दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने अपने एक फैसले में कहा कि अगर पति ऐसे हालात पैदा कर देता है जिसमें पत्नी की उसके साथ रहना संभव नहीं रह जाता तो ऐसी परिस्थिति में पत्नी गुजारा- भत्ते के लिए पति पर दावा कर सकती है. हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों को निश्चित परिस्थितियों में पत्नियों के भरण-पोषण से संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के पीछे के उद्देश्य को भी ध्यान में रखना चाहिए. हाईकोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि भरण-पोषण से संबंधित हर मामले को एक ही तरीके से नहीं निपटा जाना चाहिए, साथ ही संबंधित अदालतों को 'संवेदनशील और सतर्क' होना चाहिए.
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी निचली अदालत के एक आदेश के खिलाफ एक महिला की याचिका पर की है. निचली अदालत ने कहा था कि याचिकाकर्ता सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा-भत्ते का दावा करने की हकदार नहीं है, क्योंकि उसके खिलाफ वैवाहिक अधिकारों की बहाली का एक पक्षीय आदेश दिया गया था.
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि इस फैसले में निचली अदालत का तर्क 'त्रुटिपूर्ण' था. उन्होंने कहा कि दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए एक पक्षीय आदेश के मद्देनजर आपराधिक कानून के तहत गुजारा भत्ता देने पर विचार करने के लिए कोई पूर्ण रोक नहीं है और यदि संबंधित अदालत इस बात को लेकर संतुष्ट है कि ऐसी परिस्थितियां मौजूद हैं कि पत्नी के पास पति से दूर रहने का उचित आधार है, तो गुजारा भत्ता दिया जा सकता है.
भरण-पोषण का दावा भरण-पोषण की लड़ाई बन गया
यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता द्वारा भरण-पोषण की याचिका 2009 में दायर की गई थी, अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि वर्तमान मामला खुद एक कहानी बताता है कि कैसे भरण-पोषण का दावा भरण-पोषण की लड़ाई बन गया क्योंकि यह कई अदालतों के सामने नौ साल तक चला था और इस तरह के मामलों को जल्द से जल्द निपटाने के लिए संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है.
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के समक्ष यह तर्क देने के लिए सबूत पेश किया था कि उसके पास "पति से दूर रहने का हर कारण था क्योंकि उसकी जान को खतरा था और इसलिए निचली अदालत को भरण-पोषण के मुद्दे पर फैसला करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
पत्नी को गुजारा-भत्ते से इनकार नहीं किया जा सकता
न्यायाधीश ने कहा कि यदि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य से पता चलता है कि पति के आचरण के कारण पत्नी उसके साथ रहने में सक्षम नहीं है और पति ने पत्नी और नाबालिग बच्चों की परवरिश से इनकार कर दिया है, तो पत्नी को गुजारा-भत्ते से इनकार नहीं किया जा सकता.
अदालत ने कहा, "पति द्वारा क्रूरता का आचरण और अपनी पत्नी को अनैतिकता के लिए जिम्मेदार ठहराना और यहां तक कि विवाह से पैदा हुए बच्चों के पितृत्व पर सवाल उठाना भी उसे अलग रहने और भरण-पोषण का दावा करने के लिए उचित ठहराएगा. इस पृष्ठभूमि के साथ जब यह अदालत वर्तमान मामले के तथ्यों की जांच करती है जैसे कि क्या वह भरण-पोषण की हकदार थी या नहीं, इसका उत्तर सकारात्मक होना चाहिए.
ट्रायल कोर्ट को मामले पर नए सिरे से विचार करने के लिए कहते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों से निपटने वाले न्यायाधीशों को सीआरपीसी की धारा 125 के पीछे के उद्देश्य और ऐसे लोगों को सम्मानजनक अस्तित्व देने की आवश्यकता को ध्यान में रखना चाहिए, जिन्हें कानूनी रूप से बनाए रखने की आवश्यकता है.
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