Puberty Myths: बड़े होते बच्चों को अपने शरीर से आ रहे बदलाव को लेकर ढेरों सवाल होते हैं. लेकिन माता पिता इस विषय पर बात करने से झेंप जाते हैं. ये झेंप असल में एक बड़ी समस्या का कारण बन जाती है. जो आगे चलकर प्यूबर्टी से जुड़ी कई गलत जानकारियों की वजह भी बनती है. प्यूबर्टी से जुड़े ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब तलाशने के लिए बच्चे या तो इंटरनेट पर सर्च करते हैं या फिर फ्रेंड्स के बीच चर्चा करते हैं. जो उन्हें किसी गलत जानकारी का शिकार बना सकता है. हम आपको यहां प्यूबर्टी से जुड़े ऐसे ही सवाल बता रहे हैं. जो अक्सर पूछे जाते हैं. इस बारे में एनडीटीवी ने सेक्सुअल हेल्थ एक्सपर्ट डॉक्टर निधि झा से बात की और प्यूबर्टी से जुड़े ऐसे मिथ्स के सही जवाब भी जानें.
प्यूबर्टी से जुड़े मिथ और सही जवाब| Myths Related To Puberty
सबको एक ही उम्र में आती है प्यूबर्टी
डॉ. निधि झा के मुताबिक प्यूबर्टी बहुत सारे फैक्टर्स पर डिपेंड करती है. जिसमें बच्चों की डाइट, उनका वजन, उनकी फैमिली का बॉडी टाइप (माता पिता की हाइट, वजन) और उनकी रोजाना की हैबिट्स शामिल होती हैं. जो बच्चे जल्दी वेट और हाइट गेन करते हैं उन्हें प्यूबर्टी जल्दी भी आ सकती है. अगर घर में बड़े भाई या बहन को जल्दी या देर से प्यूबर्टी आई है तो दूसरे बच्चे को भी देर से आ सकती है. डॉ. निधि झा ने कहा कि इसलिए एक रेंज दी जाती है. मसलन लड़कियों को आठ से 13 साल के बीच और लड़कों को 9 से 14 साल के बीच प्यूबर्टी आती है. इसका कोई फिक्स समय नहीं बताया जाता है.
सिर्फ फिजकल बदलाव होते हैं, मेंटली असर नहीं होता
प्यूबर्टी से जुड़ा ये भी एक मिथ है, ये मान लिया जाता है कि बड़े हो रहे बच्चों में सिर्फ फिजिकल चेंजेस ही आते हैं. मेंटली उन पर कोई असर नहीं होता. डॉ. निधि झा के मुताबिक एक लड़की बच्ची से औरत बन रही है. एक लड़का एडल्ट मैनहुड की तरफ जा रहा है. इसे सिर्फ फिजिकल चेंज के रूप में नहीं देखा जा सकता. ये यकीनन एक मेंटल चेंज भी होता है. जब बच्चों में ज्यादा मूड स्विंग होता है. वो अपने कपड़ों को लेकर ज्यादा सीरियस हो जाते हैं. अपने लुक्स पर ध्यान देने लगते हैं. कुछ बच्चे रिस्पॉन्सिबल होते हैं, कुछ सिनसियर होते हैं और यही वो समय होता है जब सही डायरेक्शन न मिलने से बच्चे गलत ट्रेक भी पकड़ सकते हैं.
डॉ. निधि झा कहती हैं कि बच्चों के इस फेज को इंजॉय करना चाहिए और उसे बहुत प्यार से टेकल करना चाहिए. इसके लिए जरूरी है कि पेरेंट्स सबसे पहले बच्चों के इस फेज में खुद को नॉर्मल रखें. बच्चे को सही दिशा दें ताकि वो कंस्ट्रक्टिव सोच के साथ आगे बढ़े. उनका कहना है कि इसी समय में बच्चा तय करता है कि वो क्या करियर चुनेगा. स्पोर्ट्स में जाएगा या किसी और एक्टिविटी में जाएगा. ये पेरेंट्स पर डिपेंड करता है कि वो इस एज में बच्चे को कैसे टेकल करते हैं.
प्यूबर्टी ब्लॉकर्स भी कोई चीज होती है?
कुछ ऐसे भी नुस्खे होते हैं जो प्यूबर्टी को आने से रोक सकते हैं या डिले कर सकते हैं. इस सवाल पर डॉ. निधि झा का कहना है कि ऐसी बातें घर में डिस्कस करके या पुराने जमाने के किसी नुस्खे को सही मानकर उन्हें आजमाना नहीं चाहिए. प्यूबर्टी ब्लॉकर जैसा कुछ नहीं होता. कम एज में प्यूबर्टी के निशान दिखने पर संबंधित डॉक्टर की सलाह पर ही इलाज लिया जाना चाहिए. उनका कहना है कि किसी वीडियो या रील को देखकर या इंटरनेट पर तलाश कर ऐसे सवालों को नहीं खोजना चाहिए न ही ऐसी किसी टिप्स को आजमाना चाहिए.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)