Pradosh Vrat: आज है ज्येष्ठ माह का प्रदोष व्रत, जानें भोलेनाथ की पूजा का शुभ मुहूर्त

Guru Pradosh Vrat 2023: प्रति माह 2 प्रदोष व्रत पड़ते हैं. जानिए ज्येष्ठ महीने का अगला प्रदोष व्रत किस दिन रखा जाएगा और किस मुहूर्त में की जा सकेगी भगवान शिव की पूजा. 

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Guru Pradosh Vrat: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है. माना जाता है कि जो भक्त इस व्रत को रखते हैं उनपर भोलेनाथ की विशेष कृपा बरसती है. प्रति माह 2 प्रदोष व्रत रखे जाते हैं. प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है. प्रदोष व्रत में भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की पूजा-आराधना की जाती है. ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) इस बार गुरुवार के दिन पड़ रहा है. गुरुवार के दिन पड़ने के चलते इसे गुरु प्रदोष कहा जाता है. मान्यतानुसार गुरु प्रदोष व्रत रखने पर भोलेनाथ की कृपा से शत्रुओं पर विजय मिलती है और सभी कार्य बिना रुकावट होने रखते हैं. 

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गुरु प्रदोष व्रत की तारीख | Guru Pradosh Vrat Date

पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर 1 जून, गुरुवार के दिन गुरु प्रदोष व्रत रखा जाएगा. प्रदोष व्रत में प्रदोष काल (Pradosh Kaal) लगता है जिसमें पूजा करना अत्यधिक शुभ माना जाता है. कहते हैं प्रदोष काल वह समय है जब कैलाश पर्वत पर महादेव डमरू बजाते हुए प्रसन्नचित होकर नृत्य करते हैं. ऐसे में प्रदोष व्रत का महत्व और बढ़ जाता है. 

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गुरु प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त 

गुरु प्रदोष व्रत की शुरूआत त्रयोदशी तिथि में 1 जून दोपहर 1 बजकर 39 मिनट से शुरू हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन 2 जून दोपहर 12 बजकर 48 मिनट पर होगा. इस चलते पूजा 1 जून की शाम ही की जाएगी. गुरु प्रदोष व्रत में पूजा का शुभ मुहूर्त 1 जून की शाम 7 बजकर 14 मिनट से रात 9 बजकर 16 मिनट तक माना जा रहा है. इस मुहूर्त में पूजा करना अत्यधिक लाभकारी और शुभ हो सकता है. 

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प्रदोष व्रत में ऐसे करें पूजा 

गुरु प्रदोष व्रत साधक को हर काम में सफलता दिलाने वाला व्रत माना जाता है. इस व्रत की सुबह ब्रह्म मुहुर्त में उठकर स्नान करना शुभ होता है. स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं और भोलेनाथ (Bholenath) का स्मरण कर व्रत का संकल्प लिया जाता है और व्रत शुरू होता है. प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय की जाती है. शाम को पूजा में भोलेनाथ के समक्ष बेलपत्र, फूल, धतूरा, भांग, गंगाजल, दीप, धूप और गंध आदि अर्पित किए जाते हैं. इसके बाद प्रदोष व्रत की कथा और आरती गाकर पूजा का समापन होता है. अगले दिन सूर्योदय के बाद भक्त व्रत का पारण करते हैं. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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