Jalebi History: दूध-जलेबी का इतिहास, मीठे स्वाद की पुरानी कहानी, जानिए कैसे भारत पहुंची ये स्वीट डिश

Jalebi History: सुनहरा रंग और अंदर से मीठी चाशनी से भरी, बाहर के क्रिस्पी और मुंह में जाते है एक मिठास के साथ मुंह में घुल जाने वाली दिखने में टेढ़ी लेकिन हमारे दिल को भाने वाली जी हां, हम बात कर रहे हैं जलेबी की, आइए जानते हैं भारत में जलेबी कैसे पहुंची और दशहरे पर दूध-जलेबी क्यों खाई जाती है.

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Jalebi History: जलेबी की तरह ही घुमावदार है इसका इतिहास.

Jalebi History: 2 नवंबर को दशहरा है और इस त्योहार में दूध और जलेबी खाने की परंपरा है. इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि भगवान राम को जलेबी बेहद पसंद थी. इसलिए इस दिन घरों में दूध और जलेबी लाया जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये जलेबी कहां से आई है. इसको सबसे पहले किसने बनाया था. तो चलिए जानते हैं जलेबी की कहानी जो स्वाद ही नहीं बल्कि रिश्तों में भी मिठास घोली है. मुगल काल में यह मिठाई दरबारों से निकलकर मंदिरों तक पहुँची, जहाँ इसे प्रसाद के रूप में भी अपनाया गया. आइए जानते हैं जलेबी के इतिहास के बारे में. 

क्या है जलेबी का इतिहास? ( Jalebi History)

जलेबी की कहानी सदियों पुरानी है. जिस तरह से जलेबी की बनावट घुमावदार है उसी तरह इसका इतिहास भी बेहद घुमावदार है. आपको बता दें कि जलेबी सिर्फ भारत की मिठाई नहीं है, इसकी जड़ें दुनिया के दूसरे हिस्सों से भी जुड़ी हैं. प्राचीन मध्य-पूर्व की गलियों में एक मिठाई की खुशबू फैली हुई है. ये जलेबी 10वीं शताब्दी के फारस की है, जहाँ इसे 'जुलाबिया' के नाम से जाना जाता था. ये मिठाई कैसे भारतीयों के दिल पर राज करने लगी, ये सफर इसकी बनावट की तरह ही बड़ा दिलचस्प है!"

हौब्सन-जौब्सन के अनुसार जलेबी शब्द अरेबिक शब्द 'जलाबिया' या फारसी शब्द 'जलिबिया' से आया है. 'किताब-अल-तबीक़' नाम की किताब में 'जलाबिया' नामक मिठाई का उल्लेख मिलता है जिसका उद्भव पश्चिम एशिया में हुआ था. ईरान में यह 'जुलाबिया या जुलुबिया' के नाम से मिलती है. 10वीं शताब्दी की अरेबिक पाक कला पुस्तक में 'जुलुबिया' बनाने की कई रेसिपीज़ का उल्लेख मिलता है. जैन लेखक जिनासुर की किताब 'प्रियंकरनरपकथा' में भी कुछ इसी तरह की मिठाई का जिक्र है. वहीं 17 वीं शताब्दी की एक पुस्तक 'भोजनकुटुहला' और संस्कृत पुस्तक 'गुण्यगुणबोधिनी' में भी जलेबी के बारे में लिखा गया है.

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ऐसा माना जाता है कि मध्यकाल में ये फ़ारसी और तुर्की व्यापारियों के साथ यह मिठाई भारत आई और इसके बाद से हमारे देश में भी इसे बनाया जाने लगा. यूं तो जलेबी को कई लोग विशुद्ध भारतीय मिठाई मानने वाले भी हैं. शरदचंद्र पेंढारकर में जलेबी का प्राचीन भारतीय नाम कुंडलिका बताते हैं. वे रघुनाथकृत ‘भोज कुतूहल' नामक ग्रंथ का हवाला भी देते हैं जिसमें इस व्यंजन के बनाने की विधि का उल्लेख है. भारतीय मूल पर जोर देने वाले इसे ‘जल-वल्लिका' कहते हैं. रस से भरी होने की वजह से इसे यह नाम मिला और फिर इसका रूप जलेबी हो गया.

दशहरे पर जलेबी- दूध क्यों खाते हैं?

धार्मिक मान्यताओं के अलावा इसके वैज्ञानिक कारणों की मानें तो दशहरे के समय पर रातें ठंडी हो जाती है और दिन गर्म होते हैं. ऐसे में दूध जलेबी का सेवन सेहत के लिए भी लाभदायी माना जाता है. खासकर माइग्रेन में दूध जलेबी का सेवन अत्यंत लाभदायी होता है. 

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घर पर कैसे बनाएं जलेबी 

  • मैदा 1 किग्रा
  • घी 500 ग्राम
  • दही 350 ग्राम
  • चीनी (जलेबी की मात्रा अनुसार), केसर 1 चम्मच
  • दूध 2 चम्मच, पिस्ता (गार्निशिंग के लिए)
  • पानी – आवश्यकतानुसार

जलेबी बनाने की विधि

जलेबी बनाने के लिए सबसे पहले आप कटोरी में मैदा निकाल लें फिर उसमें दही मिलाकर बाटर तैयार कर लें. अब इस घोल को 3 से 4 घंटे के लिए ढ़ककर रख लें जब तक की उसमें खमीर ना उठ जाए. वहीं, दूसरी तरफ आप पानी चढ़ा दें गैस पर धीमी आंच पर. इसमें चीनी डालकर मध्यम आंच पर पकाएं जब तक वो चाशनी का रूप ना ले ले. अब आप घोल को खमीर उठने के बाद अच्छे से मिला लें. फिर गैस पर कड़ाही चढ़ाकर उसमें घी डालकर गरम कर लीजिए. अब आप जलेबी मेकर में पेस्ट डालकर कड़ाही में डालें. जब जलेबी ब्राउन कलर की हो जाए तो उसे चाशनी में डुबो दीजिए. अब चाशनी से निकाल उसको पिस्ता और केसर से गार्निश कर दीजिए. तैयार है आपकी गरम गरम जलेबी.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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