टेक्नोलॉजी से बदलता डायबिटीज मैनेजमेंट, स्मार्ट डिवाइस और ऐप्स निभा रहे अहम भूमिका

World Diabetes Day: भारत बुरी तरह डायबिटीज की चपेट में है. यहां 10.1 करोड़ लोगों को डायबिटीज है और 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक हैं. यह विश्व प्रसिद्ध जर्नल द लैंसेट डायबिटीज़ एंड एंडोक्रिनोलॉजी (2023) में प्रकाशित आईसीएमआर-इंडियाबी की रिपोर्ट का अनुमानित आंकड़ा है. भारत

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World Diabetes Day: भारत बुरी तरह डायबिटीज की चपेट में है. यहां 10.1 करोड़ लोगों को डायबिटीज है और 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक हैं. यह विश्व प्रसिद्ध जर्नल द लैंसेट डायबिटीज़ एंड एंडोक्रिनोलॉजी (2023) में प्रकाशित आईसीएमआर-इंडियाबी की रिपोर्ट का अनुमानित आंकड़ा है. भारत के 35 करोड़ से ज्यादा वयस्क पेट के मोटापे से परेशान हैं और 25 करोड़ सामान्य मोटापे से झूझ रहे हैं. आंकड़े यह भी कहते हैं कि कम उम्र में ही युवा भी इससे प्रभावित हो रहे हैं और 20 और 30 की उम्र के युवाओं पर भी यह खतरा मंडरा रहा है. लेकिन आज इस बीमारी से बचने और लड़ने की नई-नई तकनीक उपलब्ध हैं और इनका उपयोग करना भी आसान है. डॉ- आशीष गौतम (सीनियर डायरेक्टर-जनरल, लेप्रोस्कोपिक और रोबोटिक सर्जरी, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटलए पटपड़गंज, दिल्ली) ने डायबिटीज से मुकाबला करने के लिए नए डिवाइस और एप्स के बारे में जानकारी दी है.

रियल टाइम मॉनिटरिंग के डिवाइस उपलब्ध हैं 

कंटिन्यूअस ग्लूकोज़ मॉनिटर पर मरीज़ आसानी से दिन भर के ब्लड शुगर लेवेल देख सकते हैं. रियल टाइम जानकारी मिलने से प्री-डायबिटीज़ या टाइप 2 डायबिटीज़ के मरीजों को यह समझने में मदद मिलती है कि देर रात स्नैक्स लेने या सुबह सैर नहीं करने का ग्लूकोज़ लेवेल पर क्या प्रभाव पड़ता है. मरीज़ और डॉक्टर स्मार्ट इंसुलिन पेन या कनेक्टेड ग्लूकोमीटर के तालमेल से सटीक डोज और ट्रेंड का ध्यान रख सकते हैं. एक दशक पहले तक इतनी सटीक निगरानी संभव ही नहीं थी जबकि आज भारत जैसे देश में इसकी बहुत ज़रूरत है जहाँ सेडेंट्री लाइफस्टाइल जैसे घंटों बैठ कर काम करना, प्रोसेस्ड फूड खाना, सही नींद नहीं मिलना आम बात हो गई है.

वियरेबल और ऐप्स लाइफस्टाइल पर कड़ी नजर रखते हैं

ऐसे मोबाइल ऐप्स मिल जाएंगे जो आपके आहार, कार्बोहाइड्रेट और व्यायाम का ध्यान रख सकते हैं. वियरेबल डिवाइस आपके शारीरिक काम-व्यायाम नहीं करने या सही से नहीं सोने के बारे में चेतावनी दे सकते हैं और एक्टिव रहने के लिए अलर्ट भेज सकते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि लगभग आधे भारतीय जरूरी व्यायाम भी नहीं करते हैं. ये डिवाइस जीवनशैली के आंकड़ों को उपयोगी जानकारी बना देते हैं ताकि मरीज़ समय-समय पर टेस्ट के लिए लैब जाने के बजाय रियल-टाइम जानकारी लेकर तुरंत निर्णय लें.

टेलीमेडिसिन गांव-देहात के लिए वरदान 

आज टेलीमेडिसिन डायबिटीज के इलाज का एक महत्वपूर्ण पहलू है. मरीज को बार-बार डॉक्टर के पास नहीं जाना पड़ता है क्योंकि डिवाइस के आंकड़े देख कर वे दवा या इलाज बता/बदल सकते हैं. यह छोटे शहरों या ग्रामीण इलाकों के मरीज़ों के लिए वरदान की तरह है क्योंकि अमूमन उनके नजदीक विशेषज्ञ नहीं मिलते हैं. इस तरह मरीज़ों की समय पर देखभाल और जल्द उपचार शुरू करने में तकनीक की ताकत दिखती है.

