2030 तक भारत का हर तीसरा बच्चा होगा मायोपिया का शिकार, नजर हो जाएगी कमजोर, चश्मे के बिना नहीं चलेगा काम : विशेषज्ञ

Eye Problems In Childs: अध्ययनों से पता चलता है कि 1999 से 2019 तक 20 साल में भारत के शहरी बच्चों में मायोपिया के मामले क्रमशः 4.44 प्रतिशत से 21.15 प्रतिशत तक तीन गुना बढ़ गए हैं.

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दुनिया भर में 2050 की शुरुआत में हर दो में से एक व्यक्ति निकट दृष्टि दोष का शिकार हो जाएगा.

Effects of Excessive Screen Time: आंखों के डॉक्टरों का मानना है कि सुस्त लाइफस्टाइल और स्क्रीन का लंबे समय तक उपयोग करने से 2030 तक शहरी भारत में 5-15 साल की आयु के एक-तिहाई बच्चे मायोपिया से पीड़ित होंगे. मायोपिया को आमतौर पर निकट-दृष्टि दोष के रूप में जाना जाता है. यह एक ऐसी स्थिति है जहां चीजें स्पष्ट रूप से नजर नहीं आती हैं. यह दुनिया भर में एक बड़ी हेल्थ कंडिशन है. दुनिया भर में 2050 की शुरुआत में हर दो में से एक व्यक्ति निकट दृष्टि दोष का शिकार हो जाएगा, बच्चों और युवा वयस्कों में यह बढ़ रहा है.

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मायोपिया अवेयरनेस वीक में विशेषज्ञों ने कहा, "मायोपिया की दर वास्तव में विश्व स्तर पर बढ़ रही है, जिसमें भारत भी शामिल है. भारत में भी शहरी बच्चों के बीच मायोपिया के प्रसार में उल्लेखनीय वृद्धि का सबूत है."

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अध्ययनों से पता चलता है कि 1999 से 2019 तक 20 साल में भारत के शहरी बच्चों में मायोपिया के मामले क्रमशः 4.44 प्रतिशत से 21.15 प्रतिशत तक तीन गुना बढ़ गए हैं.

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अग्रवाल्स आई हॉस्पिटल, ठाणे मुंबई के मोतियाबिंद सर्जन डॉ. स्मिट एम बावरिया ने को बताया, "हम पिछले कुछ सालों में शहरी बच्चों में मायोपिया के मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि देख रहे हैं. हर साल 0.8 प्रतिशत की तेजी पर आधारित हमारी रिपोर्ट बताती है कि शहरी बच्चों में निकट दृष्टि दोष के मामले 2030 में 31.89 प्रतिशत, 2040 में 40 प्रतिशत और 2050 में 48.1 प्रतिशत तक बढ़ जाएंगे. इसका मतलब है कि हर दो बच्चों में से एक भारत में अगले 25 साल में मायोपिया से पीड़ित होगा.

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सेंटर फॉर साइट नई दिल्ली के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक महिपाल सिंह सचदेव ने कहा, "दरअसल भारत में खासकर शहरी आबादी में मायोपिया आम होता जा रहा है. इस प्रवृत्ति की पुष्टि कई अध्ययनों और रिपोर्टों से हुई है जो दर्शाती है कि हाल के वर्षों में बच्चों और किशोरों में मायोपिया आम हो गया है."

मायोपिया के लक्षण (Symptoms of Myopia)

इसके लक्षणों में धुंधली दृष्टि, दूर की वस्तुओं को देखने में कठिनाई, आंखों में तनाव, सिरदर्द और खासतौर से लंबे समय तक स्क्रीन के उपयोग के बाद थकान शामिल है. विशेषज्ञों ने कहा कि गतिहीन जीवनशैली, लंबे समय तक स्क्रीन का उपयोग और कम बाहरी गतिविधियां बच्चों में मायोपिया के मामलों में तेजी से योगदान दे रही हैं.

स्मिट ने कहा, "बहुत ज्यादा स्क्रीन समय बच्चों की आंखों, रेटिना और मस्तिष्क को उत्तेजित करता है, जिससे आईबॉल में निकट दृष्टि परिवर्तन में तेजी आती है."

मायोपिया का कारण (Cause of Myopia)

वहीं महिपाल ने आईएएनएस को बताया, "घर के अंदर रहने के कारण जरूरी प्राकृतिक रोशनी की कमी भी आंखों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है."

विशेषज्ञों ने शहरीकरण के कारण जीवनशैली में आए बदलाव को भी जिम्मेदार ठहराया है, जिसमें पढ़ने-लिखने जैसी निकट-कार्य गतिविधियों में वृद्धि भी शामिल है.

”महिपाल ने कहा, "आनुवंशिक प्रवृत्ति भी मायने रखती है, यह संभव है कि शहरी आबादी में मायोपिया से जुड़े आनुवंशिक जोखिम कारकों का प्रसार अधिक हो. ये सभी कारक हमारी आंखों, रेटिना और तंत्रिकाओं पर बहुत ज्यादा दबाव और तनाव डालते हैं जिसके चलते ये मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं."

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बढ़ते हेल्थ इश्यू से निपटने के लिए, विशेषज्ञों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल, शिक्षा अभियान, लाइफस्टाइल में बदलाव और आई केयर सर्सिस तक पहुंच बढ़ाने का आह्वान किया.

मायोपिया का इलाज (treatment of myopia)

स्मिट ने कहा, "शीघ्र उपचार के लिए बच्चों में मायोपिया के लक्षणों को पहचानना जरूरी है. हालांकि इस स्थिति को ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस से इसमें मदद मिल सकती है." उन्होंने नियमित आंखों की जांच और बच्चों को बाहरी गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करने पर जोर दिया.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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