Vinayak Damodar Savarkar Jayanti: स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Savarkar) की आज जयंती है. उन्हें वीर सावरकर (Veer Savarkar) के नाम से संबोधित किया जाता है. सावरकर क्रान्तिकारी, चिन्तक, लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता और दूरदर्शी राजनेता थे. विनायक सावरकर का जन्म नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था. उनकी माता जी का नाम राधाबाई और पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था. उनका बचपन आर्थिक तंगी में बीता. सावरकर को लेकर देश के लोग दो वर्गों में विभाजित हैं.
कई लोग उन्हें देश भक्त मानते हैं तो कई लोगों में उनकी छवि इसके बिल्कुल विपरीत है. इतिहासकार और लेखक विक्रम संपथ (Vikram Sampath) की किताब 'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्ट' (Savarkar Echoes from a Forgotten Past) में सावरकर के जीवन से जुड़ी कई ऐसी बातें सामने आती हैं जो अधिकतर लोगों को मालूम नहीं है.
सावरकर को लेकर हमेशा एक सवाल रहता है कि उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी. इस पर लेखक विक्रम संपथ कहते हैं, ''सावरकर को लेकर ये बहुत बड़ा भ्रम फैलाया जाता है कि उन्होंने मर्सी पिटीशन फाइल कर माफी मांगी थी. ये कोई मर्सी पिटीशन नहीं थी ये सिर्फ एक पिटीशन थी. जिस तरह हर राजबंदी को एक वकील करके अपना केस फाइल करनी की छूट होती है, उसी तरह सारे राजबंदियों को पिटीशन देने की छूट दी गई थी. वे एक वकील थे उन्हें पता था कि जेल से छूटने के लिए कानून का किस तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं. उनको 50 साल का आजीवन कारावास सुना दिया गया था तब वो 28 साल के थे.''
उनके मुताबिक, ''अगर वे जिंदा वहां से लौटते तो 78 साल के हो जाते. इसके बाद क्या होता उनका? न तो वो परिवार को आगे बढ़ा पाते और न ही देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दे पाते. उनकी मंशा थी कि किसी तरह जेल से छूटकर देश के लिए कुछ किया जाए. 1920 में उनके छोटे भाई नारायण ने महात्मा गांधी से बात की थी और कहा था कि आप पैरवी कीजिए कि कैसे भी ये छूट जाएं. गांधी जी ने खुद कहा था कि आप बोलो सावरकर को कि वो एक पिटीशन भेजें अंग्रेज सरकार को और मैं उनकी सिफारिश करूंगा. गांधी ने लिखा था कि सावरकर मेरे साथ ही शांति के रास्ते पर चलकर काम करेंगे तो इनको आप रिहा कर दीजिए. ऐसे में पिटीशन की एक लाइन लेकर उसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है.''
सावरकर को अंग्रेजों से पेंशन क्यों मिलती थी?
किताब 'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्ट' के मुताबिक जेल से रिहा होने के बाद सावरकर को रत्नागिरी में ही रहने को कहा गया था. अंग्रेज उन पर नजर रखते थे. उनकी सारी डिग्रियां और संपत्ति जब्त कर ली गई थी. ऐसे राज बंदियों को जिन्हें कंडीशनल रिलीज मिलती थी उन सभी को पेंशन दी जाती थी. उस समय अंग्रेजों का ये था कि हम आपको काम करने की छूट नहीं देंगे, आपकी देखभाल हम करेंगे.
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