
Significance of Gaya ji nagari : हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष महत्व होता है. इससे घर में सुख-शांति और संपन्नता बनी रहती है साथ ही पितर दोष भी दूर होता है. सनातन धर्म में पिंडदान हरिद्वार, बनारस, ऋषिकेष जैसे तीर्थ स्थलों पर किया जाता है, लेकिन पिंडदान के लिए गया को सबसे उचित माना जाता है. माना जाता है यहां पर तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करने से सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है. सीधे मृतक की आत्मा स्वर्ग लोक जाती है. आखिर गया जी में ऐसा क्या है, जिससे यहां पर तर्पण-अर्पण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, आइए जानते हैं...
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गया में क्यों करते हैं पिंडदान
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय में गयासुर नाम का धार्मिक और पराक्रमी असुर था, जो अपनी तपस्या और भक्ति के चलते बहुत शक्तिशाली हो गया था. उसके पराक्रम और भक्ति से मनुष्य और देवता दोनों ही लोग बहुत डरे हुए थे. एकबार उसकी तपस्या से खुश होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया कि उसे देखने भर से लोग पवित्र और स्वर्गलोक प्राप्त हो जाएंगे. गयासुर को मिले इस वरदान से स्वर्गलोक में हाहाकार मच गया.
जिसके बाद देवतागण भगवान विष्णु से मदद मांगने के लिए पहुंचे. उनकी समस्या सुनकर श्रीहरि ने गयासुर से कहा वह अपने देह का दान यज्ञ के लिए कर दे. गयासुर ने भगवान विष्णु के इस प्रस्ताव को मान लिया. इसके बाग भगवान श्रीहरि ने गयासुर के शरीर पर यज्ञ किया और गयासुर को मोक्ष प्रदान करने का वचन दिया. साथ ही यह भी आशीर्वाद दिया जहां-जहां यह शरीर फैलेगी वो स्थान पवित्र हो जाएगा, पितर जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करेगा. ऐसी मान्यता है गया जी में गयासुर का शरीर पत्थर के रूप में फैल गया था यही कारण है इस स्थान का नाम गया जी पड़ गया. इसलिए यहां पर पिंडदान करना ज्यादा फलदायी माना जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)