अरावली के 100 मीटर फॉर्मूले से सुप्रीम कोर्ट की मुहर तक, समझिए पूरा मामला

खनन बनाम संरक्षण. 100 मीटर फॉर्मूला. गहलोत के सवाल. केंद्र का जवाब और सुप्रीम कोर्ट की मुहर. क्या सच में सुरक्षित है देश की सबसे पुरानी अरावली पर्वतमाला?

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा पर सियासी घमासान चल रहा है, अशोक गहलोत ने 100 मीटर फॉर्मूले पर सवाल उठाए हैं.
  • वहीं केंद्र का दावा है कि नई वैज्ञानिक परिभाषा से अरावली का 90% से अधिक इलाका संरक्षित होगा.
  • SC ने नई खनन लीज पर रोक लगाई, दीर्घकालिक माइनिंग प्लान अनिवार्य किया. क्या सुरक्षित है सबसे पुरानी पर्वतमाला?
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

देश की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक अरावली एक बार फिर सियासी और पर्यावरणीय बहस के केंद्र में है. वजह है अरावली की 'परिभाषा' और उससे जुड़े 100 मीटर फॉर्मूले को लेकर उठा विवाद, जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है. राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसे अरावली के लिए खतरा बता रहे हैं, तो वहीं केंद्र सरकार और बीजेपी का दावा है कि यह परिभाषा पहले से ज्यादा सख्त, वैज्ञानिक और संरक्षण-केंद्रित है.

विवाद की जड़: 100 मीटर का फॉर्मूला

अशोक गहलोत का आरोप है कि बीजेपी सरकार ने उस 100 मीटर फॉर्मूले को मान्यता दिलवाई, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में खारिज कर दिया था. उनके मुताबिक, नई परिभाषा से अरावली की करीब 90 फीसद पर्वतमाला नष्ट हो सकती है, जिससे खनन माफिया को फायदा मिलेगा और राजस्थान के पर्यावरण को भारी नुकसान होगा. हालांकि, केंद्र सरकार इस आरोप को पूरी तरह खारिज कर चुकी है.

क्या कहती है नई परिभाषा?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत बनी समिति की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को स्वीकार किया.

इसके मुताबिक-

  • अरावली पहाड़ियां: ऐसी कोई भी जमीन जिसकी ऊंचाई स्थानीय भू-भाग (जमीन) से 100 मीटर या उससे अधिक हो.
  • अरावली रेंज (पर्वतमाला): यदि दो या उससे अधिक ऐसी पहाड़ियां 500 मीटर के दायरे में हैं, तो उन्हें एक ही पहाड़ियों का समूह माना जाएगा.
  • इन पहाड़ियों और रेंज के भीतर आने वाले सभी लैंडफॉर्म, उनकी ऊंचाई या ढलान चाहे जो हो, खनन से बाहर रहेंगे.

सरकार का कहना है कि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि 100 मीटर से नीचे के सभी इलाके खनन के लिए खोल दिए गए हैं.
 

Photo Credit: ANI

केंद्र का दावा: संरक्षण पहले से अधिक मजबूत

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव के मुताबिक, नई परिभाषा से अरावली क्षेत्र का 90 फीसद से अधिक हिस्सा संरक्षित क्षेत्र में आ जाएगा. सरकार का तर्क है कि इससे अस्पष्टता खत्म होगी, राज्यों में नियम एक जैसे होंगे और अवैध खनन पर सख्त लगाम लगेगी.
भूपेंद्र यादव ने कहा, "अरावली के 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर के कुल एरिया में से सिर्फ 0.19 फीसद क्षेत्र में ही माइनिंग यानी खनन की इजाजत है. बाकी पूरी अरावली को संरक्षित और सुरक्षित रखा गया है."
'100-मीटर' के नियम पर विवाद के बीच जारी एक स्पष्टीकरण में, सरकार ने उन दावों को खारिज कर दिया कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले इलाकों में माइनिंग की इजाजत दी गई है और कहा कि यह पाबंदी पूरे पहाड़ी सिस्टम और उनसे जुड़ी जमीनों पर लागू होती है, न कि केवल पहाड़ी चोटी या ढलान पर.

राजस्थान मॉडल बना आधार

पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने मई 2024 में अरावली से जुड़े लंबे समय से लंबित मामलों की सुनवाई के दौरान एक समान परिभाषा तय करने के लिए समिति बनाई थी. इसमें राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली के प्रतिनिधि शामिल थे.

Advertisement

समिति ने पाया कि केवल राजस्थान में ही 2006 से अरावली की एक औपचारिक परिभाषा लागू है. उसी को आधार बनाकर, लेकिन  अतिरिक्त सुरक्षा उपायों के साथ, सभी राज्यों ने इसे अपनाने पर सहमति दी.

इनमें भारतीय सर्वेक्षण विभाग के नक्शों पर पहाड़ियों की अनिवार्य मैपिंग, 500 मीटर के भीतर की पहाड़ियों को एक ही रेंज मानना, कोर और अछूते क्षेत्रों की स्पष्ट पहचान, अवैध खनन रोकने के लिए ड्रोन, सीसीटीवी और जिला टास्क फोर्स शामिल हैं.

Advertisement

Photo Credit: NDTV

सुप्रीम कोर्ट के अहम निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए साफ निर्देश दिए कि नई खदान लीज पर तब तक रोक रहेगी, जब तक पूरे अरावली क्षेत्र के लिए सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान (MPSM) तैयार नहीं हो जाता. यह भी निर्देश दिया गया कि कुछ रणनीतिक और परमाणु खनिजों के अलावा कोर और अछूते क्षेत्रों में खनन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा. साथ ही मौजूदा खानों को भी सख्त पर्यावरणीय और वन नियमों का पालन करना होगा.

अरावली क्यों है इतनी अहम?

राजधानी दिल्ली से हरियाणा होते हुए राजस्थान और गुजरात के पालनपुर तक फैली अरावली पर्वतमाला केवल पहाड़ नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी रेगिस्तान थार के फैलाव को रोकने वाली एक प्राकृतिक दीवार भी है. जैव विविधता और वन्यजीवों से अटे पड़े इस पर्वतमाला का क्षेत्र भूजल रिचार्ज का बहुत बड़ा स्रोत है. इसे  दिल्ली-एनसीआर का ग्रीन लंग्स भी कहा जाता है.

Advertisement

अब जहां अशोक गहलोत इसे पुराने, खारिज किए जा चुके फॉर्मूले की वापसी बता रहे हैं, वहीं केंद्र और सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह उसी परिभाषा को ज्यादा मजबूत और वैज्ञानिक बनाना है, ताकि पूरी पर्वतमाला और उससे जुड़े इकोसिस्टम की सुरक्षा हो सके.

अरावली का मामला सिर्फ 100 मीटर का नहीं, बल्कि पूरे लैंडस्केप, पानी, हवा और भविष्य की पीढ़ियों से जुड़ा है. सुप्रीम कोर्ट की मुहर के बाद गेंद अब केंद्र और राज्यों के अमल पर है- क्या नियम जमीन पर सख्ती से लागू होंगे या अरावली फिर विवादों में घिरती रहेगी.

Advertisement
Featured Video Of The Day
Delhi Pollution: दिल्ली को दमघोंटू हवा से नहीं मिल रही निजात , खतरनाक स्तर पर पहुंचा AQI