मध्य प्रदेश में इस नदी के किनारे भी है काशी विश्वनाथ मंदिर, क्या है इसकी खासियत, जानिए यहां

इस मंदिर को लेकर दिलचस्प बात प्रचलित है कि यहां से नंदी रात में कहीं चली जाती थी और फिर सुबह वापस आ जाती थी. ऐसे में पुजारियों ने इसके आस पास जालीनुमा कटघरा बनवाया दिया ताकि इधर-उधर न जा सके. 

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इस मंदिर में पत्थर से बने 18 खंभों का सभा मंडप है, जो कि वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर से बहुत मिलते-जुलते हैं.

Kashi temple MP : उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित प्रसिद्ध बाबा विश्वनाथ मंदिर गंगा किनारे स्थित है. यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है, जो हिंदूओं के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक है. साथ ही यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. इस प्राचीन मंदिर के मुख्य देवता को श्री विश्वनाथ और विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है. यहां प्राचीन काल से शिव भक्त पूजा अर्चना करते आ रहे हैं. मान्यता है सच्चे मन से इनकी पूजा-अर्चना करने और गंगा नदी में स्नान करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यहां पर भारत से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हजारों लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. वाराणसी को प्राचीन काल में काशी कहा जाता था, इसलिए इस मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है. 

Photo Credit: http://maheshwar.in/

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आपको बता दें कि काशी विश्वनाथ मंदिर एक और है, जो मध्य प्रदेश राज्य में है. यह मंदिर महेश्वर किले में स्थित है, जिसे अहिल्याबाई होल्कर द्वारा 1786 में नर्मदा नदी के तट पर बनवाए गए. यह सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक है. यहां आने के बाद आपको शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होगा. 

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महेश्वर के काशी विश्वनाथ मंदिर की क्या है खासियत

यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार, इस मंदिर में मौजूद शिव लिंग को पहले वाराणसी में काशी विश्वनाथ में प्रतिष्ठित किया गया था, लेकिन संयोग से यह यहां विराजमान हो गया, जिसके कारण इसका नाम काशी विश्वनाथ पड़ गया. साथ ही यह भी मान्यता है कि यह शिव लिंग आध्यात्मिक रूप से काशी विश्वनाथ के ज्योतिर्लिंग जितना ही शक्तिशाली है. ऐसे में अगर आप किसी कारणवश बनारस नहीं जा पा रहे हैं तो यहां पर भी आप दर्शन-पूजन कर शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं.

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कैसी है मंदिर की बनावट

इस मंदिर में पत्थर से बने 18 खंभों का सभा मंडप है, जो कि वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर से बहुत मिलते-जुलते हैं.

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इस मंदिर को लेकर दिलचस्प बात प्रचलित है कि यहां से नंदी रात में कहीं चली जाती थी और फिर सुबह वापस आ जाती थी. ऐसे में पुजारियों ने इसके आस पास जालीनुमा कटघरा बनवाया दिया ताकि इधर-उधर न जा सके. 

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महाशिवरात्रि और सावन के महीने में यहां पर भक्तों की भीड़ लगती है दर्शन पूजन के लिए. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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