- बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण अभियान शुरू हुआ है.
- चुनाव आयोग ने मतदाताओं से पहचान और निवास के प्रमाण संबंधी दस्तावेज मांगे हैं.
- विपक्ष ने इसे गरीब और अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाने की कोशिश कहा है.
- चुनाव आयोग का कहना है कि प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत हो रही है.
बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections 2025) से पहले वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण अभियान (Bihar Voter List Revision) ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है. चुनाव आयोग ने राज्य में मतदाताओं की पहचान और नागरिकता से जुड़े दस्तावेज मांगने की प्रक्रिया शुरू की है. इसका मकसद है वोटर लिस्ट से फर्जी और गलत नाम हटाना. लेकिन विपक्ष इसे ‘वोटबंदी' और 'बैकडोर NRC' कहकर सवाल उठा रहा है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी समेत कई नेताओं का आरोप है कि यह गरीब, अल्पसंख्यक और वंचित तबकों को निशाना बनाने की कोशिश है. वहीं, चुनाव आयोग ने साफ किया है कि यह पूरी प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत हो रही है और इसमें सभी राजनीतिक दलों की भागीदारी है.
इस बीच मतदाताओं के मन में कई सवाल उठ रहे हैं- क्या डॉक्यूमेंट देना जरूरी है? किसे क्या देना होगा? अगर डॉक्यूमेंट नहीं है तो नाम हट जाएगा? क्या ये NRC है? यहां हम आपके 11 अहम सवालों के जवाब दे रहे हैं, जो इस पूरे विवाद और प्रक्रिया की सही तस्वीर पेश करते हैं.
सवाल 1. 2003 के बाद जिन लोगों का नाम वोटर लिस्ट में जुड़ा है, क्या उन्हें अपने माता-पिता का नाम या प्रूफ देने की जरूरत है?
जवाब: अगर आपका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं है और आपने बाद में नाम जुड़वाया है, तो आपको अपनी नागरिकता और जन्म से जुड़े कुछ दस्तावेज देने होंगे. इनमें माता-पिता का नाम और उनके जन्म से जुड़े प्रमाण भी शामिल हो सकते हैं. इसका मकसद केवल यह तय करना है कि आप भारतीय नागरिक हैं.
सवाल 2. जिनका जन्म 1987 के बाद हुआ है, उन्हें कौन-से दस्तावेज देने होंगे?
जवाब: 1987 के बाद जन्म लेने वालों को अपने जन्म और भारतीय नागरिकता की पुष्टि करने के लिए इनमें से कोई एक प्रमाण देना होगा:
जन्म प्रमाण पत्र
पासपोर्ट
मान्यता प्राप्त बोर्ड का शैक्षणिक प्रमाण (जैसे मैट्रिक सर्टिफिकेट)
राज्य सरकार द्वारा जारी मूल निवास प्रमाण पत्र
जाति प्रमाण पत्र (यदि ओबीसी/SC/ST वर्ग में आते हैं)
फैमिली रजिस्टर या अन्य सरकारी दस्तावेज
सवाल 3. क्या 2003 के बाद वाला आयोग का फैसला पलायन करने वाले परिवारों के लिए है?
जवाब: नहीं, चुनाव आयोग के अधिकारी ने ये साफ किया है कि यह फैसला पलायन करने वालों के लिए खासतौर पर नहीं है. यह सभी नए मतदाताओं और उन लोगों के लिए है, जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं है. इसका उद्देश्य फर्जी या दोहरे वोटरों को हटाना है, न कि पलायन करने वाले परिवारों को परेशान करना.
सवाल 4. कौन-कौन से 11 दस्तावेज जरूरी किए हैं चुनाव आयोग ने?
जवाब: चुनाव आयोग के मुताबिक, इन 11 दस्तावेजों में से कोई एक दिखाना जरूरी है:
केंद्र/राज्य सरकार द्वारा जारी पहचान पत्र
पेंशन भुगतान आदेश
1 जुलाई 1987 से पहले जारी कोई प्रमाण/सरकारी दस्तावेज
जन्म प्रमाण पत्र
पासपोर्ट
बोर्ड/यूनिवर्सिटी का शैक्षणिक प्रमाण
मूल निवास प्रमाण पत्र
जाति प्रमाण पत्र
वन अधिकार प्रमाण पत्र
फैमिली रजिस्टर
सरकार से मिला जमीन या घर का प्रमाण पत्र
सवाल 5. क्या वाकई चुनाव आयोग के पास इतने बड़े पैमाने पर अभियान चलाने का अधिकार है?
जवाब: हां, चुनाव आयोग ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत मतदाता सूची को शुद्ध करने और उसकी निष्पक्षता सुनिश्चित करने का पूरा अधिकार है. यह पुनरीक्षण अभियान उसी कानूनी दायरे में हो रहा है और इसमें सभी राजनीतिक दलों की भागीदारी भी है.
सवाल 6. अलग-अलग वर्गों के लिए अलग-अलग दस्तावेज क्यों मांगे जा रहे हैं?
