Holashtak Astrology Effect: हर साल की तरह इस साल भी होलाष्टक की शुरुआत फाल्गुन माह (Phalguna Month) के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होगी. बता दें कि साल 2022 में होलाष्टक (Holashtak) आज 10 मार्च को शुरु हो रहे हैं 17, जो मार्च तक रहेंगे, यानि की होलिका दहन (Holika Dahan) के साथ ही होलाष्टक का समापन होगा. होलाष्टक को लेकर एक ज्योतिषीय मत है. ज्योतिषियों की मानें तो होलाष्टक का प्रभाव ग्रहों की चाल के कारण भी होता है. होलाष्टक में चंद्रमा, सूर्य, बुध, मंगल, गुरु, शुक्र, शनि और राहु 8 ग्रह उग्र होते हैं.
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कहते हैं कि ग्रहों के उग्र होने के कारण शुभ मांगलिक कार्य नहीं किए जाते. माना जाता है कि फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन होता है, उसके बाद से ग्रहों में शांति आती है. इन उग्र ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए ज्योतिष उपाय (Astrology Remedies) बताए जाते हैं.
मान्यता है कि होलाष्टक में नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र (Navgrah Peedahar Stotra) या फिर नवग्रह कवच मंत्र (Navgrah Kavach Mantra) का पाठ करने से इन उग्र ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है. ब्रह्माण्ड पुराण में बताया गया है कि नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र का पाठ करने से ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति मिल सकती है.
नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र | Navgrah Kavach Mantra
- ग्रहाणामादिरात्यो लोकरक्षणकारक:। विषमस्थानसम्भूतां पीडां हरतु मे रवि:।।
- रोहिणीश: सुधामूर्ति: सुधागात्र: सुधाशन:। विषमस्थानसम्भूतां पीडां हरतु मे विधु:।।
- भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा। वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीडां हरतु में कुज:।।
- उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:। सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीडां हरतु मे बुध:।।
- देवमन्त्री विशालाक्ष: सदा लोकहिते रत:। अनेकशिष्यसम्पूर्ण: पीडां हरतु मे गुरु:।।
- दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामति:। प्रभु: ताराग्रहाणां च पीडां हरतु मे भृगु: ।।
- सूर्यपुत्रो दीर्घदेहा विशालाक्ष: शिवप्रिय:। मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि:।।
- अनेकरूपवर्णेश्च शतशोऽथ सहस्त्रदृक्। उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु मे तम:।।
- महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी:।।
नवग्रह कवच मंत्र
ओम शिरो मे पातु मार्तण्ड: कपालं रोहिणीपति:।
मुखमङ्गारक: पातु कण्ठं च शशिनन्दन:।।
बुद्धिं जीव: सदा पातु हृदयं भृगुनंदन:।
जठरं च शनि: पातु जिह्वां मे दितिनंदन:।।
पादौ केतु: सदा पातु वारा: सर्वाङ्गमेव च।
तिथयोऽष्टौ दिश: पान्तु नक्षत्राणि वपु: सदा।।
अंसौ राशि: सदा पातु योगश्च स्थैर्यमेव च।
सुचिरायु: सुखी पुत्री युद्धे च विजयी भवेत्।।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)