नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देशभर के गैरवित्तपोषित निजी मेडिकल कालेजों को एमबीबीएस और बीडीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए हाल में बहाल की गई ‘एनईईटी’ के अतिरिक्त अपने पूर्व कार्यक्रम के अनुसार प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
केन्द्र से लें निर्देश
जब कुछ वकीलों ने निजी कालेजों द्वारा आयोजित की गईं या प्रस्तावित प्रवेश परीक्षाओं के भविष्य पर स्पष्टीकरण मांगा तो न्यायमूर्ति एआर दवे की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, निजी संस्थानों द्वारा किसी परीक्षा को अनुमति देने का कोई सवाल नहीं है। एक अन्य घटनाक्रम में, पीठ ने सालिसिटर जनरल रंजीत कुमार से अपनी अलग प्रवेश परीक्षा पहले ही आयोजित कर चुके कुछ राज्यों को वर्तमान शैक्षणिक सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया के साथ आगे बढने की व्यवहार्यता पर केन्द्र से निर्देश लेने को कहा।
फिर से बैठने की अनुमति
पीठ ने कुमार से उसे इस बारे में अवगत कराने को कहा कि एक मई को अखिल भारतीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा (जो बाद में राष्ट्रीय योग्यता प्रवेश परीक्षा, एनईईटी बनी) में शामिल होने वाले छात्रों को 24 जुलाई को आयोजित हो रही ‘एनईईटी 2’ में फिर से बैठने की अनुमति होगी या नहीं। पीठ ने कहा कि छात्रों को ‘एनईईटी 2’ में फिर से बैठने की अनुमति होनी चाहिए। पीठ ने कहा कि राज्य स्तरीय परीक्षाओं की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करने वाले छात्र जिन्होंने एआईपीएमपी का फार्म भरने के बावजूद इसकी तैयारी गंभीरता से नहीं की थी उन्हें एनईईटी 2 में फिर से परीक्षा देने की इजाजत दी जानी चाहिए।
पूछा गया नजरिया
अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पिंकी आनंद ने सीबीएसई की तरफ से पैरवी करते हुए कहा, मैं यह नहीं कह सकती कि यह असंभव है, लेकिन यह बहुत मुश्किल होगा। उन्होंने इस संबंध में इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि एनईईटी 1 में छह लाख से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया था। एमसीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने सुझाव दिया कि छात्र एक परीक्षा में दो अवसरों का फायदा नहीं ले सकते। जब गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, केरल, असम और जम्मू कश्मीर सहित विभिन्न राज्यों के वकीलों ने एनईईटी के खिलाफ अपील की तो अदालत ने केन्द्र और सीबीएसई से उनका नजरिया पूछा।
क्या कहना है राज्यों का
गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने कहा कि गुजराती और मराठी जैसी प्रादेशिक भाषाओं में राज्य प्रवेश परीक्षाओं की तैयार करने वाले छात्रों को अगर अचानक एनईईटी में बैठने को कहा गया तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा। गुजरात की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, अगर यह एनईईटी छह महीने पहले आया होता तो मैं यह सब नहीं कहता। एनईईटी को कम से कम एक साल टालने पर विचार कीजिए। उन्होंने प्रवेश परीक्षाओं के गुजराती भाषा में लिखे प्रश्नपत्रों का जिक्र करके इससे होने वाली उस असुविधा पर प्रकाश डाला जो अचानक एनईईटी में बैठने से छात्रों को अब हो सकती है।