Not A Racist: घुटने नहीं टेकने पर क्विंटन डि कॉक ने मांगी माफी, कही दिल की बात

क्विंटन डी कॉक ने 'ब्लैक लाइव्स मैटर' के लिए गुटने नहीं टेकने पर माफी मांगी है. उन्हें कहा है, 'अगर उनके घुटने टेकने से लोगों के अंदर जागरूकता आती है तो वह जरुर यह कार्य करेंगे.'

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क्विंटन डी कॉक ने मांगी माफी
अबू धाबी:

हाल ही में दक्षिण अफ्रीकी 28 वर्षीय अनुभवी विकेटकीपर क्विंटन डी कॉक (Quinton de Kock) ने 'ब्लैक लाइव्स मैटर' के लिए घुटने टेकने से मना कर दिया था. डी कॉक के इस फैसले के बाद क्रिकेट जगत में उथल-पुथल मच गया. दरअसल जहां पूरा विश्व 'ब्लैक लाइव्स मैटर' के लिए जमकर अपना विरोध जता रहा है. वहीं, अफ्रीकी विकेटकीपर-बल्लेबाज ने वेस्टइंडीज के खिलाफ अहम मुकाबले से पहले 'ब्लैक लाइव्स मैटर' कार्यक्रम में हिस्सा लेने से मना कर दिया था. डी कॉक के इस बड़े फैसले के बाद टीम मैनेजमेंट ने भी सख्त कदम उठाते हुए उन्हें वेस्टइंडीज के खिलाफ अंतिम प्लेइंग इलेवन से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. 

डि कॉक के इस बड़े फैसले के बाद पहले पहल तो यह खबर आई कि उन्होंने खुद को वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलने के लिए अनुपलब्ध बताया है, लेकिन कुछ देर बाद खबर की सत्यता का पता चला. बहरहाल मामले को ज्यादा तुल पकड़ते देख अफ्रीकी होनहार खिलाड़ी ने माफी मांग ली है. उन्होंने कहा है, 'मैं अपने साथी खिलाड़ियों और क्रिकेट प्रेमियों से क्षमा मांगता हूं. मैं इस मुद्दे को कभी भी बड़ा नहीं बनाना चाहता था. नस्लवाद के खिलाफ आवाज उठाने की महत्ता को मैं अच्छे तरीके से समझा हूं. इसके अलावा बतौर खिलाड़ी मैं भली-भांति समझता हूं कि एक खिलाड़ी के तौर पर इसको लेकर हमारे उपर बड़ी जिम्मेदारी है.' 

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अफ्रीकी खिलाड़ी ने अपने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा,'अगर उनके घुटने टेकने से लोगों के अंदर जागरूकता आती है तो वह जरुर यह कार्य करेंगे.' इसके अलावा डि कॉक ने बताया वह अपनी भावनाओं को अच्छे से व्यक्त नहीं कर पाते हैं, लेकिन उन्होंने समझाने की पूरी कोशिश की है. उन्होंने कहा है, 'इस मामले के दौरान साथ देने के लिए अपने साथियों को धन्यवाद देना चाहता हूं. विशेषकर अपने कप्तान टेम्बा बावुमा को. वह एक अविश्वसनीय कप्तान हैं. अगर उनकी (टेम्बा बावुमा) और टीम की मर्जी रही तो वह फिर से अपने देश के लिए क्रिकेट खेलना चाहेंगे.'

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डि कॉक ने आखिर में कहा उनके लिए बचपन के दिनों से ही समानता का मुद्दा बहुत मायने रखता है. यह बस इसलिए नहीं कि मौजूदा समय में इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय आंदोलन जारी है, बल्कि सबका अधिकार और उनकी समानता सबसे महत्वपूर्ण बनाती है.

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