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सेहत की राह दिखाती नए दौर की तकनीक    

आप अपना वज़न 5 से 10 प्रतिशत भी कम कर लीजिए भूखे पेट ग्लूकोज का लेवेल कम हो सकता है और इंसुलिन भी बेहतर ढंग से काम कर सकता है. डिवाइस और एप्लिकेशन की मदद से दिनचर्या का पालन करना कठिन नहीं है. इसमें आप भोजन, नींद और दवाओं पर नज़र रखते हैं. रिमाइंडर मिलने से आपके लिए चिकित्सा सलाह पर अमल करना आसान हो जाता है जो हमेशा नियंत्रण बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है.

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समय रहते सेहत पर ध्यान दें और देर किए बिना कदम उठाएं

रियल टाइम मॉनिटरिंग से आप रिएक्टिव के बदले प्रोएक्टिव हो जाते हैं. ब्लड शुगर ट्रेंड का पता होने से तो न्यूरोपैथी, गुर्दे की क्षति या हृदय रोग जैसी समस्याओं का पहले पता चल जाता है. यह खास कर शहरों के लिए जरूरी है, जहाँ युवाओं  को टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ रहा है. इसकी वजह बहुत अधिक कैलोरी लेना है और शारीरिक काम-व्यायाम नहीं करना है.

व्यक्तिगत जानकारी उपलब्ध 

सभी मरीजों पर आहार, व्यायाम और दवाएँ बराबर काम नहीं करती हैं. स्मार्ट डिवाइस यह दिखाते हैं कि आपके लिए क्या कारगर है. इससे बार-बार तरीका बदल कर देखने की जरूरत नहीं रहेगी. कई सप्ताह और महीनों तक अपनी आदतों पर ध्यान देकर वे जान जाएंगे कि दिनचर्या में उनके खान-पान से ब्लड शुगर लेवेल कैसे प्रभावित होता है. ऐप्स से लोगों को कई अन्य जरूरी बातों का पता चलता है जैसे आहार की सही मात्रा, पोषक तत्वों की मात्रा और खाने का सही समय आदि. इनके माध्यम से मरीज़ तुरंत यह जान पाएंगे कि जो आहार वो चुनते हैं ब्लड शुगर लेवेल को किस तरह प्रभावित करते हैं. इससे वे अधिक ज़िम्मेदार और जानकार बनेंगे. हाथ में तकनीक की ताकत हो तो समस्याएं घेरे इससे पहले मरीज़ अपना बचाव कर सकते हैं.

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अचूक दवा 

डॉक्टर के हाथ में तकनीक अचूक उपचार का भरोसा है. उन्हें कभी भी मरीज का डेटा मिल जाने से दवाओं को जल्दी बदलना, इंसुलिन का अधिक सटीक उपयोग और खतरा के कारणों का जल्द पता लगना संभव होता है. मरीज़ अपनी देखभाल में इस तरह की जिम्मेदारी लेकर बेहतर इलाज करा पाते हैं.

दुनिया में सबसे तेज दर से डायबिटीज भारत में बढ़ रहा है. इसे ध्यान में रखते हुए स्मार्टफ़ोन, ऐप्स और वियरेबल मरीज़ों और डॉक्टरों दोनों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं. ये रियल टाइम में फ़ीडबैक, व्यक्तिगत जानकारी और साथ ही समस्याएँ बढ़ने से पहले कदम उठाने का मौका देते हैं. इनके सही इस्तेमाल से ब्लड शुगर का बेहतर नियंत्रण होता है. दवाइयां कम लेनी होती है और भविष्य में भी कम स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं.
लेकिन डायबिटीज को काबू में रखना अकेले तकनीक के वश में नहीं है. इसके लिए चाहिए नियमित जाँच, जानकारी लेकर सही विकल्प चुनना और स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञों का मार्गदर्शन. हमारे देश में जहाँ करोड़ों लोग इससे प्रभावित हैं और यह संख्या बढ़ती जा रही है ये डिवाइस बेहतरीन परिणाम देते हैं बशर्ते आप संतुलित आहार, पर्याप्त नींद और नियमित व्यायाम जैसी कुछ अच्छी आदतें डाल लें.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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