जानें, दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने क्यों कहा- 'शुक्रिया मोदी सरकार'

मनीष सिसोदिया ने केंद्र सरकार की 'नो डिटेंशन पालिसी' समाप्त करने के फैसले का किया स्वागत

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दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने नो डिटेंशन पॉलिसी खत्म करने पर केंद्र सरकार से शुक्रिया कहा है.
नई दिल्ली: वैसे तो केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच तनातनी हमेशा ही बनी रहती है लेकिन आज दिल्ली के शिक्षा मंत्री और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने केंद्र सरकार सरकार को शुक्रिया कहा. इसका कारण केंद्र सरकार द्वारा लिया गया एक ऐसा फैसला है जिसकी मांग सिसोदिया लंबे समय से कर रहे थे.

केंद्र सरकार ने 'नो डिटेंशन पालिसी' यानि कि आठवीं कक्षा तक किसी भी विद्यार्थी को फेल न करने की नीति समाप्त कर दी है. सिसोदिया ने फैसले का स्वागत करते हुए केंद्र का शुक्रिया अदा किया है. सिसोदिया ने कहा कि "करीब ढाई साल पहले हमने स्कूल एजुकेशन कानून में संशोधन करके नो डिटेंशन पालिसी को खत्म किया था आपने अब पास किया इसके लिए शुक्रिया."

आपको बता दें कि दिल्ली समेत कई दूसरे राज्य लगातार नो डिटेंशन पालिसी को खत्म करने की मांग कर रहे थे जिसके तहत दिल्ली सरकार ने तो कानून में संशोधन करके केंद्र को मंजूरी के लिए भी 2015 में ही भेज दिया था.

मनीष सिसोदिया हमेशा से इस नीति के विरोधी रहे हैं. एनडीटीवी इंडिया से बातचीत में सिसोदिया ने कहा कि "इसकी सबसे बड़ी समस्या 9वी 10 वी में आकर हो रही थी. आठवीं तक बच्चे को बहुत गैर जिम्मेदारी से पढ़ाया जा रहा था. क्योंकि शिक्षा का अधिकार कानून में नो डिटेंशन लागू था तो बच्चे को  पढ़ाओ न पढ़ाओ उसको अगली क्लास में पहुंच ही जाना है. अचानक जब 9वीं में एग्जाम होता है तो बच्चा फेल होता है. जब RTE लागू हुआ तब हमारे सरकारी स्कूल में फेल होने का परसेंटेज 5-6% था जो अब करीब 50% तक आ गया था. हमने अभियान चलाया तो भी केवल 2% का सुधार हुआ. लेकिन आप कितने भी अभियान चला लीजिए अगर आठ साल बच्चे पर मेहनत नहीं हुई तो 9वीं में बच्चा फेल होगा."

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हालांकि सिसोदिया के मुताबिक यह नीति तो अच्छी थी लेकिन इसको लागू ठीक से नहीं किया गया. सिसोदिया के मुताबिक "ये दुर्भाग्य है कि इतना बड़ा रिफार्म हमको वापस लेना पड़ रहा है लेकिन इसकी वजह यह है कि इसकी तैयारी नहीं की थी. बीएड का एग्जाम, एग्जाम पैटर्न, बुक्स, पढ़ाने के तरीके बदलने की ज़रूरत थी लेकिन वह सब नहीं हुआ और हमको लगा बस संसद से एक कानून पास करके कि अब बच्चे फेल नहीं होंगे सब हो जाएगा. जो कि संभव नहीं था."

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नो डिटेंशन पालिसी यानी आठवीं कक्षा तक किसी भी हाल में फेल नहीं किया जा सकता. इसकी वजह से आरोप लगे कि न बच्चे पढ़ते हैं न टीचर पढ़ाते हैं. नतीजा यह हुआ कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 9वीं में 50% या एक लाख से ज्यादा बच्चे हर साल फेल हो रहे थे.

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दिल्ली के सरकारी स्कूल में हर साल दो से ढाई लाख बच्चे 9वीं की परीक्षा देते हैं. 2011-12 में जहां 9वी की परीक्षा में केवल 4.9% बच्चे फ़ेल हुए थे वो बीते साल 2015-16 में बढ़कर 49.22% हो गए यानी परीक्षा देने वाले आधे बच्चे फ़ेल. साल 2016-17 में  कुल 2,44,636 छात्र 9वी की परीक्षा में बैठे जिसमे से 1,16, 732 छात्र फेल हुए यानी 47.22 % बच्चे फेल.

आल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल मानते हैं कि 'नो डिटेंशन पालिसी खत्म करना कोई अच्छा कदम नहीं है. सरकार और सरकारी स्कूल के शिक्षक अपनी नाकामी और निकम्मेपन का ठीकरा बच्चों पर यह कहकर फोड़ रहे हैं कि इसके चलते बच्चे पढ़ते नहीं थे क्योंकि उनको पता है पास तो हो ही जाएंगे लेकिन अगर ऐसा है तो प्राइवेट स्कूल के बच्चे 9वी में पास हो जाते हैं और सरकारी के बड़े पैमाने पर फेल?'

VIDEO : नीति में बदलाव



जबकि दिल्ली सरकारी स्कूल शिक्षक संघ के अध्यक्ष सीपी सिंह का कहना है कि 'इसमें टीचर की कोई गलती नही है. टीचर तो अपना पूरा ज़ोर लगाता है लेकिन जब बच्चे में ये भावना खत्म हो जाती है कि दूसरा बच्चा पास हो जाएगा और कहीं मैं फेल न हो जाऊं तो उसके अंदर से प्रतिस्पर्धा  का भाव चला जाता है क्योंकि उसको पता है पास तो वह हर हाल में हो जाना है. तो वह पढ़ने पर ध्यान नहीं देता और इसी कारण 9वीं कक्षा तक में हाल यह होता है कि बच्चा अपनी टेक्स्ट बुक तक नहीं पढ़ पाता तो पास कैसे होगा?'
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