पहले भी बीच मझधार में टीम इंडिया को छोड़ गए हैं प्रायोजक, जानें कब और क्यों बिगड़ी बीसीसीआई से बात

BCCI's Title Sponsorship Ill-Fated: ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी प्रायोजक ने बोर्ड को बीच मझधार में छोड़ा हो. इससे पहले ओप्पो और बायजूस जैसे कंपनी बीच में ही स्पॉनशरशिप छोड़ चुकी है.

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BCCI's Title Sponsorship Ill-Fated: पहले भी बीच मझधार में टीम इंडिया को छोड़ गए हैं प्रायोजक
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  • ऑनलाइन गेमिंग प्रमोशन एंड रेगुलेशन बिल से रियल मनी गेमिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
  • ड्रीम-11 ने इस कानून के कारण टीम इंडिया की जर्सी स्पॉन्सरशिप से बाहर निकलने का फैसला किया है.
  • पिछले वर्षों में सहारा, स्टार इंडिया, ओप्पो और बायजूस जैसी कंपनियों ने बीच में ही स्पॉन्सरशिप छोड़ दी थी
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रियल-मनी गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म पर शिकंजा कसने के इरादे से लाए गए 'ऑनलाइन गेमिंग प्रमोशन एंड रेगुलेशन बिल' को राष्ट्रपति से मंजूरी मिल गई है. इस कानून के चलते ड्रीम-11, माई इलेवन सर्कल जैसे फैंटेसी गेमिंग ऐप्स ने रियल मनी गेम्स पर रोक लगा दी है. इन कंपनियों का भविष्य खतरे में हैं. ऑनलाइन गेमिंग बिल के चलते ही ड्रीम 11 ने भारतीय जर्सी की स्पॉनशरशिप से हाथ खिंचने का फैसला लिया है. एशिया कप और महिला वनडे वर्ल्ड कप एकदम सामने हैं और ऐसे में बीसीसीआई को नए प्रायोजक की तलाश है. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी प्रायोजक ने बोर्ड को बीच मझधार में छोड़ा हो. इससे पहले ओप्पो और बायजूस जैसे कंपनी बीच में ही स्पॉनशरशिप छोड़ चुकी है. एक अजीब इत्तेफाक यह भी है कि इस सदी में जिस भी कंपनी का नाम भारतीय जर्सी पर आया, उसे अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा.

बीच मझधार में छोड़ गए प्रायोजक

सहारा (2001-2012): सहारा इंडिया लंबे समय कर टीम इंडिया की  टाइटल स्पॉन्सरशिप रही. इस दौरान टीम इंडिया ने दो वर्ल्ड कप जीते. टीम इंडिया के साथ इतनी लंबी साझेदारी के दौरान सहारा का कारोबार धीरे-धीरे डगमगा गया. सहारा परिवार ने 2012 में भारतीय क्रिकेट टीम के प्रायोजक के रूप में हटने की घोषणा की. यह सेबी के एक्शन के बाद आया था, जिसके चलते ग्रुप का पतन हुआ. इसके संस्थापक सुब्रत रॉय को 2014 में गिरफ्तार भी किया गया था.

स्टार इंडिया (2014-2017): वित्तीय दबाव और भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की जांच ने प्रसारण दिग्गज को मात दे दी. नतीजा यह हुआ कि उसे भी बीसीसीआई की टाइटल स्पॉन्सरशिप गंवानी पड़ी. वॉल्ट डिज्नी के स्वामित्व वाले स्टार को अंत में जियो के साथ मर्जर करना पड़ा. 

ओप्पो (2017-2020): चीनी मोबाइल निर्माता कंपनी ओप्पो ने बीसीसीआई के साथ 2017 में 1079 करोड़ में पांच सालों के लिए टाइटल स्पॉन्सरशिप का सौदा किया था. हालांकि, ओप्पो को उसके उम्मीद के मुताबिक़ नतीजे नहीं मिले. इसके अलावा भारत और चीन के बीच बढ़े राजनीतिक तनाव और खराब रिटर्न के चलते ओप्पो ने अपनी साझेदारी बीच में ही तोड़ ली.

बायजूस (2020-2022): एडटेक कंपनी बायजूस ने ओप्पो के बाद स्पॉन्सरशिप हासिल की. लेकिन लगातार घाटे, भुगतान में चूक और दिवालिया याचिकाओं के कारण बायजूस का पतन हो गया. कंपनी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई और इसके बोर्ड को भुगतान भी नहीं किया. बीसीसीआई को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. हालांकि, बोर्ड ने कंपनी को 158 करोड़ रुपये के डिफॉल्ट के मामले को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में घसीटा. 

ड्रीम-11 (2023-2025): पहले बात ड्रीम 11 की. ड्रीम 11 जुलाई 2023 में तीन साल के लिए टीम इंडिया की जर्सी की प्रमुख प्रायोजक बनी थी. इसके लिए उसने बोर्ड को ₹358 करोड़ का भुगतान किया. लेकिन अब इसने ऑनलाइन गेमिंग बिल आने के बाद अपना नाम वापस ले लिया है. यह बिल ड्रीम-11 जैसी कंपनियों के खिलाफ ही लाया है, जो रियल मनी गेमिंग ऑफर करती हैं.

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