Pradosh Vrat 2021: आज रखा जाएगा प्रदोष व्रत, जानिए व्रत कथा

Pradosh Vrat: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है. आइए जानते है प्रदोष व्रत की कथा व पूजा विधि.

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Pradosh Vrat 2021: आज है मार्गशीर्ष माह का पहला प्रदोष व्रत
नई दिल्ली:

भगवान शिव की उपासना करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है. माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की उपासना करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है. हर माह में दो बार प्रदोष व्रत पड़ता है. एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में. बता दें कि साल में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं. हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है. दिन के हिसाब से प्रदोष व्रत का महत्व भी अलग-अलग होता है. मार्गशीर्ष माह का कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत 2 दिसंबर, गुरुवार के दिन यानि आज रखा जाएगा. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है. आइए जानते है प्रदोष व्रत की कथा व पूजा विधि.

प्रदोष व्रत की कथा (Pradosh Vrat Katha)

प्राचीनकाल में एक गरीब पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ने अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भिक्षा मांगती हुई शाम तक घर वापस लौटती थी. एक समय विदर्भ देश के राजकुमार (जो कि अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था) से उसकी मुलाकात हुई. राजकुमार की हालत देख पुजारी की पत्नी उसे अपने घर ले आई और पुत्र जैसा व्यवहार करने लगी. एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई. वहां उसने ऋषि से शिव जी के प्रदोष व्रत की कथा और विधि सुनी. इसके बाद वह घर जाकर प्रदोष व्रत करने लगी.

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एक समय की बात ही दोनों बालक वन में घूम रहे थे. उनमें से एक पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, लेकिन राजकुमार वन में ही रह गया. गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते देख राजकुमार उनसे बात करने लगा. उस कन्या का नाम अंशुमती था. उस दिन वह राजकुमार घर देरी से लौटा. दूसरे दिन राजकुमार फिर से उसी स्थान पर पहुंच गया, लेकिन आज वहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी. इस दौरान अंशुमती के माता-पिता ने तुरंत राजकुमार को पहचान लिया और पूछा कि विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है. इस दौरान राजकुमार अंशुमती के माता-पिता के मन को भा गया. उन्होंने कहा कि शिवजी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते है, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं? राजकुमार ने भी खुशी-खुशी अपनी स्वीकृति दे दी और विवाह संपन्न हो गया.

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एक समय राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला कर दिया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त कर ली व पत्नी के साथ राज्य करने लगा. इस दौरान पुजारी की पत्नी और पुत्र महल में पधारे. राजकुमार भी आदर के दोनों का स्वागत करते हुए उन्हें महल के अंदर ले गया. इसके बाद पुजारी की पत्नी व पुत्र के सभी दुख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे.

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एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों की वजह पूछी, जिस पर राजकुमार अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व व व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया. उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा व महत्व बढ़ गया. मान्यतानुसार है कि लोग इसके बाद से ये व्रत रखने लगे. कई जगहों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार, स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं. इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं व व्यक्ति को अभीष्ट की प्राप्ति होती है.

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प्रदोष व्रत की विधि (Pradosh Vrat Puja Vidhi)

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निवृत हो जाएं.
  • इसके बाद भगवान शिव का स्मरण करें और व्रत करने का संकल्प लें.
  • बता दें कि इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है.
  • पूरे दिन उपावस रखकर सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण कर लें, क्योंकि प्रदोष व्रत में शाम के समय पूजा की जाती है.
  • पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध कर लें.
  • गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है.
  • इस मंडप में रंगोली बनाई जाती है.
  • प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है.
  • वहीं, उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके भगवान शिव का पूजन किया जाता है.
  • पूजन में भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते रहे.
  • अब प्रदोष व्रत कथा सुनकर शिव जी की आरती उतारें.
  • इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखा जाता है और फिर इसका विधि-विधान उद्यापन करना होता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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