प्रतीकात्मक तस्वीर
- इंदौर के श्रीनगर एक्सटेंशन में चार कुत्तों ने एक छात्रा को काटा, जिससे उसके पैरों में गंभीर जख्म हुए और उसका इलाज जारी है
- स्थानीय लोग खुले में फेंके गए खाने-पीने के कारण कुत्तों की संख्या बढ़ने और उनके आतंक का कारण मानते हैं
- सुप्रीम कोर्ट ने लावारिस कुत्तों को घर में खाना खिलाने का सुझाव दिया और सार्वजनिक स्थानों पर उनकी संख्या नियंत्रित करने पर जोर दिया
कुत्तों द्वारा काटे जाने की घटनाओं को लेकर हर रिहायशी इलाके, हर मोहल्ले, हर सोसायटी में दो गुट बने हुए हैं. एक जो कुत्ते पाले जाने या फिर लावारिस कुत्तों को लेकर हर वक़्त नाराज़ रहते हैं, शिकायत करते रहते हैं और दूसरे वो जो कुत्ता प्रेमी हैं, प्यार से पालते भी हैं और लावारिस कुत्तों को खाना भी खिलाते हैं. अब इनमें कौन सही है या कौन गलत, इसका फ़ैसला सब जगह एक जैसा नहीं हो सकता. लेकिन मामला गंभीर है.
आए दिन होने वाली घटनाएं इस गंभीरता का अहसास कराती हैं. ताज़ा मामला इंदौर के श्रीनगर एक्सटेंशन का है. जहां शनिवार सुबह पैदल कॉलेज जा रही एक छात्रा को चार कुत्तों ने घेर लिया और काट लिया. छात्रा बचने की कोशिश में गिर गई. इस बीच एक दूसरी लड़की स्कूटी से वहां पहुंची और उसने कुत्तों को भगाया और जख्मी छात्रा के पास पहुंची. कुत्तों के हमले से छात्रा के पैरों में जख़्म हो गए. स्थानीय लोगों ने उसे अस्पताल पहुंचाया जहां उसका इलाज जारी है. स्थानीय लोगों ने बताया कि इलाके में डंपिंग यार्ड नहीं होने से लोग खुले में खाने पीने की चीज फेंकते हैं जिस वजह से यहां कुत्तों का आतंक है.
अब सवाल ये है कि लावारिस कुत्तों द्वारा काटे जाने के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए. ये तो तय है कि बेज़ुबान कुत्ते इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं. वो अपना पक्ष नहीं रख सकते. उनके लिए व्यवस्था न होना ऐसी घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार है. ये झगड़ा इतना गहरा है कि कई बार मामला सुप्रीम कोर्ट में उठ चुका है. मंगलवार को फिर ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में गूंजा. लावारिस कुत्तों को खाना खिलाने पर, परेशान किए जाने की शिकायत पर सुनवाई चल रही थी. इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछ लिया -
- आप कुत्तों को अपने घर में खाना क्यों नहीं खिलाते.
- जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने पूछा कि क्या हम हर गली, हर सड़क इन बड़े दिल वाले लोगों के लिए छोड़ दें?
- सारी जगह इन जानवरों के लिए है, इंसानों के लिए कोई जगह नहीं है.
- आप कुत्तों को अपने घर में खाना क्यों नहीं खिलाते?
- कोई आपको रोक नहीं रहा है.
ये याचिका मार्च 2025 के इलाहाबाद हाइकोर्ट के एक फ़ैसले से जुड़ी थी. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स यानी पशु जन्म नियंत्रण नियमों के तहत वो लावारिस कुत्तों को खाना नहीं खिला पा रहे हैं और उन्हें परेशान किया जा रहा है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आपको एक सुझाव देते हैं. आप अपने घर में शेल्टर खोल लीजिए. हर लावारिस कुत्ते को अपने घर में खाना खिलाइए.
याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि वो नियमों का पालन कर रहे हैं और नगर निकाय ग्रेटर नोएडा में तो लावारिस कुत्तों के खाने के लिए फीडिंग प्वॉइंट बना रहा है लेकिन नोएडा में ऐसा नहीं किया जा रहा. उन्होंने कहा कि कुत्तों को खाना खिलाने के लिए ऐसी जगहें चुनी जा सकती हैं जहां लोग ज़्यादा आते जाते न हों. इस पर जजों ने पूछा कि क्या आप सुबह साइकिलिंग पर जाते हैं. आप ऐसा करके देखिए क्या होता है.
साइकिल और अन्य दोपहिया चलाने वालों को खतरा ज़्यादा होता है. इसके बाद बेंच ने इस याचिका को आगे की सुनवाई के लिए ऐसी ही एक और याचिका के साथ जोड़ दिया. इससे पहले हाइकोर्ट में याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि स्थानीय निकायों को निर्देश दिए जाएं कि वो एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल्स का पालन करें और साथ ही Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960 के प्रावधानों का भी ध्यान रखें. इस मामले में हाइकोर्ट ने याचिका का निपटारा इस निर्देश के साथ कर दिया था कि लावारिस कुत्तों के संरक्षण के लिए उपयुक्त कदम उठाए जाएं साथ ही उन लोगों के हितों को भी सुरक्षित किया जाए जो सड़कों पर चलते हैं. ये मुद्दा इसलिए ज़्यादा गंभीर हो जाता है कि देश में कुत्तों द्वारा काटे जाने की घटनाएं बढ़ रही हैं.
- 2021 में भारत में जानवरों द्वारा काटने के 17 लाख से ज़्यादा केस सामने आए जिनमें सबसे अधिक केस कुत्तों द्वारा काटने के ही थे.
- 2022 में ये तादाद 21.8 लाख हो गई.
- 2023 में ये तादाद 27.5 लाख हो गई
- 2024 में करीब 22 लाख घटनाएं दर्ज की गईं. इनमें से 20% मामलों में बच्चे शिकार बने.
इसी साल लोकसभा में पशुपालन मंत्री राजीव रंजन सिंह ने ये जानकारी दी. उन्होंने कहा कि आवारा पशुओं का मामला राज्य सरकारों के तहत आता है और इसलिए इससे जुड़ी घटनाओं से निपटने की ज़िम्मेदारी स्थानीय निकायों की है. दरअसल, ये पूरा विवाद हो ही ना अगर स्थानीय निकाय अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने लगें. लावारिस कुत्तों की तादाद पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार ने Prevention of Cruelty to Animals Act, 1960 के तहत 2001 में एनिमल बर्थ कंट्रोल (डॉग) रूल तैयार किया था जिसे 2023 में और प्रभावी बनाया गया.
- इसे लागू करने की ज़िम्मेदारी स्थानीय निकायों की है. इसके तहत मानवीय तरीके से आवारा कुत्तों की तादाद बढ़ने से रोकने के लिए उनके बंध्याकरण का नियम है.
- इसके अलावा ऐंटी रेबीज़ टीकाकरण पर ज़ोर है. इसके बाद उन्हें वहीं छोड़ना है जहां से उन्हें उठाया गया. लेकिन ये देखा गया कि इस नियम पर नगर निगम या नगर पालिकाएं ठीक से अमल नहीं करतीं.
पशु कल्याण बोर्ड भी इस पर ज़ोर दे चुका है. दरअसल, लावारिस कुत्तों के बंध्याकरण का अभियान अगर गंभीरता से चलाया जाए और उनके लिए खाने की जगह यानी फीडिंग प्वॉइंट तय कर दी जाएं तो आने वाले समय में इस समस्या पर काफ़ी हद तक काबू पाया जा सकता है. लेकिन कुत्तों को मारना पीटना या उन्हें लेकर आपस में झगड़ना इस समस्या का समाधान बिलकुल नहीं है.