दिल्ली सरकार ने कांवड़ियों के लिए किया 10 लाख रुपये देने का ऐलान, किसे और कैसे मिलेंगे, जानें

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि पहले की सरकार कांवड़ यात्रा के नाम पर भ्रष्टाचार करती थी. सरकार टेंडर निकालती थी  लेकिन अंतिम वक्त तक ठेकेदार न तो टेंट उपलब्ध करा पाता था न ही दूसरी सामग्री.

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कांवड़ियों की सेवा के लिए दिल्ली सरकार का खास इंतजाम.
नई दिल्ली:

दिल्ली सरकार कांवड़ियों की सेवा (Kanwar Yatra) के लिए 10 लाख रुपए तक की मदद देने जा रही है. राजधानी की दो सौ से ज्यादा कांवड़ सेवा समितियों को 50 हजार से 10 लाख रुपए अनुदान दिया जाएगा. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता (CM Rekha Gupta) ने कहा कि वह चाहती हैं कि कांवड़ियों को दिल्ली में एक पत्थर तक न चुभे. सेवा समर्पण वाले इस उत्सव में लोग बढ़ चढ़ कर भाग लें. यह फैसला दिल्ली सरकार की कैबिनेट बैठक में लिया गया.

कांवड़ यात्रा के लिए मिलेगी 10 लाख तक की मदद

 कैबिनेट बैठक में कांवड़ यात्रा और शिवभक्तों को लेकर चर्चा हुई. इसके बाद यह फैसला लिया गया कि इस बार कांवड़ियों की सेवा के लिए समितियों को भाग-दौड़ और पैसे की किल्लत का सामना न करना पड़े इसके लिए सरकार डायरेक्ट बेनिफिट योजना के तहत कांवड़ समितियों को चार श्रेणियों में बांटकर 50 हज़ार रुपए से लेकर 10 लाख तक की मदद देगी. इसके लिए पैसे उनको सीधे ट्रांसफर किए जाएंगे. 

दिल्ली में कांवड़ियों की 180 समितियां रजिस्टर्ड

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि 50 फीसदी पैसा पहले और बाकी पैसा खर्चे का ब्योरा आ जाने के बाद दिया जाएगा. बता दें दिल्ली में कांवड़ियों की 180 समितियां रजिस्टर्ड हैं. सरकार ने फैसला लिया है कि अब वह फंड सीधा कांवड़ यात्रा रजिस्टर्ड समिति को देगी. दिल्ली में अगर समिति रजिस्टर्ड नहीं है तो 30 जुलाई तक वह डीएम दफ्तर जाकर इसे रजिस्टर्ड कराया जा सकता है. लेकिन समिति के रजिस्ट्रेशन के लिए इलाके के विधायक और सांसद की संस्तुति भी ज़रूरी है.

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बताया कि कांवड़ समितियों को नो अब्जेक्शन सार्टिफिकेट के लिए धक्का न खाना पड़े इसके लिए सिंगल विंडो सिस्टम किया जा रहा है.

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कांवड़ यात्रा के नाम पर होता था भ्रष्टाचार 

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि पहले की सरकार कांवड़ यात्रा के नाम पर भ्रष्टाचार करती थी. सरकार टेंडर निकालती थी  लेकिन अंतिम वक्त तक ठेकेदार न तो टेंट उपलब्ध करा पाता था न ही दूसरी सामग्री. यानि सरकार पांच सौ रुपए खर्च करती थी लेकिन सौ रुपए का लाभ भी नहीं मिलता था. यात्रा समितियों ने बताया कि आखिरी वक्त तक टेंट नहीं लग पाता था.
 

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