जवाब:
ऐसा इसलिए क्योंकि सभी नागरिकों की परिस्थिति एक जैसी नहीं होती. गरीब, ग्रामीण, शहरी, नौकरीपेशा, बुजुर्ग, दिव्यांग आदि सभी के पास अलग-अलग तरह के दस्तावेज होते हैं. इसलिए आयोग ने कई विकल्प दिए हैं ताकि कोई वर्ग वंचित न रह जाए.
सवाल 7. चुनाव आयोग तीन अलग-अलग तारीखों का कटऑफ क्यों लाया है?
जवाब: कटऑफ तारीखें, 1987 से पहले, 1987 के बाद और साल 2003, इसलिए तय की गई हैं, ताकि जन्म और नागरिकता के संदर्भ में तीनों तरह के मामलों की जांच आसान हो सके. साल 2003 एक अहम साल है क्योंकि उस साल के पहले की वोटर लिस्ट को आधार माना गया है.
वर्तमान में बिहार में कुल 7.89 करोड़ मतदाता हैं. इनमें से करीब 4.96 करोड़ मतदाताओं का नाम पहले से ही 2003 की वोटर लिस्ट में दर्ज है.
सवाल 8. तेजस्वी यादव ने इस अभियान पर आपत्ति जताई है, उन्हें समय नहीं देने के आरोप पर आयोग का क्या जवाब है?
जवाब: चुनाव आयोग ने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी को अधिकारिक लेटर पर अपनी बात और पक्ष रखने के लिए 2 जुलाई शाम 5 बजे तक का वक्त दिया गया है. आयोग आरजेडी समेत उन तमाम राजनीतिक दलों से आज शाम 5 मुलाकात करने को तैयार है, जिनको चुनावी प्रक्रिया और मतदाता सूची को लेकर किसी भी तरह की आपत्ति है या मन में कोई सवाल है.
सवाल 9. ओवैसी ने कहा है कि सरकार इस बहाने बैकडोर से NRC लागू कर रही है! क्या ऐसा है?
जवाब: ओवैसी के आरोपों को चुनाव आयोग ने खारिज किया है. आयोग ने साफ किया है कि यह केवल वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण है, न कि NRC. यह अभियान वोटिंग अधिकार से संबंधित है, नागरिकता की वैधानिक स्थिति तय करने से नहीं.
सवाल 10. अगर आप कुछ दस्तावेज नहीं दे पाते हैं तो क्या आपका नाम वोटर लिस्ट से हट जाएगा?
जवाब: नहीं, सिर्फ दस्तावेज न देने से नाम नहीं हटेगा. BLO मतदाता से संपर्क करेगा. यदि व्यक्ति की पहचान और स्थाई निवास की पुष्टि नहीं हो पाती है, तभी नियमों के अनुसार आगे की कार्रवाई होगी. आयोग के मुताबिक, ये पूरी प्रक्रिया पारदर्शी है और हर वोटर को मौका मिलेगा.
सवाल 11. चुनाव आयोग ने दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए कितने BLO और कर्मचारियों को लगाया है?
जवाब: बिहार में 77,895 BLO पहले से कार्यरत हैं. इसके अलावा 20,603 नए BLO की नियुक्ति की जा रही है. यानी कुल करीब 98,500 BLO इस काम में लगे हैं. साथ ही एक लाख से ज्यादा स्वयंसेवक भी बुजुर्गों, दिव्यांगों और कमजोर वर्गों की मदद के लिए लगाए गए हैं.
चुनाव आयोग ने दी अहम जानकारियां
- चुनाव आयोग ने कहा है कि बिहार के कुल 7.89 करोड़ वोटर्स में से करीब 4.96 करोड़ वोटर्स के नाम पहले से ही 2003 की वोटर लिस्ट में दर्ज हैं. उन्हें बस फॉर्म भरकर अपनी जानकारी की पुष्टि करनी है.
- बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर नए वोटर फॉर्म (EF) की छपाई और घर-घर वितरण का काम शुरू हो चुका है. ऑनलाइन फॉर्म भरने की सुविधा भी चालू है और इसका अच्छा असर देखने को मिल रहा है.
- 5.74 करोड़ पंजीकृत मोबाइल नंबरों पर SMS भेजकर जानकारी दी जा रही है, ताकि मतदाता समय पर प्रक्रिया पूरी कर सकें.
- वोटर लिस्ट पुनरीक्षण से जुड़ी सारी गतिविधियां तय समय पर अच्छे तरीके से चल रही हैं.
- सभी प्रमंडलीय आयुक्त (Divisional Commissioners) और जिलाधिकारी (DM) इस अभियान में BLO को पूर्णकालिक रूप से लगा रहे हैं.
कुल मिलाकर, बिहार में वोटर लिस्ट का यह गहन पुनरीक्षण अभियान संविधान के तहत हो रहा है. इसका मकसद सिर्फ यह तय करना है कि केवल योग्य भारतीय नागरिक ही वोट डालें. यह प्रक्रिया पारदर्शी है, विकल्पों से भरपूर है और इसमें हर मतदाता को पर्याप्त मौका दिया जा रहा है.