
बसंत पंचमी के दिन पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी का वध किया था
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पृथ्वीराज चौहान ने आंखें न होने के बावजूद गौरी को मार गिराया
यह घटना बसंत पंचमी वाले दिन हुई थी और फिर इतिहास में दर्ज हो गई
पृथ्वीराज चौहान ने जिस तरह गौरी का वध किया वो काफी दिलचस्प है
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पृथ्वीराज चौहान ने जिस तरह मोहम्मद गौरी का वध किया था वह वाकया भी बड़ा दिलचस्प और हैरतअंगेज है. इतिहासकारों की मानें तो पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच तराइन के मैदान में दो बार युद्ध हुआ था. पहले युद्ध में गौरी को मुंह की खानी पड़ी. कहते हैं पृथ्वीराज चौहान उदार हृदय वाले थे और उन्होंने युद्ध में शिकस्त देने के बावजूद गौरी को जिंदा छोड़ दिया. पर दूसरी बार तराइन के मैदान में जब युद्ध हुआ तब गौरी जीत गया और उसने पृथ्वीराज को नहीं छोड़ा. वह पृथ्वीराज चौहान को अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और वहां उनकी आंखें फोड़ दीं. गौरी का प्रतिशोध यही शांत नहीं हुआ और उसने उन्हें जान से मारने की ठान ली.
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पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने के उस्ताद थे. वह आवाज सुनकर तीर चला सकते थे. गौरी ने मृत्युदंड देने से पहले उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा. पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई ने गौरी को ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत करने का परामर्श दिया. गौरी मान गया और उसने ठीक वैसा ही किया जैसा कि चंदबरदाई ने कहा था. तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया:
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान अपने प्रिय मित्र चंदबरदाई का इशारा समझ गए और उन्होंने तनिक भी भूल नहीं की. उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगा लिया कि गौरी कितनी दूरी और किस दिशा में बैठा है. फिर क्या था उन्होंने जो बाण मारा वह सीधे गौरी के सीने में जा धंसा. इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे का वध कर आत्मबलिदान दे दिया. इतिहासकारों की माने तो 1192 ईसवीं की यह घटना भी बसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी.
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