शोधकर्ताओं ने बनाया ह्यूमन ब्रेन को समझने और भविष्यवाणी करने वाला एल्गोरिथम, अल्जाइमर्स के लिए भी मददगार

एल्गोरिथम को रेगुलाइज्ड, एक्सेलेरेटेड या रियल-LiFE कहा जाता है. इसके जरिए अल्ट्रा मॉडर्न एल्गोरिदम की तुलना में 150 गुना तेजी से डीएमआरआई डेटा को इवेलुएट किया जा सकता है.

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इस तरह के विश्लेषण से मेडिकल में भी मदद मिल सकती है.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISC) के शोधकर्ताओं ने एक नई ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) बेस्ड मशीन लर्निंग एल्गोरिदम बनाया है जो  वैज्ञानिकों को माइंड के कई एरियाज के बीच कनेक्टिविटी को बेहतर ढंग से समझने और भविष्यवाणी करने में मदद कर सकता है. 

रेगुलराइज्ड, एक्सेलेरेटेड, लीनियर फासिकल इवैल्यूएशन या रीयल-लाइफ नेम्ड एल्गोरिथम ह्यूमन ब्रेन के डिफ्यूजन मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (DMRI) स्कैन से पैदा होने वाले भारी मात्रा में डेटा का तेजी से एनालाइज कर सकता है. आईआईएससी के अनुसार, रीयल-लाइफ का यूज करते हुए, टीम मौजूदा अल्ट्रा मॉडर्न एल्गोरिदम की तुलना में 150 गुना तेजी से डीएमआरआई डेटा को इवेलुएट करने में सक्षम थी.

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घंटों के काम अब मिनटों में हो सकते हैं पूरे:

सेंटर फॉर न्यूरोसाइंस (सीएनएस), आईआईएससी के एसोसिएट और नेचर कम्प्यूटेशनल साइंस जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के संबंधित लेखक देवराजन श्रीधरन ने कहा, "जिन कार्यों में घंटों से लेकर दिन लगते थे, उन्हें सेकंड से मिनटों में पूरा किया जा सकता है."

सीएनएस में पीएचडी छात्र और अध्ययन के पहले लेखक वर्षा श्रीनिवासन ने कहा, "मेंटल बिहेवियर रिलेशन को बड़े पैमाने पर उजागर करने के लिए ब्रेन कनेक्टिविटी को समझना जरूरी है." हालांकि ब्रेन कनेक्टिविटी का अध्ययन करने के लिए ट्रेडिशनल अप्रोच आमतौर पर पशु मॉडल का उपयोग करते हैं, और आक्रामक होते हैं. दूसरी ओर DMRI Scan, मनुष्यों में ब्रेन की कनेक्टिविटी का अध्ययन करने के लिए एक नॉन-एग्रेसिव प्रोसेस प्रदान करता है.

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ब्रेन कनेक्टिविटी मॉडल कैसे काम करता है?

वैज्ञानिकों ने पहले इस कस्टमाइजेशन को अंजाम देने के लिए LiFE (लीनियर फास्किकल इवैल्यूएशन) नामक एक एल्गोरिथम बनाया, लेकिन इसकी एक चुनौती यह थी कि यह पारंपरिक सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट्स (CPU) पर काम करता था, जिससे गणना में समय लगता था.

नए अध्ययन में, श्रीधरन की टीम ने अनावश्यक कनेक्शनों को हटाने सहित कई तरीकों से शामिल कम्प्यूटेशनल प्रयास को कम करने के लिए अपने एल्गोरिदम को बदल दिया, जिससे एलआईएफई के प्रदर्शन में काफी सुधार हुआ.

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एल्गोरिथम को और तेज करने के लिए, टीम ने इसे विशेष इलेक्ट्रॉनिक चिप्स पर काम करने के लिए फिर से डिजाइन किया - जो हाई-एंड गेमिंग कंप्यूटरों में पाया जाता है, जिसे ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (जीपीयू) कहा जाता है, जिससे उन्हें 100-150 गुना तेज गति से डेटा का विश्लेषण करने में मदद मिली.

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यह बेहतर एल्गोरिथम, रीयल-लाइफ, यह भी अनुमान लगाने में सक्षम था कि एक ह्यूमन टेस्ट सब्जेक्ट कैसे बिहेव करेगा या एक विशिष्ट कार्य करेगा.

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अल्जाइमर रोगियों की कर सकता है मदद:

इस तरह के विश्लेषण से मेडिकल में भी मदद मिल सकती है. रिसर्चर्स कहते हैं, "बड़े पैमाने पर डेटा प्रोसेसिंग बड़े डेटा न्यूरोसाइंस अनुप्रयोगों के लिए तेजी से जरूरी होता जा रहा है, खासकर हेल्दी ब्रेन फंक्शन और मस्तिष्क विकृति को समझने के लिए." श्रीधरन कहते हैं, "एक अन्य अध्ययन में, हमने पाया कि रीयल-लाइफ का पिछला वर्जन अल्जाइमर रोग के रोगियों को हेल्दी कंट्रोल से अलग करने के लिए अन्य कम्पेटिटर एल्गोरिदम से बेहतर कर सकता है."

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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