Vrat: हिंदू धर्म में बच्चों की लंबी आयु, संतान सुख, बच्चे के अच्छे स्वास्थ और उज्जवल भविष्य के लिए कई व्रत किए जाते हैं. महिलाएं संतान प्राप्ति और उसके सुथ समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं. मान्यता है कि कि ये कुछ व्रत संतान के लिए अच्छे होते हैं. यही वजह है कि उनमें से एक छठ पर्व को पूरे भारत में आस्था के महापर्व के रूप में मनाया जाता है. वहीं जितिया व्रत भी संतान की खुशहाली के लिए रखा जाता है. हालांकि यह व्रत बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के हिस्सों में रखा जाता है. आइए जानते हैं संतान से जुड़े 6 महत्वपूर्त व्रत के बारे में.
संतान से जुड़े 6 खास व्रत की लिस्ट | Special Six Vrat for child
छठ पूजा - आस्था का महापर्व छठ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन ये व्रत किया जाता है. ये त्योहार चार दिन का होता है. पहले दिन नहाय खाय, दूसरा खरना, तीसरे दिन छठ पूजा यानी डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को देकर व्रत का पारण किया जाता है. खरना के बाद शुरू हुआ ये व्रत 36 घंटे निर्जला रखा जाता है. छठी मईया और सूर्य देव के आशीर्वाद से जीवन में संतान पर कोई आंच नहीं आती और सूर्य के समान तेज और बल मिलता है.
संतान सप्तमी - भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को संतान सप्तमी का व्रत किया जाता है. मान्यता है कि इसके प्रभाव से संतान प्राप्ति, समृद्धि और खुशहाली का वरदान प्राप्त होता है. इस व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा का विधान है. देवकी और वसुदेव ने भी अपनी संतानों की रक्षा के लिए ये व्रत किया था.
जितिया व्रत - अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत रखा जाता है, इसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है. महिलाएं अपने बच्चों की समृद्धि और उन्नत जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. इसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और बंगाल का प्रमुख व्रत माना जाता है.
अहोई अष्टमी - कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी व्रत बच्चों के बेहतर स्वास्थ और सुखी जीवन के लिए किया जाता है. इसमें सूर्यास्त के बाद सेह की पूजा की जाती है और फिर तारों को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न किया जाता है. अहोई अष्टमी को लेकर मान्यता है कि जिन महिलाओं के गर्भ में ही शिशु की मृत्यु हो जाती है उन्हें इस व्रत के प्रभाव से ये दुख नहीं झेलना पड़ता.
स्कंद षष्ठी - हर माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द षष्ठी व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान कार्तिकेय की विधिवत पूजा की जाती है. ये दक्षिण भारत में प्रमुख व्रत में से एक है. इस व्रत के प्रभाव से संतान को सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है.
पुत्रदा एकादशी - पुत्रदा एकादशी साल में दो बार मनाई जाती है एक पौष शुक्ल पक्ष में और दूसरी श्रावण शुक्ल पक्ष में.संतान को संकट से बचाने और उसके कल्याण के लिए ये व्रत बहुत फलदायी माना गया है.
Utpanna Ekadashi 2022: उत्पन्ना एकादशी व्रत की कथा क्या है, इसके बिना व्रत माना जाता है अधूरा !
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)