शोधकर्ताओं ने नेफ्रोटिक सिंड्रोम से जुड़ी किडनी की बीमारियों के लिए नए बायोमार्कर का लगाया पता

एक शोध में शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक का उपयोग कर नेफ्रोटिक सिंड्रोम से जुड़ी किडनी की बीमारियों के लिए नए बायोमार्कर का पता लगाया है.

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यह किडनी की बीमारी के इलाज के लिए नई राहें खोलता है.

नेफ्रोटिक सिंड्रोम किडनी की बीमारी है. इस सिंड्रोम से किडनी को नुकसान पहुंचता है. इस बीमारी में मरीज के मूत्र से बहुत ज्यादा मात्रा में प्रोटीन निकलता है. इसमें मरीज के खून में लो प्रोटीन लेवल के साथ हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई ट्राइग्लिसराइड लेवल, ब्लड के थक्के और सूजन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित शोध के मुताबिक शोधकर्ताओं ने रोग की प्रगति पर नजर रखने के लिए एक विश्वसनीय बायोमार्कर के रूप में 'एंटी-नेफ्रिन ऑटोएंटीबॉडीज' की पहचान की. यह किडनी की बीमारी के इलाज के लिए नई राहें खोलता है.

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नेफ्रोटिक सिंड्रोम किडनी की बीमारियों से जुड़ा है जिसमें मेम्ब्रेनस नेफ्रोपैथी (यह एक किडनी रोग है जो किडनी के फिल्टर को नुकसान पहुंचाता है) और फोकल सेगमेंटल ग्लोमेरुलोस्केलेरोसिस (किडनी के छोटे फिल्टर में घाव) जैसी बीमारियां शामिल हैं. शोधकर्ताओं के अनुसार, यह सिंड्रोम किडनी को फिल्टर करने के लिए जिम्मेदार पोडोसाइट्स कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है जिससे यूरिन में प्रोटीन लीक होने लगता है.

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ऐसी कंडिशन का डायग्नोस करने के लिए शोधकर्ताओं ने एंटी-नेफ्रिन ऑटोएंटीबॉडी का विश्वसनीय रूप से पता लगाने के लिए एंजाइम-लिंक्ड इम्युनोसॉरबेंट परख (एलिसा) के साथ इम्युनोप्रेसेपिटेशन को मिलाकर एक नई तकनीक पेश की.

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अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक डॉ. निकोला एम टॉमस ने कहा, "एक विश्वसनीय बायोमार्कर के रूप में एंटी-नेफ्रिन ऑटोएंटीबॉडी की पहचान की गई है जो हमारी हाइब्रिड इम्युनोप्रेजर्वेशन तकनीक के साथ मिलकर हमारी नैदानिक क्षमताओं को बढ़ाती है और नेफ्रोटिक सिंड्रोम के साथ किडनी डिसऑर्डर में रोग की प्रगति की बारीकी से निगरानी करने के लिए नए रास्ते खोलती है."

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निष्कर्षों से पता चला कि एंटी नेफ्रिन ऑटोएंटीबॉडी एमसीडी वाले 69 प्रतिशत वयस्कों और आईएनएस (इडियोपैथिक नेफ्रोटिक सिंड्रोम) वाले 90 प्रतिशत बच्चों में प्रचलित थे, जिनका इम्यूनोसप्रेसिव दवाओं से इलाज नहीं किया गया था.

शोधकर्ताओं ने कहा, "जरूरी बात यह है कि इस ऑटोएंटीबॉडी का लेवल डिजीज एक्टिविटी से संबंधित है जो रोग की प्रगति की निगरानी के लिए बायोमार्कर के रूप में उसकी क्षमता का सुझाव देता है."

नेफ्रोटिक सिंड्रोम कैंसर, डायबिटीज, सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस, मल्टीपल मायलोमा और एमाइलॉयडोसिस जैसी बीमारियां, अनुवांशिक विकार, इम्यून डिसऑर्डर, संक्रमण (जैसे गले में खराश, हेपेटाइटिस या मोनोन्यूक्लिओसिस) और कुछ दवाओं के उपयोग से हो सकता है.

नेफ्रोटिक सिंड्रोम हर उम्र में होने वाली बीमारी है. यह 2 से 6 साल की आयु वाले बच्चों में सबसे आम है. यह बीमारी महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा देखने को मिलती है.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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