॉजी

एक नए अध्ययन से पता चला है कि वर्चुअल और ऑगमेंटेड रियलिटी (वीआर/एआर) तकनीक के जरिए तनाव भरी परिस्थितियां कृत्रिम रूप से बनाई जा सकती हैं, जिससे लोग तनाव को दूर करने के उपायों का अभ्यास कर सकते हैं.

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एक नए अध्ययन से पता चला है कि वर्चुअल और ऑगमेंटेड रियलिटी (वीआर/एआर) तकनीक के जरिए तनाव भरी परिस्थितियां कृत्रिम रूप से बनाई जा सकती हैं, जिससे लोग तनाव को दूर करने के उपायों का अभ्यास कर सकते हैं. हम रोजमर्रा की जिंदगी में कई बार ऐसे हालात का सामना करते हैं जो हमें बहुत तनावपूर्ण लगते हैं – जैसे किसी जरूरी काम की प्रस्तुति देना, अजनबियों से भरी पार्टी में जाना या किसी करीबी से कठिन बातचीत करना. ऐसे समय में किसी दोस्त या मनोवैज्ञानिक से बात करना फायदेमंद हो सकता है. लेकिन तनाव से निपटने के लिए पहले से अभ्यास करना भी बहुत मददगार हो सकता है.

अमेरिका की कार्नेगी मेलोन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ही प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसमें वीआर/एआर तकनीक का इस्तेमाल करके लोगों को तनाव से निपटने का अभ्यास कराया गया. इस शोध का नेतृत्व 'ह्यूमन-कंप्यूटर इंटरेक्शन इंस्टीट्यूट' की अन्ना फांग ने किया. उन्होंने 19 लोगों पर इस तकनीक का परीक्षण किया, जिनमें से अधिकतर ने इसे उपयोगी और असरदार माना. अन्ना फांग ने बताया कि पिछले 10-20 सालों में वीआर और एआर तकनीक ने स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाई है. आज कई ध्यान और मेडिटेशन ऐप भी डाउनलोड के लिए उपलब्ध हैं.

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शोधकर्ताओं ने तीन अलग-अलग तनावपूर्ण परिस्थितियों के लिए कुल 24 तरह के डिजाइन बनाए. इनमें कुछ पूरी तरह वर्चुअल रियलिटी आधारित थे, कुछ मिक्स्ड थे, और कुछ केवल टेक्स्ट के माध्यम से बिना किसी दृश्य संकेत के काम करते थे. हर डिजाइन में अलग-अलग तरह की भागीदारी और प्रतिक्रिया के विकल्प थे. शोध से यह पता चला कि लोग इस तकनीक का इस्तेमाल करके खुद को बेहतर समझ पाते हैं और आत्मनिर्भरता की भावना विकसित करते हैं. उन्होंने ऐसी तकनीक को पसंद किया जो उन्हें खुद से कुछ सीखने में मदद करे, न कि केवल जानकारी दे.

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शोध में यह भी सामने आया कि प्रतिभागियों को तब बेहतर लगा जब उन्हें तकनीक से सुझाव मांगने का विकल्प दिया गया, बजाय इसके कि सुझाव अपने-आप मिलने लगें. लोग यह भी चाहते थे कि वे ये वीआर हेडसेट किसी भी जगह ले जा सकें, ताकि वे अलग-अलग तनावपूर्ण माहौल में खुद को ढाल सकें और अभ्यास कर सकें. अगले चरण में शोध टीम इन आभासी पात्रों को और अधिक असली जैसा बनाने की योजना बना रही है और उनमें ऐसा फीचर जोड़ेगी जिससे वे स्वाभाविक रूप से बोल सकें. इससे लोगों को बातचीत अधिक सहज और असली जैसी लगेगी.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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