Jaya Ekadashi Puja: हर साल 24 एकादशी पड़ती हैं और हर एकादशी का अपना अलग महत्व होता है. माघ के महीने में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है. माना जाता है कि इस एकादशी पर विधि-विधान से भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का पूजन किया जाए तो घर में सुख-समृद्धि आती है और पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस साल पंचांग के अनुसार, जया एकादशी की तिथि 19 फरवरी की सुबह 8 बजकर 49 मिनट से शुरू होगी और इस तिथि का समापन 20 फरवरी की सुबह 9 बजकर 55 मिनट पर हो जाएगा. उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए जया एकादशी का व्रत (Jaya Ekadashi Vrat) 20 फरवरी को रखा जाएगा और इसी दिन पूजा भी की जाएगी.
जया एकादशी की व्रत कथा | Jaya Ekadashi Vrat Katha
माना जाता है कि एक समय की बात है जब चिरकाल में स्वर्ग में स्थित नंदन वन में एक उत्सव का आयोजन किया जा रहा था. इस उत्सव में स्वर्ग के सभी देवगण, सिद्धगण और मुनि आदि उपस्थित हुए थे. इस समय नृत्य और गायन चल रहे थे जो गंधर्व और गंधर्व कन्याओं द्वारा किया जा रहा था. इसी समूह में एक नृतिका पुष्यवती की दृष्टि गंधर्व माल्यवान पर पड़ गई और वह उसके यौवन पर मोहित हो गई और अमर्यादित ढंग से नृत्य करने लगी. इस चलते माल्यवान ने बेसुरा गाना गाना शुरू कर दिया.
इस घटना को देख-सुन सभी क्रोधित होने लगे. स्वर्ग नरेश इंद्र देव ने क्रोधित होकर दोनों को स्वर्गलोक से निष्कासित कर दिया. इसके साथ ही दोनों को शाप दिया कि दोनों को अधम योनि प्राप्त होगी और दोनों इसके बाद से ही हिमालय में पिशाच योनि में कष्टदारी जीवन व्यतीत करने लगे.
सदियों बाद माघ मास की एकादशी अर्थात् जया एकादशी के दिन माल्यवान और पुष्यवती ने कुछ नहीं खाया और फल खाकर दिन व्यतीत किया. इसके बाद रातभर जागरण किया और श्रीहरि का स्मरण किया. इससे भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और दोनों को प्रेत योनि से मुक्त कर दिया. इसके बाद से ही भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और जीवन के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए जया एकादशी का व्रत रखा जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)