- देश की राजनीति दो परिवारों के बीच केंद्रित रही, जिनमें शेख हसीना और खालिदा जिया के परिवार प्रमुख हैं
- शेख हसीना के सख्त शासनकाल में विकास तो हुआ लेकिन विपक्ष दबाया गया और लोकतांत्रिक रास्ता सीमित हुआ
- चुनाव की घोषणा के बाद हिंसा भड़क गई, विशेषकर अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को निशाना बनाया जाने लगा है
बांग्लादेश इन दिनों गंभीर संकट से गुजर रहा है. सड़कों पर हिंसा, पुलिस से झड़प, जलते वाहन और डर का माहौल इस मुल्क में साफ देखा जा सकता है. ऐसे में सवाल यही है कि एक समय आर्थिक विकास का मॉडल कहा जाने वाला देश अचानक आग में क्यों जलने लगा?
इसका जवाब सिर्फ मौजूदा घटनाओं में नहीं, बल्कि पिछले कई दशकों की राजनीति, सत्ता की लड़ाई और जनता के दबे गुस्से में छुपा है.
बांग्लादेश का इतिहास: देश बना, लेकिन राजनीति दो परिवारों में सिमट गई
1971 में भारत की मदद से पाकिस्तान से अलग होकर नया देश बना. बांग्लादेश. इसकी आजादी की लड़ाई के नायक थे शेख मुजीबुर रहमान, जिन्हें बांग्लादेश का राष्ट्रपिता माना जाता है. उनकी बेटी हैं शेख हसीना.
दूसरी तरफ रहीं खालिदा जिया, जो कई बार प्रधानमंत्री बनीं. यहीं से बांग्लादेश की राजनीति दो खेमों में बंट गई.
- शेख हसीना का परिवार
- खालिदा जिया और उनके बेटे तारिक रहमान
आम जनता हर चुनाव में वोट देती रही, लेकिन सत्ता इन्हीं दो परिवारों के बीच घूमती रही.
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शेख हसीना के शासन में क्या हुआ?
शेख हसीना लंबे समय तक सत्ता में रहीं. उन्होंने खुद को एक सख्त और ताकतवर नेता के रूप में पेश किया. कट्टरपंथ पर सख्त रुख अपनाया. देश में स्थिरता भी लाईं. इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास को लेकर भी काम किए. लेकिन उनपर आरोप लगे कि उन्होंने चुनाव निष्पक्ष नहीं कराए. विपक्ष को जेल और मामलों में उलझाया गया. पुलिस और प्रशासन से विरोध दबाया गया. धीरे-धीरे लोगों को लगने लगा कि सरकार बदलने का लोकतांत्रिक रास्ता बंद हो चुका है.
हिंसा की शुरुआत कैसे हुई?
शेख हसीना के खिलाफ लोगों में गुस्सा था. छात्र और युवा सड़कों पर उतरे. बेरोजगारी और महंगाई के मु्द्दे पर विरोध प्रदर्शन तेज होने लगे. स्थिति को संभालने के लिए पुलिस ने सवाल पूछने पर लाठियां चलाईं, प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया. सरकार की इसी सख्ती ने आग में घी डालने का काम किया और विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए.
शेख हसीना ने देश क्यों छोड़ा?
जब हिंसा काबू में नहीं आई, तो अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा, मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप तेज हुए, सेना की भूमिका को लेकर अटकलें शुरू हुईं और इसी बीच खबर आई कि शेख हसीना देश छोड़कर बाहर चली गईं. फिलहाल शेख हसीना भारत में रह रही हैं. शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने से साफ हो गया कि अब मुल्क के हालात सरकार के हाथ से निकल चुके हैं.
फिर हुई मोहम्मद यूनुस की एंट्री
शेख हसीना के जाने के बाद नेतृत्व का खालीपन बना. इसी बीच सामने आए मोहम्मद यूनुस. नोबेल शांति पुरस्कार विजेता, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भरोसेमंद चेहरा. डगमगाए बांग्लादेश को यूनुस का सहारा मिला. उन्हें अंतरिम व्यवस्था का जिम्मा सौंपा गया, ताकि देश को चुनाव तक संभाला जा सके.
एक साल तक उन्होंने अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर कामकाज संभाला और अब चुनाव को लेकर हालात सामान्य हुए. फिर चुनाव आयोग ने नई सरकार के गठन के लिए तारीखों का ऐलान किया. 12 फरवरी 2026 को बांग्लादेश में चुनाव होने हैं.
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले को लेकर भारत में मोहम्मद यूनुस सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं.
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चुनाव का ऐलान होते ही हिंसा क्यों भड़क गई?
यही सबसे अहम सवाल है.
दरअसल बांग्लादेश में जैसे ही चुनाव तारीखों का ऐलान हुआ फिर से हिंसा की खबरें आने लगीं. अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ मारपीट होने लगी. दीपू राय को सरेआम जला दिया गया. जानकार मानते हैं कि इस हिंसा का मकसद चुनाव रोकना या टालना हो सकता है.
यूनुस की भूमिका पर क्यों उठ रहे सवाल?
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज है कि यूनुस खेमा तुरंत चुनाव नहीं चाहता. लंबा अंतरिम दौर चाहता है ताकि नया राजनीतिक सेटअप तैयार हो सके. इसलिए हालात ऐसे बनाए जा रहे हैं कि कहा जा सके कि देश चुनाव के लिए तैयार नहीं है.
हिंसा के दौरान हिंदुओं को क्यों निशाना बनाया गया?
यह हिंसा का सबसे संवेदनशील पहलू है. रिपोर्ट्स के मुताबिक हिंदू इलाकों पर हमले किए जा रहे हैं, मंदिरों और दुकानों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर किया गया है.
बांग्लादेश पर टिकीं पूरी दुनिया की निगाहें
बांग्लादेश में मचा उत्पात सिर्फ आंतरिक मसला नहीं. यह पूरी दुनिया का ध्यान खींच रहा है. भारत, अमेरिका और चीन जैसे देशों में चिंता हैं. क्योंकि बांग्लादेश सिर्फ एक देश नहीं है, पूरा दक्षिण एशिया इससे जुड़ा है.
जहां भारत सीमा सुरक्षा, शरणार्थी संकट और बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित है तो वहीं अमेरिका और चीन जैसे देशों के आर्थिक और रणनीतिक हित भी इस मुल्क से जुड़े हुए हैं. इसीलिए पूरी दुनिया की नजरें ढाका पर टिकी हैं.
अब तारिक रहमान की एंट्री क्यों अहम हो गई?
इसी उथल-पुथल में तारिक रहमान फिर चर्चा में आ गए. वे खालिदा जिया के बेटे हैं. BNP के बड़े नेता हैं. लंबे समय से लंदन में हैं. उनके समर्थक चाहते हैं कि जल्द चुनाव हो ताकि हसीना विरोधी गुस्से का फायदा मिल सके.
आसान शब्दों में समझें तो बांग्लादेश आज दो रास्तों पर खड़ा है.
या तो समय पर चुनाव हों.
या फिर हिंसा के बहाने अंतरिम सरकार जारी रहेगी.
और इस पूरे संघर्ष की सबसे बड़ी कीमत चुका रहा है. आम नागरिक और खासकर अल्पसंख्यक समुदाय यानी बांग्लादेशी हिंदू.













