शशांक मनोहर में क्या है ऐसी खासियत कि किसी ने नहीं किया उनका विरोध

शशांक मनोहर में क्या है ऐसी खासियत कि किसी ने नहीं किया उनका विरोध

नई दिल्ली:


बीसीसीआई के 36वें अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभालने वाले शशांक मनोहर को अपनी ईमानदारी के लिए जाना जाता है। वह ऐसे समय में देश की सबसे धनी खेल संस्था प्रमुख बने हैं जबकि स्पॉट फिक्सिंग और गुटबाजी के कारण क्रिकेट की छवि खराब हो रखी है।

सख्त मिजाज और सिद्वांतवादी माने जाते हैं मनोहर
नागपुर के रहने वाले 58 साल के वकील मनोहर काफी कम बोलते हैं और उन्हें ऐसे शख्स के रूप में जाना जाता है जो सख्त मिजाज और सिद्वांतवादी हैं, जिन्हें फालतू की बकवास पसंद नहीं है, लेकिन इसके साथ ही वह खिलाड़ियों की हर जरूरत का खयाल भी रखते हैं। एक चतुर रणनीतिकार और किसी भी नीतिगत फैसले को लागू करने में माहिर मनोहर साल 2005 से ही समस्याओं से निजात दिलाने वाले के शख्स के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने तब शरद पवार के साथ उपाध्यक्ष पद संभाला था। वह 2008 में बोर्ड के अध्यक्ष बने और 2011 में अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद खबरों में नहीं रहे। साल  2013 में आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामला सामने आने तक वह कभी कभार ही क्रिकेट से जुड़े मसलों पर अपनी राय रखते थे।

शशांक मनोहर और एन. श्रीनिवासन की लड़ाई
इसके बाद हालांकि मनोहर और श्रीनिवासन एक दूसरे के विरोधी बन गए। मनोहर सिद्वांतों पर अडिग रहे और उन्होंने तमिलनाडु के दमदार शख्स श्रीनिवासन से पद छोड़ने का भी आग्रह किया। दूसरी तरफ श्रीनिवासन यह दावा करते रहे कि यह विशुद्ध रूप से प्रतिशोध का मामला है। एक सिद्वांतवादी शख्स होने के कारण ही जब जगमोहन डालमिया के निधन के बाद अध्यक्ष पद के लिए जंग शुरू हुई तो वह इस पक्ष में नहीं थे कि पवार श्रीनिवासन से हाथ मिलाएं। जब डालमिया की जगह लेने के लिए कई नामों पर चर्चा चल रही थी, तब वित्तमंत्री अरुण जेटली सहित बीसीसीआई के अधिकतर प्रभावशाली नीति निर्माता भी एक नाम पर सहमत थे और वह मनोहर थे।

पिछले कार्यकाल में भी लिए थे कई अहम फैसले
मनोहर ने अपने पहले कार्यकाल (साल 2008 से 2011 तक) में कुछ महत्वपूर्ण फैसले किए थे। इनमें तत्कालीन आईपीएल आयुक्त ललित मोदी का वित्तीय अनियमितताओं के कारण निलंबन, हेराफेरी के आरोपों के बाद नई टीमों के लिए नए सिरे से बोली लगाना और कोच्चि टस्कर्स केरल की बैंक गारंटी को भुनाने की बीसीसीआई को सलाह देना शामिल है। मनोहर के अध्यक्ष रहते ही भारत ने 28 वर्षों के बाद वनडे वर्ल्ड कप जीता था और उस समय टीम के हर एक खिलाड़ी को दो-दो करोड़ रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया था।

आज भी पास नहीं कोई मोबाइल फोन
साल 2013 में जब आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामला सामने आया तो मनोहर ने सबसे पहले श्रीनिवासन से अपने दामाद की कारगुजारियों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देने की मांग की थी। वह इतने ईमानदार थे कि यहां तक कि श्रीनिवासन सहित बीसीसीआई के कई दिग्गजों पर कीचड़ उछालने वाले ललित मोदी भी सोसल नेटवर्किंग साइट्स पर उनके खिलाफ कुछ नहीं कह पाए। बेहद सरल जिंदगी जीने वाले मनोहर के पास आज भी मोबाइल फोन नहीं है। उनसे उनके कार्यालय और निवास के दो लैंडलाइन नंबरों के जरिये बात की जा सकती है। उनके निजी ईमेल पर बातचीत उनकी पत्नी वर्षा मनोहर के ईमेल अकाउंट के जरिये होती है। उनका पहला पासपोर्ट तब जारी किया गया था जब वह 51 साल के थे।

क्रिकेट समुदाय से पहला परिचय
भारतीय क्रिकेट समुदाय का मनोहर से पहला परिचय अक्तूबर 2004 में हुआ था, जब ग्लेन मैकग्रा और जैसन गिलेस्पी जैसे तेज गेंदबाजों वाले ऑस्ट्रेलियाई आक्रमण को घरेलू टीम के खिलाफ उछाल वाली घसियाली पिच उपलब्ध करायी गई। मनोहर के निर्देश पर क्यूरेटर ने घास नहीं काटी और कप्तान सौरव गांगुली आखिरी क्षणों में मैच से हट गए। इस फैसले का कारण गांगुली के जरिये डालमिया को सबक सिखाना माना गया था। इसके बाद जब बीसीसीआई की कोलकाता एजीएम में पवार को रणबीर सिंह महेंद्रा ने 15-16 के अंतर से हराया तो मनोहर यहां से बोर्ड की राजनीति को अंदर से समझने लगे। इसके अगले साल पवार ने मनोहर के दिमाग, श्रीनिवासन और मोदी की मनी पावर, आईएस बिंद्रा के अनुभव से डालमिया को बोर्ड से बाहर कर दिया था।

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करने होंगे कई अहम फैसले
मनोहर का मौजूदा कार्यकाल साल 2017 तक चलेगा। इस बीच उन्हें फैसले करने होंगे कि क्या जून 2016 तक आईसीसी में बीसीसीआई का प्रतिनिधित्व श्रीनिवासन करेंगे या नहीं तथा पहले से निलंबित सीएसके और राजस्थान रॉयल्स इससे भी कड़ी सजा के हकदार हैं या नहीं। मनोहर को इसके अलावा विशेषज्ञों के साथ मिलकर खाका भी तैयार करना होगा जिससे कि भारत विदेशों में भी अच्छा प्रदर्शन कर सके।