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This Article is From Feb 01, 2020

इस युवा ने ई-कचरे की मदद से बनाए 600 ड्रोन, दुनिया भर में मेडल हासिल कर भारत का नाम किया रौशन

जब कर्नाटक में बाढ़ आई हुई थी तो उनके बनाए ड्रोन ने आपदा राहत कार्य में काफी मदद की थी. ड्रोन की मदद से पीड़ितों को दवाई और भोजन की मदद पहुंचाई गई थी.

इस युवा ने ई-कचरे की मदद से बनाए 600 ड्रोन, दुनिया भर में मेडल हासिल कर भारत का नाम किया रौशन
प्रताप को इंटरनेशनल ड्रोन एक्सपो 2018 में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया.
बेंगलुरू:

भारत में इनोवेटिव सोच रखने वालों की कोई कमी नहीं है. कर्नाटक के मांड्या के प्रताप एनएम उन्हीं इनोवेटिव लोगों में से एक हैं. खास बात यह कि प्रताप ई-कचरे की मदद से ड्रोन बनाते हैं, जो कि जरूरत पड़ने पर लोगों के काम भी आते हैं. ड्रोन से प्रताप का परिचय 14 साल की उम्र में हुआ. जब उन्होंने ड्रोन को खोलना और ठीक करना शुरू किया. 16 साल की उम्र तक आते-आते उन्होंने कबाड़ से एक ड्रोन बनाया जो कि उड़ सकता था और तस्वीरें भी खींच सकता था. ये सब प्रताप ने  खुद से ही सीखा. इसके बाद प्रताप ने मैसूर के जेएसएस कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स से बीएससी की.  

कचरे से 600 ड्रोन बनाए
इंडिया टाइम्स के मुताबिक प्रताप को ड्रोन वैज्ञानिक के तौर पर भी जाना जाता है. उन्होंने खुद से 600 ड्रोन विकसित किए हैं. यही नहीं उन्होंने कई प्रोजेक्ट पर भी काम किया है, जिनमें सीमा सुरक्षा के लिए टेलीग्राफी, यातायात प्रबंधन के लिए ड्रोन तैयार करना, मानवरहित वायुयान, रेसक्यू ऑपरेशन के लिए यूएवी, ऑटोपायलेट ड्रोन शामिल हैं. उन्होंने हैकिंग से बचाव के लिए ड्रोन नेटवर्किंग में क्रिप्टोग्राफी पर भी काम किया है. जब कर्नाटक में बाढ़ आई हुई थी तो उनके बनाए ड्रोन ने आपदा राहत कार्य में काफी मदद की थी. ड्रोन की मदद से पीड़ितों को दवाई और भोजन की मदद पहुंचाई गई थी.   

ई-कचरे का करते हैं इस्तेमाल
खास बात यह कि प्रताप कोशिश करते हैं कि ड्रोन बनाते समय कम से कम ई-कचरा पैदा किया जाए. वे टूटे हुए ड्रोन, मोटर, कैपेसिटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक चीजों से ड्रोन तैयार करते हैं. इससे न सिर्फ कम लागत में ड्रोन तैयार हो जाते हैं बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल भी साबित होता है.   

सम्मान और पुरस्कार
प्रताप को अब तक 87 देशों से निमंत्रण मिल चुका है. उनको इंटरनेशनल ड्रोन एक्सपो 2018 में एलबर्ट आइंस्टीन इनोवेशन गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया. उन्हें 2017 में जापान में  इंटरनेशनल रोबोटिक्स प्रदर्शनी में गोल्ड और सिलवर मेडल से सम्मानित किया गया और 10 हजार डॉलर की राशि भी दी गई. वे आईआईटी बॉम्बे और आईआईएससी में लेक्चर भी दे चुके हैं. फिलहाल वे डीआरडीओ के एक प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं. 

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