वैज्ञानिकों ने सोमवार को कहा कि उन्होंने ब्रेन स्कैन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडलिंग का उपयोग करने का एक तरीका ढूंढ लिया है, जो कि लोग क्या सोच रहे हैं, इसका पता लगा सकता है. इसे एक तरह से माइंड रीडिंग भी कहा जा सकता है. जबकि लैंग्वेज डिकोडर का मुख्य लक्ष्य उन लोगों की मदद करना है जो कम्युनिकेशन की क्षमता खो चुके हैं, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया कि तकनीक को लेकर "मेंटल प्राइवेसी" के बारे में सवाल उठाए.
कैसे काम करता है लैंग्वेज डिकोडर?
ये "ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस" ब्रेन के उस हिस्से पर फोकस करते हैं जो शब्दों को बनाने की कोशिश करते समय मुंह को कंट्रोल करता है. ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय के एक न्यूरोसाइंटिस्ट और एक नए अध्ययन के सह-लेखक अलेक्जेंडर हुथ ने कहा कि उनकी टीम का लैंग्वेज डिकोडर "बहुत अलग लेवल पर काम करता है."
हुथ ने एक ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "हमारा सिस्टम थॉट्स के अर्थ पर काम करता है." जर्नल नेचर न्यूरोसाइंस में किए गए अध्ययन के अनुसार, बिना इनवेसिव ब्रेन ट्रांसप्लांट के लैंग्वेज को रिकन्सट्रक्ट करने में सक्षम होने वाली यह पहला सिस्टम है.
भविष्यवाणी करने के लिए किया गया था तैयार
इसने शोधकर्ताओं को यह पता लगाने में मदद की कि शब्दों, सेंटेंस और मीनिंग्स ने लैंग्वेज को ब्रेन एरियाज में रिएक्शन्स को कैसे प्रेरित किया. उन्होंने इस डेटा को एक न्यूरल नेटवर्क लैंग्वेज मॉडल में फीड किया. मॉडल को भविष्यवाणी करने के लिए तैयार किया गया था कि प्रत्येक व्यक्ति का ब्रेन कैसे सोचता है.
कुछ शब्दों को डिकोड करने में आई दिक्कत
मॉडल की सटीकता का टेस्ट करने के लिए हर एक प्रतिभागी ने एफएमआरआई मशीन में एक नई कहानी सुनी. डिकोडर सर्वनामों जैसे "मैं" या "वह" में सटीक नहीं था, शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया, लेकिन यहां तक कि जब प्रतिभागियों ने अपनी कहानियों के बारे में सोचा - या मूक फिल्में देखीं - तब भी डिकोडर "समरी" को समझने में सक्षम था, क्योंकि एफएमआरआई स्कैनिंग पर्सनल वर्ड्स को पकड़ने के लिए बहुत धीमी है, हुथ ने कहा.
"तो हम देख सकते हैं कि थॉट्स कैसे बनते होता हैं, भले ही सटीक शब्द खो गए."